सुधीर मिश्रा-
समझिए कि कौन जीतेगा दस मार्च को… रोजाना लोग पूछते हैं कि दस मार्च को क्या नतीजे आ सकते हैं ? मेरा जवाब है यह इम्तहान है भारतीय जनता पार्टी की नई राजनीति का। समाज कल्याण की योजनाओं में डायरेक्ट फंड ट्रांसफर से इस पार्टी में वोटरों का एक ऐसा नेटवर्क तैयार किया है, जहां आमजन तक फायदा पहुंचने के लिए किसी दलाल या स्थानीय नेताओं की जरूरत नहीं। ब्यूरोक्रेट्स ने नियम और मापदंड तय कर दिए हैं और जो इस दायरे में आता है, उस तक पैसा, अनाज और अन्य सुविधाएं पहुंच जाती है।
लाभार्थियों का यह नया वर्ग बीजेपी की उस छवि को तोड़ता है जिसमें उसे बनिया और मध्य वर्ग की पार्टी कहा जाता था। लोअर मिडिल क्लास अभी गुस्से में दिखता है। मंडल कमीशन के बाद से यूपी में शुरू हुई जातीय काट के लिए पार्टी का उग्र हिंदुत्व का कार्ड चल ही रहा है। जातीय खेमेबंदी से हिंदुत्व पर हमले को भोथरा करने के लिए माइक्रो स्तर पर अति गरीबों का ऐसा सॉलिड आवरण बन गया है जिसमें जाति से छेद करना आसान नहीं। इसीलिए स्वामी प्रसाद मौर्य और धर्म सिंह सैनी के जाने से पार्टी फिक्रमंद नहीं है।
सरकारी योजनाओं का फायदा और हिंदुत्व दो ट्रंप कार्ड के सहारे पार्टी इस लड़ाई में खड़ी है।
अब आइए दूसरा पक्ष देखते हैं। जिस परंपरावादी लोकतांत्रिक सिस्टम में २०१४ से पहले राजनीति चलती थी, उसे मोदी राज ने खत्म करना शुरू कर दिया है। उसमें सवर्ण, बैकवर्ड और जातीय गोलबंदियां थीं। अल्पसंख्यक एक बड़ा पावर सेंटर होते थे। समझिए इसके खत्म होने के पीछे क्या है ? जिन सरकारी योजनाओं का फायदा दिलवाकर लोकल राजनीतिज्ञ सांसद विधायक बनते थे, अब वो सॉफ्टवेयर, डीएम ,ब्यूरोक्रेसी और सरकार के सीधे हाथ में आ गई। जाति मजहब के आधार पर लाभार्थी बनाने का चक्कर अब नहीं चल पाता। इसका नुकसान बीजेपी समेत सभी राजनीतिक दलों को है।
इस देश का गरीब बरसों से किसी खास पार्टी को जातीय या धार्मिक जुड़ाव की वजह से वोट नहीं देता आ रहा था, उसे सरकारी योजना का फायदा दिखता था। इसी वजह से लोकल स्तर तक पार्टियों का नेटवर्क बन पाता है। विधायकों और स्थानीय नेताओ का रोल इसमें अब सीमित हो गया है। बीच के कट कमीशन भी कम हुए हैं, इससे पार्टी का निचला तंत्र दुखी हैं। साथ ही किसान निधि, स्कूल यूनिफॉर्म और ऐसी ही ३६ योजनाओं के डायरेक्ट ट्रांसफर का बोझ सरकार ने मिडिल क्लास पर डाल दिया है।
महंगाई बढ़ती जा रही है। लोगों को घर चला पाना मुश्किल हो रहा है। टैक्स पेयर को कोई खास फायदा है नहीं और खेतों में जानवरों की विकराल समस्या पर भी काबू नहीं है। अभी किसानों से बात करिए तो वह गेहूं के नुकसान की बात बताएंगे। बेरोजगारी से युवाओं में बहुत नाराजगी है। उनमें बेचैनी है। स्वास्थ्य और शिक्षा की हालत तो हमेशा से खराब है ही।
अब ऐसे में मुकाबला हिंदुत्व और सरकारी योजनाओं के सीधे उन तक पहुंचने से खुश लोगों और महंगाई , बेरोजगारी और पशुओं की समस्या से नाराज लोगों के बीच है। दस मार्च को तय होगा कि देश में आगे की राजनीति का रोड मैप क्या है। अंडर करेंट जरूर होगा किसी एक तरफ।
Jeelani khan Alig
February 15, 2022 at 10:51 am
Good analysis…. Analysts generally ignore impacts of direct fund transfer under welfare schemes…. It wl help BJP somehow but how much that is d question…. Wl unemployment, high cost of living, farmers´ issues, issues directly related to women will outdo this tranfering is to be seen…