Connect with us

Hi, what are you looking for?

टीवी

जन सरोकारों से कटने का दंड, ‘आजतक’ तो लुढ़का ही, ‘सर्कस न्यूज चैनल तेज’ भी फीका पड़ा

इन दिनों सोशल मीडिया में आजतक की साख पर सवाल उठ रहे हैं। अपने रिपोर्टर अक्षय की मौत के बाद से ही ये चैनल सोशल मीडिया की सुर्ख़ियों में आ गया है। जिस तरह से आजतक ने अपने ही रिपोर्टर अक्षय की मौत से किनारा किया, उससे सोशल मीडिया में खासी नाराज़गी है।

इन दिनों सोशल मीडिया में आजतक की साख पर सवाल उठ रहे हैं। अपने रिपोर्टर अक्षय की मौत के बाद से ही ये चैनल सोशल मीडिया की सुर्ख़ियों में आ गया है। जिस तरह से आजतक ने अपने ही रिपोर्टर अक्षय की मौत से किनारा किया, उससे सोशल मीडिया में खासी नाराज़गी है।

कहते हैं, घमंडी का सर हमेशा नीचा होता है। क्योंकि घमंड का बोझ वो लंबे समय तक सह नहीं पाता। कुछ ऐसा ही हुआ है आजतक के साथ। अपने मुँह मिया मिट्ठू बनने वाला और खुद को देश का सर्वश्रेष्ठ न्यूज़ चैनल बताने वाला ये चैनल एक बार फिर नंबर तीन पर लुढक गया है। इण्डिया टीवी ने एक बार फिर इसे ज़ोरदार पठकनी दी है। लेकिन सोशल मीडिया में इन दिनों ये चैनल चर्चा में नंबर एक पर बना हुआ है। दरअसल आजतक की गिनती अब बाज़ारू चैनलों में होने लगी है। इसके कारणों पर गौर करें तो आप पाएंगे कि चैनल पर अब ऐसा एक भी कार्यक्रम नहीं है जो जन सारोकार से ताल्लुक रखता हो। 

Advertisement. Scroll to continue reading.

पुण्यप्रसून वाजपयी का तिलिस्म भी अब उम्र के साथ फीका पड़ता जा रहा है। तो शम्स ताहिर खान जैसे दिग्गज क्राइम रिपोर्टरों ने भी चमक खो दी है। एंकर बेहद बुझे हुए और ख़बरें बेहद साधारण और बेदम नज़र आती हैं। ज़्यादातर ख़बरें एकतरफा और सरकारी विज्ञापन की तर्ज़ पर ही चलने लगी हैं। ऐसा लगता है मानो चैनल में कुछ ऐसी गाइडलाइन जारी की गयी हैं कि ख़बरों में जनसारोकार या सत्ता के विरुद्ध आक्रामकता नहीं चाहिए।

ताज़ा नमूना चैनल के रिपोर्टर की शहादत का है। जिसकी व्यापम के रहस्य का पर्दाफ़ाश करने की कोशिश में लगे अक्षय की मौत पर जिस तरह आज तक ने घड़ियाली आंसू बहाए और चैनल के आला अधिकारी सत्ता के साथ खड़े होकर मातम मनाते दिखे, उससे चैनल की साख देश भर में धूमिल हुई है। सोशल नेटवर्किंग पर लोगों ने इस बात पर  हैरानी जताई जिस तरह के साधारण सवाल अक्षय की हत्या के बाद राहुल कँवल ने शिवराज से पूछे ऐसा लग रहा था राहुल कँवल शिवराज चालीसा का पाठ कर रहे थे। राहुल कँवल इसी ग्रुप के अंग्रेजी न्यूज़ चैनल इण्डिया टुडे के संपादक है और खुद को अक्षय का करीबी मित्र और सहयोगी बताते हैं। बावजूद इसके शहीद अक्षय की आत्मा भी उनकी इस दोस्ती और फ़र्ज़ पर हैरान होगी। 

Advertisement. Scroll to continue reading.

टीवी स्क्रीन पर बड़ी बड़ी बातें करने वाले बड़े पत्रकार असल ज़िन्दगी में कितने बौने होते हैं इस प्रकरण ने साबित कर दिया। अक्षय तो शहीद होकर भी पत्रकारिता का फ़र्ज़ निभा गए। लेकिन, राहुल कँवल और आजतक के तथाकथित पत्रकारों ने एक बार फिर ये बता दिया उनके लिए अक्षय की शहादत भी महज़ एक खबर ही थी, जो उनकी नज़र में आम ख़बरों की ही तरह बिकाऊ है। सत्ता ने ऊंची बोली लगाई, सरकार से महंगे विज्ञापन मिले तो ये खबर भी बेच दी क्योंकि, बुलेटिन में कमर्शियल ब्रेक तो मजबूरी है।

आज तक के एक और चैनल तेज़ की बात किये बिना आजतक पुराण पूरी नहीं हो सकता। तेज़ को आजतक का सर्कस न्यूज़ चैनल कहा जाता है। इसके पीछे ठोस वजह हैं, दरअसल इस चैनल पर ख़बरें सर्कस और खेल तमाशे की तरह, मदारी-जम्बूरे वाले अंदाज़ में ही पेश की जाती हैं। दिन भर ज्योतिष और अंधविश्वास फैलाने वाले कार्यक्रम सोफेस्टिकेटेड तरीके से पेश करने की कोशिश तो होती है, लेकिन स्क्रीन पर वो फूहड़ ही नज़र आते हैं। एस्ट्रो अंकल, बादल वाले बाबाजी, आंटी, ताई, चाचाजी से लेकर महाभारत के संजय वाले नाटकीय अंदाज़ में ज्योतिष और ख़बरें परोसी जाती हैं। ऐसा इसलिए है क्योंकि इस चैनल के संपादक संजय सिन्हा साहब जाने माने साहित्यकार हैं, साहित्य, कला, प्रेम, सौंदर्य, और रिश्तों जैसे विषयों में अपनी गहरी रूची के चलते उन्होंने अपनी फेसबुक पोस्ट को समेटे एक पुस्तक भी प्रकाशित की है, जिसका नाम है रिश्ते।

Advertisement. Scroll to continue reading.

संजय सिन्हा शायद इन्हीं रिश्तों के तार से ख़बरों को जोड़ने की कोशिश कर रहे हैं। उनका यकीन है कि ख़बरों को रिश्तों की चासनी में डुबोकर बेच जा सकता है। शायद यही कारण है कि तेज़ के हर खबरिया प्रोग्राम के टाइटल के आगे पीछे अंकल, आंटी, ताऊ, बाबाजी जैसे शब्द जुड़े होते हैं। तेज़ का एक भी ऐसा कार्यक्रम नहीं जो लोकप्रिय हुआ हो, यही कारण है कि देशभर में आजतक के साथ डिस्ट्रीब्यूशन होने के बावजूद, ये चैनल टीआरपी में कभी दहाई का आंकड़ा भी नहीं छू पाया है। तेज़ की पहचान एक नॉनसीरियस न्यूज़ चैनल की बन चुकी है, क्योंकि ये ख़बरों को मज़ाकिया अंदाज़ में पेश करता है। प्रोग्रामिंग के नाम पर कुछ नहीं है, स्क्रिप्टिंग में भी धार या रफ़्तार नज़र नहीं आती। ख़बरों में बेहद पिछड़ा रहने वाले इस चैनल का नाम तेज़ क्यों है समझ से पर है। क्योंकि इसकी छबि सबसे स्लो वाली बन चुकी है, जिससे उबरना अब नामुमकिन सा है। टीआरपी में हमेशा सबसे निचले पायदान पर रहने वाला ये चैनल अपनी इस दशा से फिलहाल संतुष्ट दिखता है, इसलिए भविष्य में भी सुधार की कोई उम्मीद नहीं रखनी चाहिए।

लेखक अमित सूद से संपर्क : [email protected]

Advertisement. Scroll to continue reading.
Click to comment

0 Comments

  1. मोहित पांडे आजतक

    July 19, 2015 at 7:08 pm

    यशवंत जी, आप भूल रहे हैं कि संजय सिन्हा की गिनती देश के चोंटी के पत्रकारों में होती है। ऐसा कौन है देश में जो उन्हें जानता ना हो? वो किसी भी पहचान के मोहताज नहीं हैं। यकीन नहीं आता तो आप लिफ़ाफ़े पर सिर्फ संजय सिन्हा दिल्ली लिखकर पोस्ट कर दीजिये। ख़त उन्हें मिल जाएगा। सैकड़ों ख़त ऐसे ही आते हैं यहां।संजय सिन्हा को आजतक की ज़रुरत नहीं है, बल्कि अरुण पुरी साहब को संजय सिन्हा की ज़रुरत है। उनकी काबलियत पर उंगली उठाना सूरज को दिया दिखाने जैसा है।

  2. भास्कर मिश्रा

    July 20, 2015 at 4:51 am

    हाँ भाई संजय सिन्हा ना होते तो आज तक का क्या होता? तेज़ उन्ही तो उनका बच्चा है जिसे उन्होंने पाल पोसकर बड़ा किया है। इसे सर्कस न्यूज़ चैनल कहने वाले लोग संजय सिन्हा जी की कामयाबी से जलते हैं। सच है अरुण पुरी जी को संजय सिन्हा की ज़रुरत है। इतना काबिल संपादक उन्हें दूसरा नहीं मिल सकता। इतिहास, विज्ञान, धर्म, साहित्य, कला, चिकित्सा शास्त्र, इंजीनियरिंग, अन्तरिक्ष विज्ञान, ज्योतिष हर चीज़ में उनकी गहरी पकड़ है। वो तो सन्यासी हैं जो संसार का सुख भोगकर संसार पर उपकार कर रहे हैं।

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Advertisement

भड़ास को मेल करें : [email protected]

भड़ास के वाट्सअप ग्रुप से जुड़ें- Bhadasi_Group

Advertisement

Latest 100 भड़ास

व्हाट्सअप पर भड़ास चैनल से जुड़ें : Bhadas_Channel

वाट्सअप के भड़ासी ग्रुप के सदस्य बनें- Bhadasi_Group

भड़ास की ताकत बनें, ऐसे करें भला- Donate

Advertisement