उच्च न्यायालय ने पीटीआई में छंटनी के मामले में अपने आदेश में सबसे महत्वपूर्ण बात यह मानी है कि इस मामले में यदि अंतरिम स्थगन आदेश नहीं दिया जाता है तो मैनेजमेंट का तो कोई नुकसान नहीं होगा लेकिन 297 कर्मचारियों का ऐसा नुकसान हो जाएगा जिसकी कभी शायद भरपाई नहीं हो सकेगी. माननीय न्यायालय ने यह माना है कि कर्मचारियों को तत्काल राहत की आवश्यकता है.
फेडरेशन आफ पीटीआई एम्पलाइज यूनियन की रिट याचिका में उठाए गए कानूनी बिंदु प्रथम दृष्टया बिल्कुल ठीक हैं और उन पर गहन विचार करके ही अंतिम निर्णय दिया जा सकता है. कर्मचारियों को फौरी राहत दी जानी चाहिए. उच्च न्यायालय ने यह भी पाया है कि पीटीआई प्रबंधन ने इंडस्ट्रियल डिस्प्यूट्स एक्ट 1947 के तमाम प्रावधानों का प्रथम दृष्टया सरासर उल्लंघन किया है. उसने वर्किंग जर्नलिस्ट एक्ट 1955 एवं वेज बोर्ड के प्रावधानों का भी प्रथम दृष्टया उचित अनुपालन नहीं किया है.
उच्च न्यायालय ने प्रबंधन के इस तर्क को सही माना है कि पीटीआई एम्पलाइज यूनियन दिल्ली की तरफ से कुछ लोग सहायक श्रम आयुक्त के यहां आवेदन लेकर गए थे. न्यायालय ने फेडरेशन की रिट पिटिशन को मुख्य याचिका मानते हुए स्पष्ट कहा कि उच्च न्यायालय के दरवाजे पीड़ित कर्मचारियों के लिए खुले हैं तो निश्चित तौर पर वह सीधे उच्च न्यायालय का दरवाजा भी खटखटा सकते हैं और यदि फेडरेशन के लोग श्रम आयुक्त के कार्यालय न जाकर सीधे उच्च न्यायालय आए हैं तो इसमें कुछ भी गलत नहीं है. इसका आशय है कि वर्तमान परिस्थितियों में उच्च न्यायालय आने का ही फैसला उचित फैसला था.
उच्च न्यायालय ने एक महत्वपूर्ण टिप्पणी करते हुए कहा है कि उनके विचार में प्रथम दृष्टया पीटीआई लोकहित और जनता का काम करती है इसलिए नहीं कहा जा सकता है कि भारतीय संविधान के तहत पीटीआई के खिलाफ रिट नहीं की जा सकती है. माननीय उच्च न्यायालय की यह टिप्पणी भविष्य में भी पीटीआई के कर्मचारियों के हित के लिए काम आएगी. न्यायालय ने यह स्पष्ट तौर पर माना है कि प्रथम दृष्टया पीटीआई प्रबंधन ने ना तो सीनियारिटी लिस्ट के अनुसार रिट्रेंचमेंट किया, न ही उसने कर्मचारियों को सेवा से एकाएक निकाले जाने के पूर्व उचित समय की नोटिस कर्मचारियों या फेडरेशन को दी.
न्यायालय के आदेश में पेज नंबर 18 पर स्पष्ट रूप से पीटीआई फेडरेशन की रिट याचिका पर पूरी तरह से विचार करते हुए न्यायालय ने पीटीआई फेडरेशन द्वारा दी गई वरिष्ठता सूची का उल्लेख किया है और उसके अनुसार कांट्रैक्ट पर इंजीनियरिंग में रखे गए नए बंधुओं को सर्विस में रखे जाने की बात को प्रथम दृष्टया स्वीकार किया है. जबकि स्थाई सेवा में काम करने वाले वरिष्ठ लोगों को उसी इंजीनियरिंग की सेवा में पीटीआई मैनेजमेंट ने नहीं बख्शा और उन्हें सेवा से निकाल दिया. मैनेजमेंट का यह रवैया पीटीआई फेडरेशन की रिट याचिका के पक्ष में गया और इससे न्यायालय ने हमारे कर्मचारियों के हित में फैसला देने का मन बनाया.
अंततः माननीय उच्च न्यायालय ने इन्हीं बिंदुओं पर प्रथम दृष्टया फेडरेशन आफ पीटीआई इंप्लाइज यूनियन के केस को उचित पाते हुए सभी कर्मचारियों को सेवा से निकाले जाने के मैनेजमेंट के 29 सितंबर के आदेश पर रोक लगा दी.
In Brief salient parts of 40-page order passed by Justice C Hari Shankar of the Delhi High Court in the WP filed by the Federation of PTI Employees’ Unions today:
1.The court has upheld that a prima facie case of violation of various provisions of the Industrial Disputes Act,1947,has been made out.
2.The order has held that the balance of convenience was in favour of the retrenched employees.
3.The court has held that irreparable harm would be caused to the employees if the retrenchments were not stayed.
4.The court has held that prima facie a case had been made out that the activities of PTI bore a ‘public character’ and, that therefore , a Writ Petition would lie against the company.
5.In view of the above reasons, the court has stayed the Notice dated 29 September 2018 as well as the individual notices of retrenchment served on 297 employees till the final disposal of the WP.
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pti_Stay_Order_against_Retrenchment
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