Awadhesh Kumar : एक केन्द्रीय मंत्री का शिष्टाचार… कई बार कोई भी अपने विनम्र और सभ्य व्यवहार से कैसे किसी का दिल जीतता है या अपना मुरीद बना लेता है इसका उदाहरण मुझे हाल के दो कार्यक्रमों में देखने को मिला। लाल बहादूर शास्त्री संस्कृत विद्यापीठ में पूर्वांचल के सांसदों का एक अभिनंदन समारोह था। वहां रेल राज्यमंत्री श्री मनोज सिन्हा भी आए। वे गाजीपुर से भाजपा के सांसद हैं। एक-एक व्यक्ति से जिस तरह वे बातें कर रहे थे, लगा ही नहीं कि कोई केन्द्रीय मंत्री वहां बैठा है।
मनोज सिन्हा
वहां बाद में लिट्टी चोखा खाने का कार्यक्रम था। उन्होंने सब लोगों के साथ नीचे पंक्ति में बैठकर भोजन किया। यही नहीं उसके बाद भी वे वहां से गए नहीं। बार-बार कहते रहे कि जब तक सारे लोग खा नहीं लेंगे मैं यहां से जाउंगा नहीं। भाव यह था कि लोग हमारे अभिनंदन में आए हैं तो फिर मेरा दायित्व है कि सबलोगों का भोजन हो जाए और सब जाने के लिए निकले तब मैं भी निकलूं। यही उन्होंने किया। मैं निकल गया, लेकिन वे वहां रुके रहे। हालांकि मेरी राजनीतिक व्यवहार की कल्पना में यह सामान्य व्यवहार है। यानी ऐसा ही होना चाहिए लेकिन होता तो है नहीं। यहां तो जिसके पास कोई काम नहीं, वह मंत्री, नेता, एवं नौकरशाह भी अपने को व्यस्त दिखाने के लिए भाषण देता और चल देता है। या मुख्य कार्यक्रम खत्म होते ही चल देते हैं, मानो उनके जीवन में आपातकाल हो। यही तो वीआईपी संस्कृति का विकार है जिसका अंत हम चाहते हैं। हालांकि मनोज सिन्हा की तरह और भी उदाहरण हैं, लेकिन कम ही हैं।
कल प्रभाष परंपरा न्यास के कार्यक्रम में भी वे आए थे। मैं भी चूंकि अगली पंक्ति में बैठा था, इसलिए सब कुछ देख सका। जब केन्द्रीय गृहमंत्री राजनाथ सिंह आ गए, वी जी वर्गिज आए और जगह थोड़ी कम पड़ने लगी तो वे उठे और मेरे बगल में आकर एक प्लास्टिक की कुर्सी लिया और बैठ गए। लोग दौड़े कि आप वहीं बैठे, उन्होंने कह दिया कि, अरे ठीक है, फिर एक बहाना बनाया, अवधेश जी का सान्निध्य मिलना कम है। हालांकि मेरे सान्निध्य की उनको क्या आवश्यकता है। खैर जिद करके लोगों ने उनकी केवल कुर्सी बदल दी, यानी काठ की एक गद्दी वाली कुर्सी दी, लेकिन वो कार्यक्रम के अंत तक बैठे रहे। फिर बाहर निकले तो जितने परिचित जहां दिखे उनसे मिलते रहे खड़ा होकर।
अभी एक परिचित ने बताया कि किसी कार्यक्रम में रेलवे से संबंधित एक आवेदन उनको दिया तो उन्होंने कहा कि देखिए यहां इसे समझना मुश्किल है, आप सुबह घर या फिर कार्यालय आइए और विस्तार से समझाइए तभी मैं कुछ कर पाउंगा। मैंने पता किया तो ऐसा वे सभी के साथ करते हैं। किसी को टालते नहीं। यदि तत्काल बात समझ में नहीं आई या भीड़ है तो उन्हें घर या कार्यालय बुलाते हैं और समझने के बाद बता देते हैं कि यह काम हो सकता है या नहीं और होगा तो कैसे, आपको क्या करना होगा, हम क्या कर सकते हैं…..आदि। यह भी पूछते हैं कि कहां ठहरे हैं, कोई दिक्कत है कि नहीं, जाने के लिए टिकट कन्फर्म है कि नहीं …आदि।
जितना मैंने मनोज सिन्हा के बारे में पता किया वे एक अत्यंत मेधावी छात्र रहे। हमेशा शीर्ष श्रेणी में उत्तीर्ण हुए, वाराणसी विश्वविद्यालय से गोल्ड मेडल तक लिया, विश्वविद्यालय में पहला स्थान भी प्राप्त किया। एक सफल छात्र नेता रहे। लेकिन इतना लो प्रोफाइल रहने की कोशिश करते हैं कि कोई यह समझ ही नहीं पाएगा वो काफ ज्यादा पढ़े लिखे हैं। दल कोई भी हो यह मैंने राजनीति में एक बेहतर मिसाल के लिए लिखा है। मेरी ओर से मनोज सिन्हा ही जो शुभकामनायें, अभिवादन। वे राजनीति में और बेहतर जगह पाएं ताकि जन केन्द्रित सत्ता की कल्पना कहीं तो दिखे। वे राजनीति में जहां भी रहें ऐसे ही मिसाल बने रहें…..और उनको देखकर दूसरे नेता भी ऐसा ही व्यवहार करने को प्रेरित हों।
वरिष्ठ पत्रकार अवधेश कुमार के फेसबुक वॉल से.
ek tha tiger
July 22, 2014 at 5:10 am
Ha manoj bhya hamesha he ase he rhe hai
Amit Kumar Pandey
July 22, 2014 at 8:08 am
मनोज सिन्हा को उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री के तौर पर प्रोजेक्ट करना कैसा रहेगा दोस्तों………..
pramod singh banaras
April 4, 2015 at 10:44 am
manoj bhaiya bade sadagi pasand vyakti hain aise logo ka rajniti main rahna shubh sanket hai