: मजीठिया वेतनमान : क्यों पस्त हैं पत्रकार : सुप्रीम कोर्ट का फैसला, सरकार का आदेश, फिर भी अपने हक के लिए पत्रकार तरस रहे हैं। कारण एकता की कमी। दरअसल पत्रकारों के मन में मालिकों ने ऐसी घिनौनी सोच भर दी है जिससे भाई-भाई एक दूसरे की रोटी छीनना चाहते है, नौकरी खाना चाहते है, एक दूसरे को नीचा दिखाने की होड़ मची है। अब मजीठिया की बारी आई तो पत्रकार एकजुट होने के बजाए एक-एक कर कानून के द्वार पिछले रास्ते से जा रहे हैं। ऐसे में जाहिर है आप कितने भी हिम्मती हैं लेकिन परेशान होकर अपना हक छोड़ देंगे।
क्या करें पत्रकार
सबसे पहले पत्रकारों को एकता की जरूरत है। कम से कम एक ग्रुप में 10 लोग हों तो अच्छी बात है। एक साथ लेबर आफिस में कम्प्लेन करें या कोर्ट केस करें। चूंकि पत्रकारों के वेतन या देनदारी विवाद का मामला औद्योगिक विवाद अधिनियम 1947 के दायरे में आता है। जर्नलिस्ट एक्ट 1955 की धारा 17 में इसका उल्लेख है। यदि कंपनी पर कर्मचारी की कोई बकाया राशि है तो राज्य सरकार या कर्मचारी स्वयं सक्षम प्रधिकृत अधिकारी से शिकायत करेगा और शासन या कोर्ट ऐसी बकाया राशि पाती है तो कलेक्टर आरआरसी जारी कर बकाया राशि की वसूली करेगा। कुछ लोग कहते हैं कि हम तो करार करा लिए हैं, पत्रकारों से लिखा चुके हैं कि हमें मजीठिया वेतन नहीं चाहिए। उनके लिए जर्नलिस्ट एक्ट की धारा 16 खास है। जिसके तहत करार, संविदा नियुक्ति होने की दशा में भी यह अधिनियम मान्य होगा। अर्थात् यदि करार या संविदा नियुक्ति में आपको मजीठिया से ज्यादा फायदा मिल रहा है तो कोई बात नहीं लेकिन कम लाभ मान्य नहीं है।
गणना में परेशानी
दूसरी परेशानी पत्रकारों के साथ गणना की आ रही है। मजीठिया वेतनमान की गणना नहीं कर पा रहे हैं। चूंकि मेरी गणित कमजोर है और गणना की आधी अधूरी जानकारी है इसलिए अपने जानकार साथियों से गणना की गणित प्रस्तुत करने का अनुरोध करता हूं। हां, एक वरिष्ठ पत्रकार ने पीटीआई, व कुछ पेपरों की सैलरी सीट मजीठिया वेतनमान के अनुरूप सामने रखी थी, उससे अपको मदद मिल सकती है। चूंकि वर्तमान में सभी मालिक मजीठिया वेतनमान से 10 गुना कम वेतन दे रहे है इसलिए पत्रकारों को एक होने की सख्त जरूरत है।
महेश्वरी प्रसाद मिश्र
पत्रकार
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Dhanesh patel
September 2, 2014 at 6:47 am
mazithiya lene layak kam to karo. bat karte ho. kam ek paise ka nahi chahiye mazethiya ka pura labh
sachin awasthi
September 2, 2014 at 9:29 am
grat
Kashinath Matale
September 2, 2014 at 1:33 pm
HUM TO SURE SE HI BOL RAHE HAI. FITMENT FIXATION AND DA BHI BARABAR NAHI DE RAHE HAI.(167 KE DIVISOR SE MILNA CHAHIYE).
himanshu
September 4, 2014 at 5:21 am
@ Dhanesh patel
Tum ne kya teer mare hai. Zara bakhaan karege.
Tate main dum nahi, hum kisise kum nahi.
saala Klun aadmi, kusaa
kumar kalpit
September 4, 2014 at 6:20 pm
महेश्वरी प्रसाद जी,,,बैल दुहने से कोई फायदा नही है..आप १० की बात कर रहे हैं.. मुझे एक पत्रकार नहीं मिल रहा है.. जो मेरे कोर्ट में केस फाइल करे…जब मालिक पिछवाड़े लात मार कर निकाल देगा.. तब भी इन्हे होश नहीं आएगा…ये कागजी शेर हैं खोखला जीवन जीते हैं.. अच्छा है इनकी मारी जा रही है…
अब आप खुद ही देख लीजिये धनेश पटेल जी के पेट में अभी से दर्द होने लगा…इन जैसे मालिक के दल्लों की कमी नहीं है देश में…जबसे पत्रकारिता ने मीडिया का रूप धारण किया है.. अब से धनेश जी जैसे दल्लों की भरमार हो गयी है..
Shubhakar Dubey
September 5, 2014 at 5:32 am
बिल्ली के गले में घंटी कौन बंधेगा? आज के दौर में प्रायः सभी पत्रकार अनुबंध पर हैं , इधर मुंह खुला उधर अनुबंध ख़त्म . फिर बेरोजगारी इतनी है की किसी भी शर्त पर कोई न कोई स्थान भरने को तैयार हो जायेगा. चूँकि अब अखबार की क्वालिटी पर मालिक का ध्यान नहीं होता अतः नौसीखिए भी चल जा रहे हैं.