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अदानी के लिए क्या आगे और भी तबाही है?

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सौमित्र रॉय-

रक्तरंजित शेयर बाजार में 48 बिलियन डॉलर का मार्केट कैप गंवाने के बाद असल सवाल यह है कि अदानी के लिए क्या आगे और भी तबाही है?

एक और सवाल यह भी कि आज आईसीआईसीआई, एसबीआई दोनों के शेयर गिरे हैं, क्या आगे भी ऐसा होगा?

साथ में यह भी कि क्या अदानी संभल पाएंगे?

अदानी का बैंकों पर कर्ज़ 40% से कम है। अगर आप 2016 से 2022 के बीच 6 साल के दौर को देखें तो अदानी ने सरकारी और निजी बैंकों पर निर्भरता को काफी कम किया है। उन्होंने बॉन्ड मार्केट में पैसा लगाया है।

इसमें भी 29% डॉलर बॉन्ड में लगा है। बाकी 8% रुपए के बॉन्ड में। कुल मिलाकर बॉन्ड मार्केट में यह 37% निवेश काफी अस्पष्ट है।

मौजूदा स्थिति में इस 37% निवेश की रीफाइनेंसिंग बहुत मुश्किल होगी। हिन्डेनबर्ग ने बस इसी कमजोर नस को दबाया और अदानी दौलतमंदों में तीसरे से सातवें पर लुढ़क गए।

यानी अदानी ने अपने कर्ज़ का समायोजन अक्लमंदी से नहीं किया। शायद मोदीजी के रहते यह उनका अति आत्मविश्वास था।

आज अदानी समूह ने निवेशकों का भरोसा खो दिया है। कंपनी का एफपीओ आज पहले दिन 1% ही बिका।

दलाल स्ट्रीट में दो सत्रों में निवेशकों ने आज लगभग 11 लाख करोड़ गंवा दिए। आगे अमेरिकी फेड की ब्याज दरें और मोदी सरकार का बजट दोनों बाजार पर असर डालेंगी।

सेबी की जांच भी शुरू हुई है। यानी अगले हफ्ते कम से कम 3 से 4 बिकवाली वाली रेली की उम्मीद करें।

दरअसल, अदानी ग्रुप का वित्तीय ढांचा कमज़ोर और संदिग्ध था। लेकिन बार–बार आगाह करने के बावजूद सरकारी इशारे पर संस्थागत निवेश हुआ।

नियम–कानूनों को ताक पर रखकर सरकारी ठेके दिए गए। 30 मार्च 2014 को 5.10 अरब डॉलर का अदानी ग्रुप 137 अरब डॉलर का हो गया। अकेले 2022 में दौलत 61 अरब डॉलर बढ़ी।

बिजनेस में नफा–नुकसान अलग बात है और निवेशकों का भरोसा खोना अलग।

इन हालात में मोदी सरकार की चुप्पी असमंजस को और बढ़ाने वाली है और यह जितना बढ़ेगा, अदानी गिरते रहेंगे। साथ ही उन पर दांव खेलने वाली संस्थाएं भी।

आज के कत्लेआम का अंतरराष्ट्रीय, यानी डॉलर मार्केट पर असर कल दिखेगा।

ताश के कुछ पत्ते गिरे हैं। सिलसिला शुरू हुआ है। किला बड़ा है। वक्त लगेगा।

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