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सियासत

इस delist से बचने के लिए adani को अपनी कई कंपनियों में अपने शेयर बेचने पड़ेंगे!

चेतन दत्त-

Adani पर एक और मुसीबत – आसान भाषा में… MSCI – Morgan Stanley Capital International – दुनिया की सबसे मशहूर शेयर्स से संबंधित कंपनी ने कहा है कि अदानी के शेयर्स की free float में सब सही नहीं है और वो इसको review कर रही है।

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भारतीय शेयर बाज़ार में उसी कंपनी के शेयर ख़रीदे बेचे जा सकते हैं जिसके 25% शेयर पब्लिक के पास हों। इनको free float कहते हैं। ऐसी कंपनी पब्लिक लिमिटेड होती है। अगर कंपनी के मालिक के पास (उसके निकट संबंधियों समेत) 75% शेयर हो जाते हैं तो उस कंपनी के शेयर स्टॉक एक्सचेंज में ख़रीदे बेचे नहीं जा सकते। ऐसे शेयर्स को स्टॉक एक्सचेंज (शेयर बाज़ार) से हटा दिया जाता है और इस प्रक्रिया को delisting बोलते हैं। ऐसी कंपनी प्राइवेट लिमिटेड की श्रेणी में आ जाती हैं।

दुनिया में बहुत से लोगों के पास extra पैसा होता है जिसको वो अलग अलग देशों में invest करते रहते हैं। लेकिन उनको ये नहीं पता होता कि कहाँ पैसा लगाना ठीक रहेगा। हर देश की रिसर्च तो कर नहीं सकते। तो वो अपने पैसे को लगाने के लिए कुछ ऐसी companies की तरफ़ देखते हैं जिनका काम ही रिसर्च करना होता है। ऐसी कंपनियाँ सिर्फ़ शेयर में रिसर्च नहीं करतीं , बल्कि bonds और दूसरे कई investment के avenues की रिसर्च करके उनकी ratings देती हैं , अपने इंडेक्स बनाती हैं (एक अच्छी कंपनियों की सूची), यहाँ तक कि देशों की और banks की रेटिंग भी करती हैं।

ये broadly दो हिस्सों में बंटी हुई companies हैं – Rating agencies जैसे Moody’s , S & P etc और investment banking कंपनी जैसे Goldman Sachs, Morgan Stanley इत्यादि।

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विकासशील देशों में हमेशा पैसे की कमी रहती है (और labour cheap होती है ) पर विकसित देशों में surplus funds रहते हैं – उनके यहाँ के पेंशन funds, insurance companies, mutual funds, यहाँ तक कि वहाँ कि सरकारों के फंड्स, शहरों की municipality के फंड्स इत्यादि। उनके यहाँ पैसे की डिमांड कम होने के कारण उस पैसे को वो इन्वेस्ट नहीं कर सकते या करें तो अच्छा interest नहीं मिलता है। तो वो उस पैसे को इंडिया जैसे देशों में invest करते हैं जहां political stability हो, capital markets में transparency हो , legal framework अच्छा हो इत्यादि। पिछले तीस सालों में इंडिया में अरबों खरबों डॉलर आए हैं। सरकारी मदद को (उदाहरण दिल्ली मेट्रो), प्राइवेट कंपनियों में , और banks में भी। जब कोई कहता है कि हमें बाहर का पैसा नहीं चाहिए तो वो या तो ख़ुद मूर्ख या है या आपको उल्लु बना रहा है।

अब अदानी प्रकरण में हुआ ये है कि Hindenburg ने जो आरोप लगाया है उसका सार ये है कि अदानी की कंपनियों में जो पैसा आ रहा है वो उसका ख़ुद का ही है जो किसी अज्ञात source से Mauritius इत्यादि में जाता है और वहाँ से फ़र्ज़ी कंपनियों के द्वारा इंडिया भेजा जा रहा है। ध्यान रहे TMC सांसद Mohua Moitra ने 2021 में ऐसी ही बात संसद में उठाई थी (महुआ पहले investment banker थीं)। भारतीय क़ानून के हिसाब से ये money laundering है और ED इसी काम को पकड़ने के लिए बनी है (लोकल ड्रग्स या ब्लैक मनी पकड़ने के लिए नहीं, वो NCB या income टैक्स वालों का काम होता है)। adani की एक कंपनी अदाणी पॉवर में उसके ख़ुद के और मॉरीशस वाली उसकी बंधुओं की कंपनी के शेयर मिला कर उसकी holding 75% से कहीं ज़्यादा हो जाती है और इस हिसाब से adani power में trading बंद हो कर उसको delist कर देना चाहिए।

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अब यही बात Morgan Stanely ने बोल दी है। और उन्होंने ये भी कहा कि हम adani की कंपनियों का review कर रहे हैं कि उनको हमारे अच्छी कंपनियों के index से बाहर क्यों ना कर दें ! ऐसा होने पर कोई भी global investor adani में invest नहीं करेगा और Adani की कई कंपनियों ख़ासकर अड़ानी पॉवर पर शेयर बाज़ार से delist होने का दबाव आएगा। इस delist से बचने के लिए adani को अपनी कई कंपनियों में अपने शेयर बेचने पड़ेंगे। बीजेपी अपने निजी संबंधों के कारण adani को criminal केस से तो बचा लेगी पर विदेशों में adani को कौन पूछता है?

दुनिया के सबसे बड़े शेयर मार्केट निवेशक – Norwegian Wealth Fund ने अड़ानी में अपने सारे शेयर बेच दिये हैं (क़रीब 1700 करोड़)। France के Total group ने Adani के hydrogen प्रोजेक्ट में 4 बिलियन डॉलर की investment भी होल्ड पर डाल दी है।

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