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अजीत अंजुम को प्यार, चित्रा त्रिपाठी को दुत्कार… ये पब्लिक है भाई!

Dharam Veer-

मुज़फ़्फ़रनगर पंचायत में आज जो व्यवहार गोदी मीडिया की चित्रा त्रिपाठी के साथ हुआ उसको देखकर अफ़सोस हो रहा था कि हमारे देश का अन्नदाता भी ना जाने क्यूँ अपनी सहनशीलता भुलाकर हुल्लड़वादी बनता जा रहा है । लेकिन फ़िर शाम को उसी मुज़फ़्फ़रनगर से अजीत अंजुम सर का यह वीडियो आया । इसमें एक किसान पसीने से तरबतर अजीत अंजुम जी को रिपोर्टिंग करते हुए देखकर अपने रूमाल से उनका पसीना पोंछने लगता है।

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ख़ुद देखिए आप। मीडिया पर्सन ही अजीत सर हैं और मीडिया पर्सन ही चित्रा जी भी। लेकिन उन्हीं किसानों का व्यवहार दोनों के साथ कितना अलग है …।

मतलब साफ़ है कि किसान और आम जनता के दिलों में पलती यह नफ़रत गोदी मीडिया के पत्रकारों ने ख़ुद कमाई है । बेहतर हो कि वह या तो आम जनता की आवाज़ उठाने लग जाएँ या फ़िर आम जनता के बीच जाकर सत्ताधीशों की पसंद की रिपोर्टिंग ना करें । ऐसे माहौल में नफ़रत और भड़कती है…

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पहला वीडियो अजीत अंजुम सर का और दूसरा चित्रा त्रिपाठी जी का… देखें…

1-

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https://www.facebook.com/1812547878/videos/pcb.582838102910031/383430766561452

2-

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https://www.facebook.com/1812547878/videos/pcb.582838102910031/2601973493431939


देखें video- https://twitter.com/sakshijoshii/status/1434527600555163651?s=21



Nakul Chaturvedi-

मुजफ्फरनगर में आज जो भी हुआ है, वो पत्रकार चित्रा त्रिपाठी ( Chitra Tripathi ) के साथ नहीं बल्कि आज तक ( Aaj Tak ) न्यूज़ चैनल के साथ हुआ है. इस घटना को महिला की गरिमा से न जोड़कर आप पत्रकारिता की गरिमा से जोड़ेंगे तो सब समझ आ जाएगा… सच कड़वा होता है लेकिन सच यही है, और मैं इस सच को बेबाक होकर कह रहा हूं.. कुछ लोगों को बुरा लगेगा लेकिन प्लीज सच को समझिए।

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REPUBLIC और ZEE का कोई नहीं रिपोर्टर महापंचायत में नहीं दिखाई दिया.. और बाकी चैनलों के रिपोर्टर भी वहां थे, बहुत सारे YOUTUBER पत्रकार भी वहां थे.. बहुत सारी महिला रिपोर्टर को मैंने खुद वहां रिपोर्टिंग करते देखा, किसी को लेकर हूटिंग नहीं हुई किसी को गोदी मीडिया नहीं कहा गया… सिर्फ आज तक के साथ ऐसा क्यों हुआ सोचिए…

क्योंकि आज तक सीना ठोक कर कहता है,

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सबसे तेज हैं हम..

सबसे दमदार हैं हम..

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सबसे विश्वसनीय हैं हम..

सबसे भरोसेमंद हैं हम..

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देश की जनता की आवाज हैं हम

देश का नंबर वन न्यूज़ चैनल आज तक।

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जिससे उम्मीद हो अगर वही धोखा करे तो बुरा लगता है.. जिसे पूरा देश भरोसे से देखता हो, जिस की खबरों का असर बड़े-बड़े सूरमा को हिला देता हो उसी पर दलाल होने का आरोप… कुछ तो कमी है..कहीं तो कमी है अब यह आपको सोचना होगा आज तक ..



Yusuf Kirmani-

कुछ सवाल पूछे ही जाने चाहिए…

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कल मैं मुज़फ़्फ़रनगर में किसान महापंचायत में था।…एक एक सवाल के लिए आगे बढ़ रहा था…

लेकिन आप लोगों के पास पढ़ने और सोचने की फुरसत कहाँ है ? आप लोगों को चटखारेदार चीज़ें पढ़ने की आदत है। बहरहाल, मुज़फ़्फ़रनगर किसान महापंचायत पर मेरी रिपोर्ट जनचौक में प्रकाशित की है। उसके दो पैराग्राफ़ यहाँ डाल रहा हूँ लेकिन पूरी रिपोर्ट जनचौक पर ही पढ़ी पड़ेगी।

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हो सकता है कि कुछ लोग मेरी इस रिपोर्टिंग से सहमत न हों। लेकिन फिर भी उनके विचारों का स्वागत है। निवेदन सिर्फ़ इतना है कि बिना पूरी रिपोर्ट पढ़ें हुए, अपनी बात न कहें। परिपक्व बनें, अधकचरी बातें न कहें और न लिखें।…

मुज़फ़्फ़रनगर की किसान महापंचायत हर मायने में कामयाब रही और इससे निकला संदेश अब राष्ट्रीय फलक पर बहस का सबब बन गया है। लेकिन इस महापंचायत में मुसलमानों की कम तादाद में शिरकत अलग ही कहानी बता रही है। जिस पर विमर्श ज़रूरी है। पश्चिमी उत्तर प्रदेश में जाट राजनीति के केंद्र में रहा है और मुसलमानों को साथ लेकर चलने की महेन्द्र सिंह टिकैत की रणनीति काफ़ी हद तक कामयाब रही। लेकिन मुज़फ़्फ़रनगर दंगों के ज़रिए भाजपा ने इस समीकरण को बदल दिया।

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2014 के लोकसभा चुनाव से ठीक पहले 2013 में हुए मुजफ्फरनगर दंगे में जाटों की बालियान खाप पर बढ़चढ़ कर हिस्सा लेने के आरोप लगते रहे हैं। राकेश टिकैत का परिवार बालियान खाप से ही है। राकेश टिकैत मार्का राजनीति के अतीत को देखते हुए लगता यह है कि इतनी सफल पंचायत के बावजूद राकेश टिकैत मुसलमानों के संशय के घेरे में है।

किसानों के मुद्दे पर आयोजित यह महापंचायत अंततः चुनाव में राजनीतिक लक्ष्य हासिल करने की भी एक बड़े कदम के रूप में देखी जा रही है, इसलिए इसका विश्लेषण ज़रूरी है कि यूपी में किसान राजनीति क्या हर वर्ग के लोगों को साथ लेकर अपना राजनीतिक लक्ष्य हासिल करेगी? हालाँकि जब मुद्दे बड़े हों और लक्ष्य भी बड़ा हो तब ऐसे में ऐसे सवाल बहुत मायने नहीं रखते लेकिन राजनीतिक लक्ष्य हासिल करने के लिए ऐसे सवालों का किया जाना और उसका जवाब तलाशना ज़रूरी है।

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