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क्यों डूब गया टीवी न्यूज का चमकता सितारा आजतक?

-संजय कुमार-

आज हिंदी न्यूज चैनलों के बीच टीआरपी चोरी को लेकर जिस तरह की मारकाट मची है वो हैरान करती है। सब एक दूसरे को चोर-उच्चका बताने को उतावले नजर आ रहे हैं। मानो पॉकेटमारों के गैंग का एक सदस्य पकड़ा गया हो और सारे मिलकर उसे लतियाने-गलियाने और उसकी लानल मलानत में लगे हों। सब एक सुर में सियारों की तरह हुआ-हुआ यानी पॉकेटमार-पॉकेटमार चिल्ला रहे हैं। ये बात उनके गले नहीं उतर रही है कि खुद को राष्ट्रवादी बताने वाला अंग्रेजी पत्रकारिता के एक खूबसूरत लौंडे ने हिंदी न्यूज चैनलों के बड़े-बड़े कागजी शेरों को पटखनी दे दी है और एक हफ्ते ही नहीं, बल्कि कई हफ्ते से धूल चाटने पर मजबूर कर दिया है।

अर्नब गोस्वामी के सामने टीआरपी के कथित बड़े-बड़े सूरमा और तीसमारखां फुस्स पटाखा साबित हो रहे हैं। अर्नब ने वही किया है जो कथित तौर पर बड़े चैनल कई सालों से करते आए हैं और अब यही बात सबको नागवार गुजर रही है। लिहाजा आज सब एक-दूसरे के कपड़े फाड़ने पर उतारू नजर आ रहे हैं।

चलिए सबसे पहले बात करते हैं बीते 11 हफ्ते की बार्क रेटिंग की। जिसमें आजतक बीते 8 हफ्ते से नंबर दो पर है और अगर आने वाले दो-तीन हफ्तों में और लुढ़क जाए तो हैरानी नहीं होगी। दरअसल टीवी9 भारतवर्ष और इंडिया टीवी लगातार आजतक का पीछा कर रहे हैं। तब आजतक को केवल इन्हीं से चुनौती मिल रही थी।

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उसे क्या पता था कि अर्नब नाम का मदारी चुपके से उसकी जड़े ही नहीं हिला देगा बल्कि उसके सिंहासन पर विराजमान भी हो जाएगा। 30 जुलाई और 20 अगस्त के बीच आजतक ने अपनी टीआरपी 2 फीसदी खोई लेकिन इसी दौरान सुशांत की मौत और रिया के एंग्ल को अर्नब ने बेशर्मी से भुनाकर महज 20 दिनों में 4 फीसदी की बढ़त हासिल कर आजतक की बादशाहत छीन ली।

गौरतलब है कि 20 अगस्त की टीआरपी में आजतक और रिपब्लिक के बीच का अंतर आधा फीसदी से भी कम था। लेकिन उसके बाद तो मानो आजतक पागल हो गया और रिपब्लिक के जाल में फंसकर वही सब करने लगा जो अर्नब उनसे करवाना चाहता था।

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सुशांत सिंह राजपूत की खुदकुशी को हत्या और रिया चक्रवती को हत्यारिन साबित करने में अर्नब ने पत्रकारिता की सारी मर्यादाएं तोड़ दी। बेशर्मी की सारी हदें पार कर दी। रिया और सुशांत को लेकर रिपब्लिक भारत की कवरेज में न्यूज नहीं बल्कि मेलोड्रामा था और उसकी नकल में आजतक अर्नब को कभी मैच नहीं कर पाया।

हालांकि तब भी आजतक की अपनी टीआरीपी ज्यादा नहीं गिरी लेकिन रिपब्लिक भारत देखते-देखते अगले 4 हफ्ते में 22 फीसदी तक पहुंच गया। जहां तक मुझे याद आता है बीते एक दशक में किसी हिंदी न्यूज चैनल की ये सबसे ज्यादा टीआरपी है।

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ये इसलिए मुमकिन हो पाया कि सुशांत सिंह राजपूत के मामले में अर्नब जिस नंगई पर उतरा, आजतक उस हद तक नंगा होने का साहस नहीं जुटा पाया। बाकी बरसाती मेंढकों की तरह फुदकने वाले छोटे चैनल, जिनकी टीआरपी एक से चार फीसदी के बीच सालों से झूल रही है, वो भी अर्नब की नकल उतारने पर उतारू नजर आने लगे। जिसका खामियाजा उन्हें भी भुगतना पड़ा।

उन्हें ये बात कभी समझ नहीं आई कि अगर कोई एके 47 लेकर पागलों की तरह दनादन फायरिंग कर रहा हो तो आप ढेला मारकर उसका मुकाबला नहीं कर सकते। लिहाजा सब के सब पिट गए और सबसे तेज चैनल आजतक की तो ऐसी दुर्गति हुई कि उसकी टीआरपी 14 फीसदी से भी नीचे लुढ़क गई।

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वैसे आजतक के पतन की गाथा लंबी है। जिसकी शुरूआत 2004-2005 से ही शुरू हो गई थी जब ‘जी न्यूज’ ने गुड़िया प्रकरण पर लगातार लाइव और डिबेट शो कर आजतक को पहली बार टीआरपी के रेस में पटखनी दे दी। दरअसल मेरठ की रहने वाली गुड़िया का निकाह करगिल युद्ध में जाने के ठीक पहले आरिफ से हुई थी।

करगिल युद्ध में भारत की विजय के बाद आरिफ का पता नहीं चला तो उसे भगोड़ा घोषित तक दिया गया। इस बीत 2003 में गुड़िया का निकाह दूर के एक रिश्तेदार तौफीक से कर दी गई। अगस्त 2004 में आरिफ वापिस आ गया। तब गुड़िया मां बनने वाली थी। अब सवाल ये था कि क्या गुड़िया को आरिफ के पास जाना चाहिए या फिर उसे तौफीक के साथ ही रहना चाहिए। इस लेकर कई दिनों पर टीवी पर मुल्ला, मौलवियों, धर्मगुरुओं और ससुराल वालों की रोज पंचायत बिठाई जाती। रोज गांव वालों का जमावड़ा लगाया जाता रहा और गुडिया पर इतना दबाव बनाया गया कि उसने फिर से आरिफ के साथ रहना कबूल कर लिया। उसे धमकी दी गई थी कि अगर वो तौफीक को छोड़कर आरिफ के साथ नहीं गई तो उसके होने वाले बच्चे को नाजायज माना जाएगा।

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बाद में गुड़िया ने एक बच्चे को जन्म दिया। लेकिन इस घटना के 15 महीने बाद जनवरी 2006 में दिल्ली के एक अस्पतताल में गुड़िया की मौत हो गई।

गुड़िया के इस प्रकरण से पहली बार न्यूज चैनलों को धारावाहिकों की तरह चलनेवाली लाइव डिबेट शो की ताकत, इसमें होने वाली बचत और मुफ्त की टीआरपी का फॉर्मूला मिल गया। आजतक ने इस फॉर्मूले को लपकने में देर नहीं की। मध्यप्रदेश के बैतूल के रहनेवाले कथित ज्योतिष कुंजीलाल ने अचानक अक्तूबर 2005 में घोषणा कर दी, “20 अक्तूबर 2005 को करवाचौथ के दिन मेरी मौत हो जाएगी।“

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फिर क्या था, आजतक ने वही किया जो उस वक्त जी न्यूज ने गुड़िया के मामले में किया और आज अर्नब ने सुशांत सिंह राजपूत की मौत पर किया। दो दिनों तक इस अंधविश्वास फैलाने वाली इस खबर का लाइव प्रसारण कई रिपोर्टरों और ओबी वैन लगाकर होता रहा। जब कुंजीलाल नहीं मरा तो ये कहा गया कि चूंकि उसकी पत्नी ने करवाचौथ का व्रत रखा हुआ था और उसने अपने पति की लंबी उम्र की दुआ मांगी थी, इसलिए उसकी मौत टल गई। चलते-चलते बाता दूं कि कुंजीलाल की मौत पिछले साल यानी अक्तूबर 2019 में 90 साल की उम्र में हुई। इस लाइव प्रसारण में आजतक ने खूब टीआरपी बटोरी। इसके बाद आजतक आदमखोर की तरह व्यवहार करने लगा, मानो इंसानी खून का स्वाद लग गया हो।

कम खर्च में ज्यादा टीआरपी बटोरने का फॉर्मूला क्या हाथ लगा, इसे आजमाने में कोई पीछे नहीं रहा। लाइव टीवी का एक और बड़ा मौका आया 21 जुलाई 2006 को। जब कुरुक्षेत्र जिले के हलदेहेड़ी गांव में 4 साल का प्रिंस 60 फीट गहरे बोरवेल में गिर गया। भारतीय फौज का रेस्कयू ऑपरेशन करीब 50 घंटे चला और सारे चैनल अपने रेपोर्टरों और ओबी वैन के साथ एक छोटे से गांव पर गिद्धों की तरह टूट पड़े। ये लाइव प्रसारण तबतक चलता रहा जबतक प्रिंस को बोरवेल से बाहर नहीं निकाल लिया गया। इसकी झलक आपको पिपली लाइव नाम की फिल्म में दिखाई पड़ सकती है।

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ये सिलसिला यहीं नहीं रुका। इसके बाद आजतक पर बिना ड्राइवर वाली कार, नाग-नागिन, यमराज से मिले गजराज जैसे बेसिर पैर के विषयों पर बेशर्मी भरे कार्यक्रमों का लाइव प्रसारण किया जाने लगा। तब आजतक को जी न्यूज, स्टार न्यूज, एनडीटीवी इंडिया और इंडिया टीवी से कड़ी चुनौती मिल रही थी। लेकिन ये सब करते हुए भी आजतक कम से कम तीन मौकों पर अपने प्रतिस्पर्धी चैनलों से पिट गया था। आजतक के लिए सबसे शर्मनाक था 2009-10 का वो दौर, जब नाग-नागिन चलाने के लिए कुख्यात इंडिया टीवी के हाथों वो एक साल तक लगातार पिटता रहा। जैसे आज अर्नब का दौर है वैसे ही तब विनोद कापड़ी छाप पत्रकारिता का दौर था। नोएडा की आरुषि की हत्या का रहस्य, महाबलि खली की ताकत, साईंबाबा का चमत्कार, स्वर्ग का दरवाजा और जादूगरों का मायाजाल जैसे कार्यक्रम परोस कर विनोद कापड़ी ने आजतक के नाक में दम कर दिया। आजतक उस दौर में विनोद कापड़ी के पीछे भागता रहा और कापड़ी न्यूज रूम में आजतक पर अट्हास करते रहे।

लेकिन जैसे ही आजतक अपनी ताकत, यानी हार्ड न्यूज पर लौटा, विनोद कापड़ी का तिलिस्म टूट गया। एक साल से ज्यादा समय तक किलसने के बाद आजतक फिर से नंबर वन पर काबिज हो गया। विनोद कापड़ी के महात्म्य पर फिर कभी विस्तार से लिखूंगा। लेकिन ये कहना मुनासिब होगा कि आजतक जब भी अपने रास्ते से भटका उसे नाकामी ही मिली है।

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मसलन, आज की बात करें तो अर्नब के भड़ुआपन के पीछे अगर आजतक लगा रहेगा, तो उसके पीछवाड़े ही घूमता रहेगा। ऐसे में आजतक को अपनी ताकत पर रहना चाहिए ना कि दलालों के मैदान में जाकर बैटिंग करनी चाहिए। आजतक ने जबसे कुछ दलाल एंकरों को अपने यहां अहमियत दी है तबसे उसकी मिट्टी पलीद हो रही है।

दरअसल नकलची बंदरों की जगह आजतक को इंसान बनना चाहिए। गरीबों और विपक्ष के साथ खड़ा होना चाहिए। ताकि चौथे खंभे की अपनी जिम्मेदारी का निर्वाह कर सके। पत्रकारों का काम है सरकार से सवाल पूछना, ना कि विपक्ष से। और आज आज अंजना ओम कश्यप, रोहित सरदाना और श्वेता सिंह जिस बेशर्मी के साथ मोदी-योगी का बचाव करते हैं और विपक्ष पर हमलावर होते हैं, वो शर्मनाक होता है।

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आजतक को टीआरपी का नहीं बल्कि ब्रांड का नुकसान हुआ है। उसने उन दर्शकों का भरोसा और विश्वास खो दिया है जो ये मानते थे कि खबर मतलब आजतक। किसी घटना के होने पर आजतक को सबसे विश्वसनीय और खबर देने के मामले में सबसे आगे, सबसे तेज माना जाता था। तब आजतक का टैग लाइन होता था, ‘आंखे खोल दी।‘ लेकिन आज आजतक ने अपनी आंखे बंद कर ली हैं और वो चुपचाप अर्नब के पीछे कदमताल करता नजर आ रहा है। वर्ना ऐसी क्या मजबूरी है कि किसी जमाने में 60 फीसदी से ज्यादा टीआरपी यानी मार्केट में हिस्सेदारी रखने वाला आजतक कई वर्षों से महज 15 फीसदी टीआरपी के लिए पापड़ बेलता नजर आ रहा है। और अर्नब गोस्वामी जैसा सत्ता का दलाल गला फाड़-फाड़कर उसे चुनौती देता रहता है और रोज सरेआम उसका तक धिना-घिन तक.. तक करता रहता है।

दरअसल आजतक में दूरदर्शिता का अभाव दिखाई देता है। मोदी मीडिय़ा और गोदी मीडिया जैसे अलंकारों ने आजतक का बेड़ा गर्क कर दिया है। सरकार की जगह विपक्ष को निशाना बनाने की नीति और आम जनता के दुख-दर्द से दूरी ने आजतक को उन दर्शकों से दूर कर दिया जो मुसीबत के वक्त आजतक को संबल मानते थे। उनसे उम्मीद लगाए बैठे रहते थे। तब आजतक भी उनकी आवाज बनता था और सरकार से सामने सीना तानकर खड़ा होता था। क्योंकि पत्रकारिता का बुनियादी मकसद ही कमजोरों के साथ खड़ा होना और सत्ता को कटघरे में खड़ा करना होता है। लेकिन बदकिस्मती से आजतक विपक्ष से सवाल पूछने लगा और मोदी मैजिक के साथ बेशर्मी के साथ जा खड़ा हुआ। आजतक ने अपने काबिल एंकरों की जगह चुन-चुन कर लाए गए उन मोदीभक्त एंकरों को तव्वजो दी, जो खुद को सरकार के साथ आइडेंटीफाई करने में कोई संकोच नहीं करते हैं। इसका भी बड़ा नुकसान आजतक को उठाना पड़ा है।

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दरअसल अर्नब गोस्वामी ने आजतक को एक ऐसी अंधी सुरंग में धकेल दिया है, जहां से बाहर निकलने के लिए जिस हिम्मत और ताकत की जरूरत है वो आजतक में फिलहाल नजर नहीं आ रही। और ठोस राजनीतिक इच्छाशक्ति यानी सत्ता के मोहपाश से किनाराकशी के बगैर ये मुमकिन भी नहीं है।

लेखक संजय कुमार 1998 से टीवीआई, आजतक, इंडिया टीवी, राज्यसभा टीवी और स्वराज एक्सप्रेस से जुड़े रहे हैं। आजतक में 2001 से 2008 तक नौकरी की है।

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4 Comments

4 Comments

  1. Amit

    October 12, 2020 at 11:25 pm

    अगर आप ही कि बात माने तो एनडीटीवी और न्यूज़ 24 नंबर वन की कुर्सी पर होते, दोनों विपक्ष की गोद में बैठकर सरकार के खिलाफ बोलते हैं। अब इस पर क्या तर्क देंगे जनाब??

  2. Akhil Pandey

    October 13, 2020 at 9:42 pm

    [email protected]
    जनता भी कौई चीज है, आज जनता को सब पता है कि आप क्या कर रहे हैं। उसे बेवकूफ नहीं बनाया जा सकता। मोदी योगी अगर सही हैं तो आप उसके खिलाफ कितना भी बोलो एनडीटीवी और पुण्य प्रसून बाजपाई को गाली ही मिलेंगे।

  3. Ramesh chandra Dubey

    October 14, 2020 at 8:21 am

    Electronic media can show visuals ,this is the reason for we watch TV , otherwise print media mor reliable.

  4. MD RAFIQUE ALAM

    October 14, 2020 at 5:47 pm

    TV 9 bharatwarsh is always showing like world war will start tomorrow morning. They host their news like selling bartan and dabbas as shown in deal ya no deal channels. Hahahahahaha

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