दिमाग के खेल शतरंज यानि चेस में अब उत्तर भारत, खासतौर पर पंजाब के कई खिलाड़ी अपनी धाक जमाने लगे हैं। पंजाब में चेस के इस बढ़ते कल्चर का श्रेय ‘पंजाब केसरी’ के डायरैक्टर अभिजय चोपड़ा को जाता है जिन्होंने जालन्धर में पंजाब केसरी सेंटर ऑफ चेस एक्सीलैंस शुरू किया है। इस मंच के तहत जालन्धर में चेस प्रतियोगिताओं का आयोजन किया जा रहा है जिसमें बड़ी संख्या में बच्चे भाग लेकर चेस की बारीकियां सीख रहे हैं और अपने आपको बड़े टूर्नामैंट के लिए तैयार कर रहे हैं। भड़ास ने अभिजय चोपड़ा के साथ जालन्धर में विशेष बातचीत की। पेश है अभिजय चोपड़ा से बातचीत का एक अंश :
प्रश्र : चेस प्रतियोगिता के आयोजन के पीछे सोच क्या है?
उत्तर : पंजाब इस समय नशे की समस्या से जूझ रहा है। युवा पीढ़ी नशे में डूब रही है जिस कारण देश का नुकसान हो रहा है। हालांकि इसकी रोकथाम के लिए प्रयास हो रहे हैं लेकिन ये प्रयास सही दिशा में न होने के कारण उनके नतीजे नहीं मिल पा रहे। इस बीच मैंने सोचा कि मैं इस बीमारी से युवाओं को दूर रखने के लिए किस तरह का योगदान दे सकता हूं तो मेरे दिमाग में सबसे पहला रास्ता युवाओं को खेलों से जोडऩे का ही आया। पंजाब में युवा स्कूल से छुट्टी होने के बाद गाड़ी उठा कर गेड़ी मारने निकल जाते हैं। यदि उससे मन भर जाता है तो शराब या बीयर का सहारा लेते हैं लेकिन कुछ समय से युवाओं का रुझान शराब के अलावा चरस, अफीम और हैरोइन जैसे नशे की तरफ बढ़ गया था। युवा ऐसा इसलिए करते हैं क्योंकि उनके पास वक्त है और जिंदगी में उन्होंने अपने लक्ष्य निर्धारित नहीं किए हैं। मेरी सोच है कि युवा यदि अपने लक्ष्य निर्धारित करेंगे तो वे उस लक्ष्य को हासिल करने के लिए मेहनत करेंगे जिससे वे नशे से दूर रहेंगे। मुझे बाकी खेलों में इस तरह का फोकस नजर नहीं आता है। मैं इसका एक उदाहरण भी देना चाहूंगा। जालन्धर में चेस एसोसिएशन चेस प्रतियोगिताओं का आयोजन करती है और ‘पंजाब केसरी’ इन प्रतियोगिताओं में प्रायोजक की भूमिका में रहता है। मेरे पिता श्री अविनाश चोपड़ा जी ने एक बार मुझे ऐसी प्रतियोगिता में जाने को कहा तो मैंने देखा कि राऊंड खत्म होने के बाद खाली समय में भी बच्चे अपने चेस मैप खोल कर अभ्यास कर रहे थे। यह बात मेरे दिमाग में बैठ गई। फिर मैंने जालन्धर के जूनियर चैस खिलाड़ी दुष्यंत से बात की। वह इस समय ग्रैंडमास्टर बन चुका है। दुष्यंत उस वक्त लास वेगास में चेस खेल कर आया था। मैंने उससे पूछा कि उसने वेगास में क्या कैसीनो, ट्वाय शॉप या बड़े-बड़े होटल देखे तो दुष्यंत का जवाब था कि मैं वहां चैस खेलने गया था और मेरा पूरा ध्यान खेल में था। होटल में अपने कमरे में भी चेस का ही अभ्यास कर रहा था क्योंकि मुझे जीतना था। ये दोनों बातें मेरे दिमाग में बैठ गईं और मुझे लगा कि पंजाब के युवाओं को लक्ष्य देना पड़ेगा और यह लक्ष्य सिर्फ चेस से दिया जा सकता है।
प्रश्र: शतरंज में आपको निजी तौर पर क्या पसंद है?
उत्तर : शतरंज एक खूबसूरत खेल है और इस खेल में आप 15 मिनट में ही जीत का मजा व संतुष्टि हासिल कर सकते हैं। मैं अखबार से जुड़ा हुआ हूं और हमारे प्रोफेशन में सही या गलत का निर्णय अगले दिन का अखबार देख कर होता है लेकिन चेस के खेल में आप 15 मिनट में सही या गलत का नतीजा पा सकते हैं। मैं यहां एक घटना का उल्लेख करना चाहूंगा। मैं ट्रेन में अपने दोस्तों के साथ यात्रा कर रहा था और मैंने अपने एक दोस्त तजिन्द्र बेदी को यात्रा के दौरान चेस खेलते समय 2 घोड़ों के साथ मात दे दी। इस बीच हमारे एक तीसरे दोस्त हेमकंवल ने इस गेम पर टिप्पणी करते हुए फेसबुक पर लिखा-‘बेदी दी हार दो घोड़ेयां दी मार’। जब हम तीनों दोस्त इकट्ठे होते हैं तो यह घटना हम आज भी याद करते हैं।
प्रश्र : चेस में प्यादा बढ़ते-बढ़ते रानी जितनी ताकत पा लेता है। क्या असल में भी जीवन आपको ऐसा ही लगता है?
उत्तर : बिल्कुल। भारत में तो हम कर्मों के सिद्धांत को मानते हैं और भगवद् गीता में भी कर्मों का फल मिलने की बात कही गई है लेकिन हम यदि दुनिया के सफल लोगों की बात करें तो वे भी धीरे-धीरे ही ताकतवर हुए। मशहूर पेंटर बिनसन वैंगो ने 18 साल की उम्र में पेंटिंग बनाना सीखा और 32 साल की उम्र में उनकी मौत हो गई लेकिन उन्होंने अपने जीवन की बेहतरीन पेंटिंग्स 30 साल की उम्र के बाद बनाई। इसी तरह दुनिया की मशहूर फूडचेन मैकडोनल्ड के मालिक ने यह कंपनी रिटायरमेंट के बाद शुरू की थी और बाद में यह दुनिया की सफल कंपनियों में से एक बनी।
प्रश्र : मीडिया में चेस के खेल को जगह नहीं मिलती लेकिन ‘पंजाब केसरी’ में चेस को प्रमुखता से कवर करने के पीछे क्या सोच है?
उत्तर : मैं बाकी अखबारों के बारे में कोई टिप्पणी नहीं करूंगा क्योंकि वे भी हमारी इंडस्ट्री का हिस्सा हैं लेकिन जिस तरह से टेलीविजन में सारा खेल टी.आर.पी. यानी कि टेलीविजन रेटिंग प्वाइंट का होता है और टी.आर.पी. हासिल करने के लिए ही खबरें चलाई जाती हैं उसी तरह अखबार में वही छपता है जिससे पाठकों की संख्या बढ़े लेकिन पंजाब केसरी समूह की शुरू से ही यह परंपरा रही है कि हम खबरों के मामले में सिद्धांतों से समझौता नहीं करते। मेरे परदादा शहीद लाला जगत नारायण, मेरे दादा जी श्री विजय चोपड़ा और पिता श्री अविनाश चोपड़ा के बाद मुझ पर भी समाज के लिए कुछ करने की जिम्मेदारी है तथा मैं उन्हीं के सिद्धांतों पर चल कर वह काम कर रहा हूं जिससे समाज का भला हो और समाज में बदलाव हो। समाज में इस बदलाव के लिए अखबार की बड़ी भूमिका होती है। जब हम अखबार में लिखते हैं कि प्रागनंदा जैसे छोटे खिलाड़ी दुनिया भर में चेस के माध्यम से देश का नाम रोशन कर रहे हैं तो अभिभावकों को भी लगता है कि उनके बच्चे भी ऐसा कर सकते हैं।
प्रश्र : ‘पंजाब केसरी’ के टूर्नामेंट से सीखने वाले जालन्धर के जूनियर खिलाड़ी विदित जैन ने टॉप रेटिड खिलाड़ी को हराया तो कैसा लगा?
उत्तर : विदित की सफलता ने मुझे भावुक कर दिया। यह विदित की जीत नहीं थी, यह मेरी खुद की जीत थी और इस जीत से मेरा आत्मविश्वास बढ़ा है। लोगों में यह धारणा है कि मैं अमीर परिवार में पैदा हुआ हूं और हमें सब कुछ विरासत में मिला है लेकिन जब विदित जीत कर आया तो मुझे लगा कि मेरे द्वारा शुरू किए गए इस छोटे से प्रयास से बच्चे आगे बढ़ रहे हैं। यह मेरे लिए परम संतुष्टि की बात थी। मैं चाहता हूं कि देश से सैकड़ों बच्चे ग्रैंडमास्टर बनें और देश चेस की दुनिया में सुपर पावर बन कर उभरे।
प्रश्र : भविष्य में चेस को लेकर आपकी क्या योजनाएं हैं?
उत्तर : मैंने बचपन में डर के कारण चेस खेलना छोड़ा था लेकिन अब मैं वह डर बच्चों के मन से खत्म करना चाहता हूं। यह डर तभी खत्म होगा जब बच्चे ज्यादा से ज्यादा प्रतियोगिताएं खेलेंगे। ऐसा करके उनमें आत्मविश्वास आएगा। सवाल यह नहीं है कि हम रेटिंग टूर्नामैंट करवाते हैं या नहीं क्योंकि मैं ये सब पब्लिसिटी के लिए कर रहा हूं। मैं यह चाहता हूं कि मेरे शहर, मेरे राज्य और मेरे देश के बच्चे चेस में आगे बढ़ें और ‘पंजाब केसरी’ की यह प्रतियोगिता उनके लिए अभ्यास का एक मंच बने।
प्रश्र : प्रतियोगिता के लिए कोई भी एंट्री फीस न लेने के पीछे क्या सोच है?
उत्तर : इसका सारा श्रेय मेरे पिता श्री अविनाश चोपड़ा जी को जाता है। उन्होंने मुझे कहा कि बेटा किसी भी खिलाड़ी से एक रुपया भी चार्ज नहीं करना है। हम समाज के लिए कुछ करना चाहते हैं और इसके लिए हमने उन बच्चों से कुछ नहीं लेना जिनमें आगे चल कर देश के लिए खेलने की संभावना है तो मैं कुछ बोल नहीं पाया। अखबार के जरिए यदि मैं समाज में सुधार कर सकता हूं तो मैं यह क्यों न करूं?