पिछले दिनों लखनऊ में हिंदुस्तान टाइम्स और एबीपी न्यूज का एक समिट था. इसमें सीएम अखिलेश यादव भी बुलाए गए थे. लगे हाथ प्लान हुआ कि क्यों न एबीपी न्यूज के प्रोग्राम ‘प्रेस कांफ्रेंस’ के लिए अखिलेश यादव का इंटरव्यू हो जाए. दिबांग अपनी पूरी पत्रकार मंडली के साथ समिट वाले स्थल के बगल में ही बनाए गए स्टूडियो में बैठे. अखिलेश यादव भी आ गए. प्रोग्राम शुरू हुआ.
तीखे सवालों का दौर शुरू होते ही अखिलेश यादव को समझ में आ गया कि उन्हें अब सच का सामना करना ही पड़ेगा. ऐसे में अखिलेश ने शुरुआती कुछ सवालों का घुमा-फिरा कर जवाब देने के बाद चुप्पी साध ली और अंतत: अपनी व्यस्तता का हवाला देते हुए बाद में फिर कभी ‘प्रेस कांफ्रेंस’ प्रोग्राम शूट करने के लिए कह दिया. कुल मिलाकर आठ दस मिनट तक ही ये प्रेस कांफ्रेंस कार्यक्रम रिकार्ड हो पाया था.
लेकिन असली सवाल इसके बाद उठता है. क्या एबीपी न्यूज और दिबांग में हिम्मत है कि एक नेता जो शो छोड़कर चला जाता है, उसका जितना भी प्रोग्राम रिकार्ड हुआ है, उसे दिखा सकें. शायद नहीं. क्योंकि हिंदुस्तान टाइम्स वालों ने भी एबीपी न्यूज वालों से कहा है कि अगर ये रिकार्ड हुआ कार्यक्रम दिखाएंगे तो अखिलेश नाराज हो जाएंगे और इतने बड़े राज्य के शासन की नाराजगी से बिजनेस पर बहुत बुरा असर पड़ेगा. इस तरह कारपोरेट के दबाव में दिबांग की पत्रकारिता दफन हो गई. इस बारे में जब सच्चाई जानने के लिए दिबांग को फोन किया गया तो उन्होंने फोन नहीं उठाया.
कल्पना करिए कि अखिलेश यादव की जगह अगर अरविंद केजरीवाल होते और इस तरह की हरकत करते तो यह चैनल क्या पालिसी अपनाता. शायद तब आसमान सिर पर उठा लेता और जोर जोर से चिल्लाते हुए फुटेज दिखाता कि देखो, मीडिया ने आइना दिखाया तो नेताजी उठकर चल दिए, भाग गए, तानाशाही रवैया अपना लिया आदि इत्यादि. इसीलिए कहा जाता है कि आज के दौर में कारपोरेट मीडिया खबरों कार्यक्रमों को लेकर बेहद चूजी, सेलेक्टिव है. जिस कार्यक्रम या खबर से उसका बिजनेस प्रभावित होगा, वह कार्यक्रम या खबर तुरंत जमींदोज. बाकी जिससे कोई फरक नहीं पड़ता उसे जोर शोर से विचारधाराओं की चाशनी में लपेट कर दिखाओ, चिल्लाओ.
दिबांग में अगर तनिक भी नैतिकता है तो उन्हें एबीपी न्यूज पर दबाव डालना चाहिए कि वह अखिलेश यादव वाले एपिसोड को, जितना भी शूट हुआ था, दिखाए. एबीपी न्यूज अगर ऐसा नहीं करता है तो दिबांग को प्रेस कांफ्रेंस व एबीपी न्यूज से जिस तरह का भी नाता है, तोड़ लेना चाहिए. ऐसा इसलिए क्योंकि एबीपी न्यूज से ज्यादा दिबांग के साख पर सवाल खड़ा होता है.
भड़ास के एडिटर यशवंत की रिपोर्ट.
deepak bagri
October 9, 2015 at 5:08 am
एक सच्चे पत्रकार की अच्छी कवरेज को इसलिए महत्व नहीं दिया जाता क्योकि इस खबर के कारण बिजनेस में प्रभाव पड़ने वाला है |अब वक्त आगया है जब हम पत्रकारों को एक गोलबंद होना चाहिए और इस प्रकार की घटनाओं का पुरजोर विरोध करना चाहिए |
Prakash
October 5, 2015 at 5:42 am
यह बिल्कुल सही कहा यशवंत जी आपने क्योंकी दिबांग जी भी एक अच्छे पत्रकार हैं और कई युवा जो पत्रकारिता की पढ़ाई कर रहे हैं उन्हें अपना गुरु मानते हैं। ऐसे में जरुरी है कि अगर ऐसा कुछ वाकई हुआ है तो अर्ध सत्य ही टीवी पर दिखाया जाए।
Sanjeev Singh thakur
October 5, 2015 at 11:35 am
Very well said, Corporate ne naitikata khatam kar di.