आलोक कुमार : एबीपी न्यूज के तमाशेबाजों ने डरा कर रख दिया। शो हिट कराने के लिए मेरे प्रिय शायर मुनव्वर राना को निशाने पर ले लिया। हमारे दौर के सबसे संवेदनशील रचनाकार मुनव्वर को एवीपी वालों ने “निशान ए साहित्य अकादमी” और सम्मान की एक लाख रूपए की राशि के साथ आने को राजी कर लिया था। लाइव शो में गजब का डायलॉग बोलकर मुनव्वर साब ने सम्मान वापसी का एलान कर दिया। यह हमारे इर्द गिर्द बढती असहिष्णुता पर जबरदस्त तमाचा है। मैं अंदर से हिल गया हूं और सचमुच लगा रहा है कि अब अति हो गई है। सरकार को सम्मान लौटाने वालों के साथ तत्काल संवाद कायम करना चाहिए। इसके लिए साहित्यकारों की संवेदना की इज्जत करने वाले व्यक्ति को सामने करना चाहिए। वरना हमारी शानदार पहचान को घातक चोट लगने का सिलसिला जारी रहेगा।
Santosh Manav : श्री मुनव्वर राणा आपका बहुत सम्मान करता हूं । आपकी कविता मेरे हिस्से मे आई माँ सुनकर पढ़कर आज भी कलेजा कांप जाता है । लेकिन जिस तरह आपने आज अकादमी पुरस्कार लौटाया । वह जंचा नहीं । आप आज साहित्यकार की तरह नहीं बोले । दुख हुआ । आप भी?
Anand Singh : मुनव्वर राणा के नाम एक खुला खत… हर दिल अजीज, शायरों के शायर, जनाब मुनव्वर राणा जी, इस नाचीज का सलाम कुबूल करें। आज एबीपी न्यूज पर आपको बोलते देखा। आपके तेवर देखे। आपकी भावनाएं देखीं। आपकी भंगिमाएं देखीं। आपको साहित्य अकादमी का पुरस्कार और बैंक आफ बड़ौदा का वह चेक लौटाते देखा, जिस पर आपने एक लाख रुपये और नीचे अपना दस्तखत किया था। आपने एबीपी न्यूज के मंच का बेहतरीन इस्तेमाल किया। आपने बीच बहस में, चर्चा के दौरान जिस तरीके से साहित्य अकादमी के पुरस्कार को लात मार दिया, वह पूरे देश ने देखा। अगर एबीपी न्यूज विदेशों में भी दिखता हो तो विदेश के लोगों ने भी आपको साहित्य अकादमी का पुरस्कार लौटाते देखा ही होगा। मुझे लगता है, आप अपनी जमात में शहीदाना दर्जा प्राप्त करने में कामयाब हो गए। आपकी इस चालाकी पर आपको दिल से बधाई। एबीपी न्यूज पर जिस नजाकत के साथ आपने पुरस्कार लौटाया, वह तो हिंदी की सस्पेंस वाली फिल्मों को भी मात कर देगा। 25 साल पहले, जब मैंने साहित्य पढ़ना शुरु किया था तो गद्य में मेरे दो हीरो थेः पहले प्रेमचंद, दूसरे रेणु। जब जगन्नाथ जैन कालेज के हिंदी के विभागाध्यक्ष डा. देवनंदन सिंह विकल सर के कहने पर मैंने शायरी पढ़नी शुरु की तो कोडरमा रेलवे स्टेशन के एक मात्र बुकस्टाल से मैंने आपकी ही किताब उठाई। क्यों। ये आप कभी नहीं समझ सकेंगे। मैंने आपको कभी मुसलमान के रूप में नहीं देखा। कैसे देखता। मेरा नजरिया ये था कि कलाकार, साहित्यकार, पत्रकार किसी जाति के तो होते ही नहीं और न ही वे किसी धर्म विशेष के होते हैं। बेशक, आप मुसलमान हों, हिंदू हों, गुरदयाल सिंह सरीखे सिक्ख हों या फिर फर्माडों या लियो तालस्यताय सरीखे क्रिश्चन, अगर आप साहित्य से जुड़ें हैं तो आप सिर्फ एक इंसान हैं। जाति-मजहब तो कहीं रहता ही नहीं, एक साहित्यकार के साथ।
जनाब, आपने अपनी जुबान से कहा है एबीपी न्यूज पर कि अखलाक को साजिशन मार-मार कर खत्म कर दिया गया, इसलिए मैं पुरस्कार लौटा रहा हूं। आपने अपने मुंह से कहा है कि देश में लिखने-पढ़ने लायक माहौल नहीं है, इसलिए आप पुरस्कार लौटा रहे हैं। कमाल है। देश की रक्षा करने वाले हेमराज का सिर पाकिस्तान की आर्मी काट कर ले जाती है तब आपने क्यों नहीं विरोध किया। तब आपने क्यों नहीं कहा कि पाकिस्तान के इरादे घटिया हैं और मैं कभी पाकिस्तान जाकर शेर-औ-शायरी नहीं करूंगा। अखलाक की हत्या हुई, यह आपको दिख गया। हेमराज का सिर काट दिया गया, यह आपको क्यों नहीं दिखा राणा साहेब। मुझे यह कहने में अत्यधिक तकलीफ हो रही है कि मुनव्वर राणा भी हकीकी हिंदुस्तानी मुसलमान नहीं रह गए। राणा साहेब भी हिंदू-मुसलमानों में भेद करते हैं। यह साहित्य जगत के लिए कहीं से ठीक नहीं है। गोरखपुर में कोई तीन साल पहले आपको सुना था मैंने। इस्लामिया इंटर कालेज कैम्पस में। आप शेर सुना रहे थे, मैं रो रहा था। आप मां सुना रहे थे। मैं दो साल पहले अपनी मां को खो चुका था। आपकी कविता की मां और मेरी अपनी मां के दरम्यान वह सब कुछ था जो आपकी कविता में थी। एकरूपता थी। इसीलिए मैं दिल से आपकी इज्जत करता था। मुझे क्या मालूम कि मैं साहित्याकार नहीं वरन एक इस्लाम को मानने वाले, एक अखलाक की हत्या के खिलाफ अकादमी पुरस्कार लौटाने वाले राणा साहेब को सुन रहा हूं। साहित्यकार सिर्फ एक इंसान होता है। न उससे कम, न उससे ज्यादा। जब लिटरेचर से जुड़े लोग हिंदू और मुसलमान हो जाएंगे तो इस देश को नष्ट होने में कितना वक्त लगेगा भला। बहुत सारे लोगों ने अखलाक की हत्या के खिलाफ, सरकार के रवैये के खिलाफ आक्रोश जाहिर करते हुए अकादमी पुरस्कार लौटाए हैं। अकादमी पुरस्कार को लौटाना एक सियासत के तहत है। मैं इसकी कड़ी निंदा करता हूं। लेकिन, जिस तरीके से राणा साहेब ने पुरस्कार लौटाया, एक चैनल के प्रोग्राम को जिस कदर उन्होंने हाइजैक कर लिया, वह इस देश के सभ्य लोगों के लिए, साहित्य के रसिकों के लिए बहुत बड़ा झटका है। यह झटका देश देर तक महसूस करता रहेगाः जैसे भूकंप के झटकों के बाद देश ने महसूस किया था। मैं नरेंद्र मोदी सरकार की आलोचना करने वाला कलम का सिपाही हूं। आलोचना के कई कारण हैं। लेकिन कोई इस बात के लिए मोदी सरकार की आलोचना करे कि देश में पढ़ने-लिखने का माहौल नहीं रह गया है और हालात इतने खराब हो गए हैं कि लोग पुरस्कार लौटा रहे हैं, तो मैं सिर्फ हंस सकता हूं। मैं उनकी सोच पर सिर्फ तरस खा सकता हूं। पुरस्कार लौटाने वाले हमारे साहित्यकार लोग इस बात पर क्यों नहीं चर्चा करते कि राजसत्ता से ज्यादा अहम है जनता के बीच की किस्सागोई। पूर्ववर्ती कांग्रेस सरकार के तलवे चाटने वाले हरामखोर किस्म के साहित्याकार लोगों को मोदी सरकार में कोई तवज्जो नहीं मिल रही है तो वे पुरस्कार लौटा रहे हैं। मैं पुरस्कार लौटाने वाले सभी साहित्यकारों को इस श्रेणी में नहीं रख रहा पर पाठक गण यह तय कर लें कि लिखने वाले कौन हैं और राजसत्ता का प्रसाद चाटने वाले कौन। -आनंद सिंह, प्रधान संपादक, मेरी दुनिया मेरा समाज, गोरखपुर
पत्रकार आलोक कुमार, संतोष मानव और आनंद सिंह के फेसबुक वॉल से.
govind
October 20, 2015 at 4:06 am
ye rana jaise log noutanki wale h… Baithe baithe khali dimag socha kyo na kuch harkat ki jaye…
Deepak Tiwari
October 18, 2015 at 2:11 pm
जब गोधरा में 56 हिन्दुओ को मुसलमानो ने ट्रेन में पेट्रोल डाल कर जला डाला गया, तभी किसी हरामी #मुनावर राणा ने आवाज़ नहीं उठाई!!!!!!!!!
bunty kumar
October 18, 2015 at 10:23 pm
https://www.youtube.com/watch?v=YLV0EPb97SY
lalitpandey
October 18, 2015 at 11:24 pm
kabhi haste to kabhi rote dekha,maine aasuo ko dil ka zakham dhote dekha.
Sanjeev Singh thakur
October 19, 2015 at 11:03 am
anand Singh saheb ne bilkul sahi likha h.