संपादक महोदय
भड़ास 4 मीडिया,
मैं अपने मीडियाकर्मी पति और उनके दबदबे की शिकार एक पीडिता हूँ और अब आपके वेब पोर्टल के सिवा किसी पर भरोसा नहीं दिख रहा। मैं करीब आठ साल से अपने पति की ज्यादतियां, अत्याचार और दबदबे से त्रस्त हूँ। मेरे पति अभिषेक वर्मा एक मीडियाकर्मी हैं और फिलहाल न्यूज नेशन चैनल में बतौर सीनीयर प्रोग्रामिंग एडिटर जुड़े हैं। मैं भी एक निजी कंपनी मे एचआर मैनेजर के पद पर हूँ। हालांकि हम दोनों की शादी अपनी पसंद से परिवार की रजामंदी से हुई थी, लेकिन कुछ ही दिनों बाद मेरे पति ने अपना लालची चेहरा दिखा दिया।
मेरे पिता जो कि महाराष्ट्र में एक सरकारी बैंक अधिकारी हैं, ने शादी के वक्त दान , दहेज, गहनों, उपहार और जरूरत की वस्तुएं देने में कोई कमी न की और न बारात के आवभगत में, फिर भी मेरे पति को मकान चाहिए था। मुझपर दबाव बनाया गया, लेकिन जब मैंने अपने पिता से मांगने के लिए मना कर दिया तो मुझे प्रताड़ित किया जाने लगा गया। जब पिता को यह बात पता चली तो उन्होंने किसी तरह दस लाख रुपये जमा कर उन्हें (बैंक ट्रांस्फर और नक़द के जरिए) दे दिए। इस बीच प्रताड़ना के कारण मेरा मिसकैरिज भी हो गया। गाजियाबाद में उन्होंने सन 2014 में अपने नाम मकान खरीद लिया। कुछ दिनों तक सबकुछ ठीक रहा, फिर कार खरीदने की बात शुरू हो गयी। फिर वही ड्रामा। मेरा दोबारा मिस कैरिज हो गया। हार कर मैंने अपने अकाउंट से कार की भी पेमेंट दे दी। कार भी पति ने अपने नाम पर ही रजिस्ट्री करवा ली। यहां तक कि घर की ईएमआई भी मेरी तनख्वाह से ही देने का दबाव बनाया। मैंने वह भी सह लिया।
इधर कुछ दिनों से मेरे ससुराल वालों ने यह कहना शुरू कर दिया कि मैं बांझ हूँ, इसलिए उनके बेटे की दूसरी शादी होनी चाहिए। जब मैं इसके लिए तैयार नहीं हुई तो मुझे तलाक लेने का दबाव बनाने लगे। प्रताड़ना पहले से भी ज्यादा। 2018 में मेरे सर पर इतना गंभीर वार किया कि कई महीनों तक मेरा इलाज चला। मैंने अपने पति की मैक्स हॉस्पीटल में साइकोलॉजिकल काउंसिलिंग भी करवायी। कुछ दिन शांत रहने के बाद एक दिन अचानक मेरे पति ने मुझसे कहा कि अब वो प्रयागराज में अपने घर जा रहे हैं और तुम भी वहीं आओ तभी हमलोगों का फैसला होगा तब मैं भी प्रयागराज आगयी। 27 मार्च को जब मैं ससुराल पहुँची तो वहां मुझे देखते ही पूरा परिवार लड़ने लगा कि तलाक दे दो। मैंने देखा कि मेरी अलमारी, जिसमें मेरे गहने और कपड़े ते, वो भी खाली थी। जब मैंने इस बारे में पूछा तो मेरे पति अभिषेक वर्मा और उसके मा बाप ने मेरे साथ मारपीट शुरू कर दी और अभिषेक ने मेरे दुपट्टे को मेरे गले में लपेट कर खींचना शुरू कर दिया। मैं तड़फड़ाने लगी तो मेरी सास और मेरे ससुर ने मेरे दोनों हाथ पकड़ कर मुझे दीवार से लगा कर खड़ा कर दिया। मैं किसी तरह उन्हें झटका देकर घर से बाहर भागी और शोर मचाने लगी। संयोग से मोहल्ले के लोग जमा हो गये तो मेरे ससुराल वाले मुझे बाहर छोड़कर घर के भीतर चले गये।
मैं भागकर अपने एक परिचित के यहां पहुँची और थोड़ा सुस्ता कर थाने पहुँची। वहां पहुँचने पर देखा कि मेरे पति अपने दल-बल समेत वहां विराजमान हैं। उन्होंने मेरे खिलाफ एफआईआर लिखाने की भी कोशिश की, लेकिन पुलिसवालों ने बिना कोई ठोस आधार के रिपोर्ट लिखने से मना कर दिया। पुलिस पर दबाव बनाने के लिए मेरे पति स्थानीय पत्रकारों की टोली और ले आये थे। मुझे पता चला कि मेरे पति के घर पर दो-तीन चैनलों के ओबी वैन भी पहुँचे थे।
मेरे गले पर दुपट्टा कसने के कारण लाल निशान पड़ गया था और मेरी तबीयत भी खराब हो रही थी। (फोटो भेज रही हूँ) जब थानेदार साहब ने मेरी हालत देखी तो मुझे बैठने को कहा। फिर मैंने अप्लिकेशन लिख कर दिया जिसपर रिपोर्ट तो दर्ज हो गयी (रिपोर्ट संलग्न है), लेकिन हत्या के प्रयास की धारा नहीं लगायी गयी। हालांकि मेडिकल रिपोर्ट में निशानों के बारे में साफ जिक्र था, लेकिन लग रहा था जैसे पुलिस किसी दबाव में है। हमलोग अगले दिन भी थाने गये, लेकिन आईओ ने कहा कि कोई भी धारा लगाने से पहले पूरी जांच करेंगे। मुझे बताया गया कि मेरे पति ने न्यूज नेशन और नेटवर्क-18 के कुछ वरिष्ठ पत्रकारों से पुलिस के उच्चाधिकारियों पर दबाव बनाया है I सवाल यह उठता है कि कोई भी मीडिया व्यक्ति इस तरह का घिनौना अपराध करता है और मीडिया समुदाय उनके पावर गेम का इस्तेमाल करके उनके पक्ष में खड़ा होता हैI
-तूलिका वर्मा
ओम प्रकाश
April 6, 2021 at 11:33 pm
मैडम आपको सीधे महिला आयोग जाना चाहिए।
राजेन्द्र मिश्र
April 14, 2021 at 5:55 pm
अमानवीयता की सीमा से परे की यह घटना हैं. इसमें स्थानीय समाज सुधारकों सहित सामाजिक संस्थाओं को आगे आने की जरूरत है .
पत्रकार तोप नहीं होता है.उसके कृत्य की सजा उसे मिलनी ही चाहिए…