Abhishek Srivastava : अतिरिक्त काबिलियत और कलाकारी को छोड़ दें, तो अनुराग कश्यप के किसी भी उद्यम में मुझे पता नहीं क्यों उनकी नीयत पर संदेह होता है। मसलन, 14 जुलाई से सोनी टीवी पर शुरू हुए ”युद्ध” नाम के धारावाहिक को लें जो अमेरिकी धारावाहिक ”बॉस” की नकल है और अपनी आज़ादी वाले दिन से ठीक आधा घंटा पहले यानी 14 अगस्त की रात साढ़े ग्यारह बजे खत्म हो जाएगा। दो महीने में यह सीरियल क्या तीर मारेगा यह तो नहीं मालूम, लेकिन बड़ी स्टार कास्ट की खिचड़ी और सस्पेंस थ्रिलर के बहाने यह प्रोग्राम टीवी देखने वाले मध्यवर्ग के दिमाग में शायद कुछ धारणाएं रोपना चाह रहा है।
जैसे, युधिष्ठिर सिकरवार (अमिताभ बच्चन) के बेटे को आज नक्सली उठा ले गए। उसने नक्सलियों से पूछा कि क्या चाहते हो। एक महिला नक्सली ने जवाब दिया, ”तुम्हारे धंधे में हिस्सा।” फिर एक एनजीओ वाला लाल गमछाधारी मध्यस्थ अमिताभ बच्चन से मिलने आया। उसने सुझाव दिया कि इस अपहरण की घटना का फायदा उठाकर आदिवासियों और एआइएलएफ (काल्पनिक नक्सली संगठन) के बीच अविश्वास पैदा किया किया जा सकता है। वह बोला, ”फूट डालो और राज करो।”
कॉरपोरेट और आदिवासी के बीच जल, जंगल और ज़मीन की लड़ाई क्या इतनी सरलीकृत की जा सकती है? मतलब, अनुराग कश्यप की टीम अगर अमिताभ बच्चन की आड़ में मूर्खताओं के बीज सामान्य दर्शकों के दिमाग में बोएगी तो वह जस्टिफाइ हो जाएगा? मानिए न मानिए, अनुराग कश्यप नाम का ये आदमी संदिग्ध है।
जनपक्षधर पत्रकार और एक्टिविस्ट अभिषेक श्रीवास्तव के फेसबुक वॉल से.
Comments on “मानिए न मानिए, अनुराग कश्यप नाम का ये आदमी संदिग्ध है”
मूझे याह सेरिअल एकदम बकवास लगी अमिताभ बच्चन की आड़ में मूर्खताओं के बीज सामान्य दर्शकों के दिमाग में बोना याह गळतबात हे
Anurag Kashyap ke dimagi pagalpan ka bhahu bada namuna hai Yaha tak Anurag ne Amitabh Bachhan Ko bhi nahi choda