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नकदी संकट की खबर को टेलीग्राफ ने यूं लीड बनाया है- Accomplished : ‘cashless’ goal

Sanjaya Kumar Singh : नकदी की कमी की खबर को टेलीग्राफ ने आज लीड बनाया है। शीर्षक है – Accomplished : ‘cashless’ goal. कैशलेस होने का लक्ष्य पूरा हुआ। भक्त भाइयों का कहना है कि बाजार में नोटबंदी से पहले जितनी नकदी थी उससे ज्यादा नकद है। फिर भी एटीएम खाली हैं तो कोई दबाए बैठा है। लेकिन सवाल तो यह है कि, जब सिर्फ आप की पार्टी कमा रही है तो दबाएगा कौन। वैसे भी, नोटबंदी तो दबा वाला बाहर लाने के लिए हुई थी। फिर दबाया जा रहा है और आप कितने भोले हैं कि कुछ समझ में नहीं आ रहा है।
Uday Prakash : सच यह है कि नगद ग़ायब है। भारतीय अर्थव्यवस्था ऐतिहासिक रूप से साधारण जनता के लिए ‘खुख्ख’ (ख़ाली) हो गयी है। ATM कराहता हुआ ख़ाली साँस उगल रहा है। GDP के विकास का मतलब ‘देश का विकास’ नहीं है। चुनाव जो भी पार्टी जीते, जनता हार रही है। But who am I to say like this? Let all rulers debate and shout on TV channels.

Lal Bahadur Singh : और अब ATM खाली ! काश, देश ने तभी समझ होता! नक़ल मौलिक से बेहतर नहीं हो सकती ! वह अधिक से अधिक मूल की ख़राब फोटो/कार्बन कापी ही हो सकती है! भारत में नव-उदारवाद के आदि पुरुष, अर्थशास्त्री मनमोहन सिंह से बेहतर उन्हीं नीतियों को उनकी नक़ल करके कोई और लागू नहीं कर सकता ! उसका उनसे भी बदतर होना तय है!! 4 साल में देश की अर्थव्यवस्था का systematic विध्वंष -ढहती विकास दर, गिरता रोजगार, बढ़ती महंगाई, चौपट बैंकिंग संस्थाएं, जनता की अकथनीय यातना!

संतोष त्रिवेदी : दस दिन पहले एटीएम से २०००० ₹ निकालने गया।एक बार में निकालने से इंकार किया तो मैंने रक़म कम करके पहले पंद्रह,फिर दस ट्राई किया पर फिर भी रुपए नहीं निकले।आख़िर में जब पाँच हज़ार की रक़म के लिए ट्राई किया तो २०० ₹ के नोट में पैसा मिला।फिर मैंने दो बार ऐसे ही और निकाला।सभी दो सौ के नोट थे।इससे मुझे ट्रांजेक्शन भी कई बार करना पड़ा। हाँ,अभी दो दिन पहले दूसरे ATM से पाँच हज़ार निकाले तो २००० ₹ के दो नोट और बाक़ी के पाँच सौ के नोट थे। दिल्ली में फ़िलहाल कैश की क़िल्लत नहीं सुनी।

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Prashant Mishra : परसो भोपाल में एटीएम से पैसा निकालने के लिए कम कम से 15 एटीएम घूमें। हर एटीएम पर पांच लोग और मिल जा रहे थे। वो भी पैसा निकालने के लिए चक्कर काट रहे थे। पानी पीने का भी पैसा नहीं था कैश में। लास्ट में औरा मॉल साइड पैसा मिला। मैं जिन जिन एटीएम पर गया वहां हमेशा पैसा मिल जाता था। लेकिन अब दिक्कत हो रही है। नोटबंदी को सालों हो गए। लेकिन हालात ठीक नहीं हैं। लखनउ से लेकर पटना तक, छपरा से लेकर गोरखपुर तक।

Khushbu Singh : कुछ हफ़्तों पहले अल्मोड़ा जाना हुआ। आपको बता दूं कि पूरी मार्किट के 7 से 8 ए टी एम घन्टो घूम घूम के ट्राई किये लेकिन कहीं से भी पैसे नही निकले। लास्ट में एक ए टी एम पर निकालने में सफलता हुई लेकिन मुझे अपनी लिमिट 10,000/- से 4000 करनी पड़ी। दिल्ली की हालत – जिस पॉइंट पर तीन चार ए टी एम थे, वहां केवल वर्किंग कंडीशन में था। लाज़मी है चार ए टी एम होते हुए भी लाइन लगी थी। उसके बाद 10,000 की ट्रांजेक्शन दो बार डिनाय हुई। फिर 5000 के लिए ट्राई किया गया। सब 200/- के नोट निकले। अनचाही एक और ट्रांजेक्शन करनी पड़ी। सवाल ये था कि 2000/- के नोट हटाने थे तो हटाते उसकी जगह 500/- के नोट रखने चाहिए थे। अनचाही ट्रांजेक्शन से बचाया जा सकता था। लेकिन शायद मंशा ही नही थी।

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Jitendra Narayan : समस्तीपुर,पटना सहित पूरे बिहार,बंगाल,उड़ीसा की स्थिति नगदी के बिना खराब है…बैंकों द्वारा लोगों को पर्याप्त नगदी नहीं दिए जाने के कारण LIC के इतिहास में पूरे बिहार में मार्च में व्यवसाय पिछले साल के मार्च की अपेक्षा कम हुआ है…

Narendra Nath : कुछ दिन पहले सोशल मीडिया पर मैंने कुछ लोगों से मिले फीडबैक के आधार पर बैंक और ATM में पैसे की कमी के बारे में लिखना शुरू किया। शुरू में तो सरकार के समर्थक इस तर्क के दबाव बनाने की कोशिश कि-“मुझे तो कोई दिक्कत नहीं है और यह साजिश के तहत अफवाह फैलाई जा रही है”। लेकिन खासकर ट्विटर पर जिस तरह का फीडबैक मिला उससे लगा कि हालात तो और भी गम्भीर है जितना मुझे भी नहीं लगा। न ब्राँच में जरूरत के हिसाब से लोगों को पैसा नहीं दिया जा रहा है। एटीएम तो बिल्कुल खाली है। बिजनेस स्टैंडर्ड में मित्र सोमेश झा ने मामला सामने आने के बाद डिटेल रिपोर्ट लिखी कि कई राज्यों में हालत बहुत गम्भीर है। लगातार लिखने का असर यह हुआ कि अब कम से कम यह मुद्दा बनता दिख रहा है। लेकिन सरकार अभी भी सोई है। लोग पैसे के बिना भटक रहे हैं। जरूरी काम नही हो पा रहा है।इस कारण कई अफवाह भी फैल रही है। लोग नोट की होर्डिंग भी करने लगे हैं। 2000 के नोट बाजार से गायब हो रहा है। यह हालत तब है कि जब सर्कुलेशन में नोट की संख्या नोट बंदी से पहले से भी अधिक है। लेकिन सरकार अभी भी सोई है। कुछ अपने अंधभक्त के फीडबैक से आराम है कि सब ठीक है और बस मीडिया और विपक्ष की यह साजिश है।

सौजन्य : फेसबुक

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