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अदानी की इन 4 कंपनियों में मॉरीशस से 74% निवेश हुआ, मोर्गन स्टेनले ने जाँच शुरू की, सेबी भी लपेटे में आ सकती है!

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सौमित्र रॉय-

बड़ी खबर… मोर्गन स्टेनले कैपिटल इंटरनेशनल ने अदानी की पड़ताल शुरू कर दी है। अदानी विल्मर को छोड़कर बाकी सभी कंपनियां मोर्गन और एफटीएसई के दायरे में हैं।

अदानी को जल्द ही मुकदमे का सामना करना पड़ सकता है। इसमें सेबी भी लपेटे में आ सकती है।

अब सेबी को अपनी साख बचाने के लिए अदानी की कंपनियों को फौरन बॉम्बे स्टॉक एक्सचेंज से डिलिस्ट कर देना चाहिए, क्योंकि सेबी के नियमों के खिलाफ अदानी की कंपनियों में 74% निवेश जाली कंपनियों से हुआ है। खेला निर्णायक होने चला है।


अदानी के शेयर्स में कल की गिरावट सिर्फ एक पहलू है। अंतरराष्ट्रीय बाजार और निवेशकों पर असर दिखना बाकी है।

कल रात ही ब्लूमबर्ग ने बता दिया कि 4 फर्मों– अदानी ट्रांसमिशन, अदानी एंटरप्राइजेज, अदानी पावर और अदानी टोटल गैस को अब दुनियाभर के निवेश शक की नजर से देख रहे हैं, जिनमें मॉरीशस से 74% निवेश हुआ है।

ये पैसा उन संदिग्ध, जाली फर्मों से आया है, जो अदाणी परिवार के नियंत्रण में हैं।

हैरत की बात है कि कल कांग्रेस के बयान में इन जाली फर्म्स और उनमें टैक्स हेवन देश का पैसा झोंक रहे अदानी परिवार के खिलाफ़ एक शब्द नहीं कहा गया है।

इस तरह का लचर बयान न तो एक ही दिन में करीब 11 लाख करोड़ गंवा चुके निवेशकों को न्याय देगा और न ही देश को कॉरपोरेट–सत्ता–मीडिया के खतरनाक गठजोड़ से आजाद करेगा।

देखना यह है कि 2019 के पहले से ही हम दो, हमारे दो रटते राहुल गांधी का इस मसले पर क्या रुख होता है, जिनकी दो सरकारें अदानी को फ्री में फायदा पहुंचा रही हैं।

विपक्ष का रुख मोदी सरकार पर दबाव नहीं बनाएगा। दबाव विदेशी निवेशक और संस्थाएं बनाएंगी। ग्लोबल सीआईओ ऑफिस के सीईओ गैरी डूगन ने ब्लूमबर्ग को कहा कि अब निवेशक भारतीय बाजार में अपने निवेश की समीक्षा करेंगे।

अदानी का 20 हजार करोड़ का एफपीओ अब तलवार की धार पर है। अदानी इस पैसे का उपयोग पूंजी और कर्ज़ चुकाने में करना चाहते हैं। अगर इतना नहीं आया तो पैसा आएगा कहां से?

क्या मोदी सरकार इस मौके पर अदानी के साथ खड़ी होगी? या फिर साथ छोड़कर पूरी दुनिया को संदेश देगी कि वह कॉरपोरेट भ्रष्टाचार के खिलाफ़ है।

ऐसा हुआ तो भारत में आईएलएफएस और लेहमेन ब्रदर्स दोनों का इतिहास दोहराया जा सकता है और वह सिर्फ 8 कंपनियों को ही नहीं, देश के बैंकिंग ढांचे को तबाह कर देगा।

अगर मोदी सरकार अदानी को बेलआउट देती है तो पाई–पाई के लिए तरस रहा विपक्ष इसका विरोध कर पाएगा, जिसे चुनाव जीतने के लिए पैसा कॉर्पोरेट्स से ही आना है?

आखिर में, मोदी को इस वफादारी की क्या कीमत चुकानी होगी?


सितंबर 1967 में ब्लिट्ज ने पूछा था–सरकार बिरला की है या इंदिरा की? संसद इंदिरा गांधी की थी।

तब कांग्रेस के संसदीय सचिव चंद्रशेखर बोले थे–बिरला की।

आज 56 साल बाद 56 इंच की सरकार से कोई यही सवाल पूछे।

शेयर धारक तो आज भी असमंजस में हैं। लेकिन जवाब अभी भी वही मिलेगा–अदाणी–अंबानी की।

वक्त 56 साल से ठिठका हुआ है, क्योंकि अवाम को प्रगतिशीलता नहीं गुलामी पसंद है। कांग्रेस को भी अपनी गलतियों से पर्दा है।

मीडिया भी नहीं बदल सका, क्योंकि मेरे संपादकों ने गुलामी मंज़ूर की।

नतीज़ा–आज देश की तबाही है। सबके गुनाहों की फ़ेहरिस्त लंबी है।

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  • आपने करेंट अफेयर उठाया बधाई, यदि तुलनात्मक अध्ययन (आंकड़े) होता बेहतर लेख बनता ।

  • Fake news portal
    भाजपा एवं भारत के व्यपारिक घरानों के खिलाफ झूठे आरोप लगाने एवम भौंकने के इन्हे पैसे मिलते है

  • These types of people who only speaks against BJP and the Indian industrialists should be properly dealt by law as they are targeting Indian industrialists on fake news.

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