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पद्म पुरस्कार के लिए राष्ट्रपति जी का आभार और ऐसे?

हिन्दी के कुछ अखबारों में यह विज्ञापन पहले पन्ने पर है। इससे ऐसा लग रहा है जैसे पद्म पुरस्कार मोहल्ले का कोई क्लब देता हो।

इस विज्ञापन को देखने के बाद मैं आज अखबार नहीं पढ़ पाया। विज्ञापन देखते ही मुझे याद आया, “पहले होती थी सिफारिश, अब ऐसा नहीं चलेगा” और इसके साथ “नामुमकिन अब मुमकिन है” भी। कहने की जरूरत नहीं है कि यह सब गोदी मीडिया के कारण ही मुमकिन है। आइए देखें कैसे। पद्म पुरस्कारों के लिए चयन प्रक्रिया को पारदर्शी बनाए जाने या उसमें से विशेषाधिकार का तत्व खत्म किया जाना मुझे यह तब भी ठीक नहीं लगा था। सरकारी पुरस्कार का अलग महत्व है। चयन में पारदर्शिता भी अलग बात है। फिर भी, विशेषाधिकार का अलग महत्व है और वह सरकारी विदेश यात्राओं में मिले तथा मुफ्त में विशेषाधिकर यात्रा करने वालों का नाम गोपनीय रहे तो यह सुविधा दूसरे मंत्रियों विभागों को भी मिलनी चाहिए। कुल मिलाकर पुरस्कार पाने वालों का नाम तो घोषित हो ही चयन प्रक्रिया भी पारदर्शी हो – यह भेदभाव है। 17 अगस्त 2017 की एक खबर का शीर्षक है, पद्म अवॉर्ड को लेकर बोले पीएम मोदी, पहले होती थी सिफारिश, अब ऐसा नहीं चलेगा।

अगर पुरस्कार / सम्मान प्रक्रिया पारदर्शी हो और पुरस्कार उसे मिले जो आभार जताने के लिए इतना खर्च दे तो पारदर्शिता की क्या जरूरत है? पुरस्कार जरूरतमंदों को नहीं, योग्य लोगों को दिया जाना चाहिए। योग्यता के पैमाने अलग हो सकते हैं। पद्म पुरस्कारों में अगर पारदर्शिता नहीं थी तो पारदर्शिता का यह मतलब भी नहीं होना चाहिए। निश्चित रूप से यह विज्ञापन एक ऐतिहासिक दस्तावेज है। मेरा मानना है कि कुछ चीजें विशेषाधिकार से दी जाती हैं और यह देने वाले के साथ लेने वाले का भी विशेषाधिकार होता है। इसमें पारदर्शिता की जरूरत ही नहीं है।

पारदर्शिता न होना इससे बेहतर है कि पारदर्शिता से एक ऐसे आदमी को पुरस्कार मिल जाए जिसके नाम से ही लगे कि उन्होंने खरीद लिया (रही सही कसर इस विज्ञापन से पूरी हुई)। सरकारी पुरस्कार देने वाले बेईमानी करें और अयोग्य को दे दें यह अलग बात है। फिर भी इसका महत्व है क्योंकि इतना सब समझते हैं। एक तरफ तो प्रधानमंत्री पुरस्कार चयन प्रक्रिया को पारदर्शी बनाने का दावा कर रहे हैं दूसरी ओर प्रधानमंत्री के साथ विदेश यात्रा पर जाने वालों का नाम नहीं बताया जा रहा है। पहले पत्रकारों को ले-जाना बंद कर दिया गया और फिर पता चले (या अफवाह उड़े) कि प्रधानमंत्री की विदेश यात्राओं में संदिग्ध कारोबारी भी जाते हैं या गए थे औऱ यह भी कि उनमें से एक को बड़ा विदेशी ठेका मिला है। तो कोई जवाब नहीं। मीडिया में कोई सवाल नहीं।

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जब ठेका दिलाने में पारदर्शिता नहीं है तो यहां पुरस्कार और सम्मान में परदर्शिता का क्या मतलब? मेरे ख्याल से भारत सरकार के पुरस्कारों को तो खास होना ही था। बचपन में और बहुत हाल तक जब पुलिस चौकियों पर डीएम, एसपी का टेलीफोन नंबर लिखा होता था और वह 22222 या 21111 जैसा होता था तो लगता था काश डीएम या एसपी होता। पर बाजार ने सबकी कीमत तय कर दी। यही हाल गाड़ियों के नंबर का हुआ। मुझे याद है, अजय माकन दिल्ली के परिवहन मंत्री थे और उन्होंने खूब वीआईपी नंबर बांटे थे। उन्होंने कहा भी था और मैं इससे सहमत हूं कि राजनेता पार्टी कार्यकर्ताओं को यही सब दे सकते हैं। ये अनमोल हों तो कार्यकर्ताओं को ठेके नहीं दिलाने पड़ेंगे और भ्रष्टाचार कम (या अलग तरह का) होगा। उस हालत में लोग नेताओं से ठेके के लिए नहीं जुड़ेंगे संपन्न लोग जुड़ेंगे ताकि कुछ ऐसा मिल जाए जो अनमोल हो।

पद्म पुरस्कारों में पारदर्शिता लाने से संबंधित खबर आगे इस प्रकार थी। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने पद्म पुरस्कारों के चयन को लेकर बड़ा कदम उठाने की बात कहते हुए कहा था कि इसे पारदर्शी और राजनीतिक हस्तक्षेप से अलग रखने का फैसला किया है। पीएम मोदी ने नई दिल्ली में नीति आयोग के कार्यक्रम में उद्यमियों को संबोधित करते हुए कहा कि पहले पद्म पुरस्कार में मंत्रियों की सिफारिश पर दिए जाते थे। लेकिन हमने अब इस प्रक्रिया को बदलने का फैसला किया है और अब इसमें हर कोई भाग ले सके इसके लिए हमने विशेष प्रावधान किया है। प्रधानमंत्री के साथ विदेश दौरे में पत्रकार नहीं, पांच साल में एक प्रेस कांफ्रेंस नहीं, आरटीआई के बावजूद डिग्री नहीं और पारदर्शिता का दावा। गोदी मीडिया है तो नामुमकिन मुमकिन है।

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पारदर्शिता के इसी संदिग्ध माहौल में प्रधानमंत्री ने Ambush Marketing की शुरुआत की है। टेलीग्राफ ने लिखा है कि यह एक चाल है और आमतौर पर इसका उपयोग उपभोक्ता ब्रांड प्रतिद्वंद्वी के गर्जन को चुराने के लिए करते हैं। राहुल गांधी ने “चौकीदार चोर है” कहना शुरू किया तो मैं भी चौकीदार का हैशटैग शुरू किया गया है। कांग्रेस का आरोप है कि इसके लिए पार्टी Bots की तरह काम चल रही है। यह कंप्यूटर का एक स्वायत्त प्रोग्राम है जो इस तरह डिजाइन किए जाते हैं कि वास्तविक फॉलोअर (ट्वीटर पर) की तरह व्यवहार करें। अपने इस प्रयास में प्रधानमंत्री कल @niiravmodi के हमले के शिकार हो गए। यह नीरव मोदी के नाम से पैरोडी (फर्जी अकाउंट) है और प्रधानमंत्री ने इसे अंग्रेजी में संबोधित किया, “प्रिय नीरव” और इस बातचीत का अंत हुआ, “सर मैं लोन माफ पक्का समझूं?”

असल में प्रधानमंत्री ने मैं भी चौकीदार की शुरुआत की और इसके जरिए परस्पर संवाद की कोशिश की। इसके तहत कइयों को संदेश भेजा जिसे आज के नवोदय टाइम्स ने “भ्रष्टाचार से लड़ने वाला हर व्यक्ति चौकीदार : मोदी” शीर्षक से छापा है। नवोदय टाइम्स ने इसी खबर के साथ पहले ही पन्ने पर एक और खबर छापी है, ट्वीटर पर बना वर्ल्ड वाइड ट्रेन्ड। इसमें बताया गया है कि इसे 10 लाख से अधिक लोगों ने लाइक किया, 40 हजार से अधिक लोगों ने रीट्वीट किया और इनमें रविशंकर प्रसाद और स्मृति ईरानी समेत कई भाजपा नेता हैं। अखबार की यह खबर अंदर के पन्ने पर जारी है पर इसमें नीरव मोदी से भिड़ंत की खबर नहीं है। मुमकिन है, जैसा टेलीग्राफ ने लिखा है, इसे डिलीट कर दिया गया हो। टेलीग्राफ ने इस ट्वीटर वाले इस नीरव मोदी के हवाले से लिखा है, हेलो बीजेपी4इंडिया, यह फर्जी नहीं है। मोदी जी ने ऐसा किया। गोलपोस्ट मत बदलिए। सिर्फ चौकीदार बदलिए। हिन्दी अखबारों में आज यह खबर सिर्फ नवभारत टाइम्स में पहले पन्ने पर प्रमुखता से जैसी खबर है वैसी दिखी।

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वरिष्ठ पत्रकार और अनुवादक संजय कुमार सिंह की रिपोर्ट।


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