गिरिजेश वशिष्ठ-
जो भी हो आजतक का नंबर तीन हो जाना बहुत दुखद है. इस चैनल से 14 साल का नाता रहा है. मैं टीआरपी आने के पहले से ही सार्वजनिक रूप से कह रहा हूं कि कौन सा चैनल है जो नंबर वन के लायक काम कर रहा है. स्क्रीन पर साफ दिखता है कि कौन क्या कर रहा है.
आपके पास देने के लिए न नया विचार हो न कोई तर्क आप गढ़ सकते हों. प्राइम टाइम एंकर वही विचार वही समझ और वही तर्क घिसे रिकॉर्ड की तरह दोहराते रहते हैं. कुछ नया हासिल करने को तैयार नहीं.
यूक्रेन में तीन रिपोर्टर जाते हैं तीनों एक ही शहर में एक ही जगह से रिपोर्टिंग कर रहे हैं. कौन देखेगा. दूसरे चैनल का रिपोर्टर खंडहर दिखा रहा है. इंडिया टुडे की गीता मोहन और नये चेहरे राजेश पवार ने बेहतरीन काम किया लेकिन यहां जो लोग उस पर चर्चा कर रहे हैं उनके पास तो कोई दृष्टिकोण ही नहीं है.
आपकी चर्चाएं ढीली हैं , अव्यवस्थित हैं. आपके पास सवाल नहीं है. जियो पॉलिटिकल मामलों की न तो समझ है न आप उसकी तैयारी से जाते हैं. ज्यादा स्टायलिश हो जाना. बढ़िया ग्राफिक्स होना. अच्छे पैकेज बना लेना एक चैनल की बुद्धिमान और ज्ञानवान होने की छवि नहीं बनाते.
जो ऐंकर सबसे ज्यादा चैनल पर रहता है वो खुद को पिछले पांच साल से दोहरा रहा है. कौन देखेगा. आदमी को एंकर का नाम बताइये वो बिना सोचे समझे बता देगा कि वो क्या बोलने वाली है या बोलने वाला है.
मेरी सलाह यही है कि चैनल दर्शकों के लिए बनाएं. कलीपुरी के लिए चैनल बनाने से कुछ नहीं होने वाला. कई पब्लिकेशन और चैनल इसी नौकरी बाजी और बॉस को खुश करने की प्रक्रिया में नष्ट हो चुके हैं.
आजतक है तो इंडिया टुडे ग्रुप है. चैनल दर्शकों को लिए होना चाहिए. भगवान के लिए बुद्धिमान लोगों को चैनल का चेहरा बनाएं. लोग बुद्धि से प्रभावित होते हैं.
हेयर स्टाइल मेकअप सेट आपको रईस दिखा सकते हैं लेकिन मुंह खोलते ही गोबर करेंगे तो कौन आपकी इज्जत करेगा.
Rajeev Pratap saini
April 1, 2022 at 12:24 pm
एक एंकर तो हर 15 शब्दों के बाद बोलती है कि सबसे बड़ा सवाल किया है अरे भाई सबसे बड़ा सवाल क्या है लच्छेदार बालों को लहराने से चैनल नहीं चलते