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सुख-दुख

अकबर की लपलपाती जीभ पर एक युवती ने यूं मिर्च पाउडर उड़ेल दिया!

Swatantra Mishra : अकबर की लपलपाती जीभ पर मिर्च पाउडर उड़ेला… सेंट स्टीफंस कॉलेज में ग्रेजुएशन में मेरे साथ पढ़ने वाली एक लड़की जर्नलिज्म में कैरियर बनाना चाहती थी तब वह एशियन ऐज में एम जे अकबर के पास नौकरी के लिए गई. अकबर ने इंटरव्यू के लिए उसे कमरे में बुलाया और दो—एक बातचीत के बाद बिस्तर में जाने की बात पूछ ली. पर शायद अकबर को यह नहीं पता था कि वह बदलते जमाने की लड़की है.

उसने अकबर का सवाल पूरा होते ही कहा-‘मेरा ब्यॉयफ्रैंड इस काम में दुनिया का सबसे बेहतर इंसान है. मैं उससे पूरी तरह संतुष्ट हूं. वह कमरे के अंदर और बाहर दोनों ही दुनिया में बेहतर नजर वाला आदमी है. आप इतनी उम्र में फ्रस्ट्रेशन में क्यों है? आप सबसे पहले अपने लिए सुयोग्य सेक्सुअल पार्टनर ढूंढ ​लीजिए, बाद में सहयोगी ढूंढिएगा.’ उस मित्र ने हम सबसे जब यह किस्सा सुनाया तो सबने उससे कहा— बहुत बढ़िया. तुमने उस संपादक की लपलपाती जीभ पर लाल मिर्च पाउडर उड़ेल दी.

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Bhoopendra Singh : एमजे अकबर का मुगलकालीन शंहशाहो की तरह हरम होता था…. जब वो पत्रकार थे… और वो अब भारत सरकार में मंत्री है… तो इस बात से इनकार नहीं किया जा सकता उन्होंने अपना नया हरम मंत्रालय के ऑफिस में भी खोल रखा होगा… जहाँ वो भारत सरकार के ऑफिस में कार्यरत लड़कियों को शिकार बनाते होंगे… ऐसे इंसान को मंत्री के पद से तत्काल प्रभाव से बर्खास्त कर देना चहिए.. क्योंकि पता नहीं इसने कितनी ही लड़कियों की इज़्ज़त से खिलवाड़ किया होगा… और आगे करने की सोच रहा होगा…

और, किस जाँच की बात की जा रही है… जिस आदमी पर महिलाओं के यौन शोषण का आरोप है… पर वो मंत्री है..तो क्या इस बात से इनकार किया जा सकता है कि वो जाँच को प्रभावित नहीं करेगा?? बेटी बचाओ बेटी पढ़ाओ का नारा देने वाली सरकार को अब तक एमजे अकबर से त्याग पत्र मांग लेना चहिए था अगर वो नहीं देते तो उनको कैबिनेट से बाहर का रास्ता दिखा देना चाहिए….

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Girijesh Vashistha : अकबर की लीडरशिप में 7 कॉलम का अखबार अपने आप में अनूठा प्रयोग था. मुझे याद है जब हम पत्रकारिता में छौने थे तो तीन लोगों से मैं खासकर बड़ा प्रभावित रहता था. पहला विनोद मेहता से और उनके पायनियर से दूसरा कोलकाता का द टेलीग्राफ जो एमजे अकबर की देखरेख में निकलता था तीसरा था. मुंबई से निकलने वाला द इंडिपेंडेंट. जनसत्ता उसके रिपोर्टरों खास तौर पर आलोक तोमर की वजह से बहुत पसंद था. हिंदी में प्रभात खबर और स्वतंत्र भारत मुझे बहुत अच्छे लगते थे. शायद ले आऊट मेरा पहला प्यार था. लेकिन अकबर जैसे इनोवेटिव अादमी ने जब एशियन एज निकाला तो धक्का लगा. शायद वो टेलीग्राफ वाली बात किन्हीं और लोगों की वजह से थी. लेकिन विनोद मेहता अपनी काबिलियत को लगातार साबित करते रहे. आऊटलुक गवाह है.

लेकिन अकबर को लेकर मोहभंग का सिलसिला लगातार जारी रहा. एशियन एज के बाद फिर धक्का तब लगा जब अचानक उन्होंने सारे प्रगतिशील विचारों को ताक पर रखकर बीजेपी का पाला चुना, कोई भी विचारवान व्यक्ति इतना जबरदस्त पाला कैसे बदल सकता था. लेकिन मीटू अभियान के बाद ये नया धक्का है. सारी नफासत कूड़ा हो गई है. कोई कितना बदल सकता है. पानी जिस बर्तन में जाता है उसके जैसा आकार ले लेता है लेकिन फिर भी जहां से आया है उस बर्तन को पूरा नहीं छोड़ता. पर ये आश्चर्यजनक तब्दीली रिसर्च का विषय है. बहुरूपिये का भी एक तो असली रूप होता है. 28 साल बाद भी आप एक व्यक्ति जिसे आप बहुत पसंद करते थे उसके बारे में सिफर जानते हैं. आप जानते ही नहीं कि वो क्या है. ऐसा है या वैसा है, सफेद है या स्याह है. वो अकबर है या अकबर है ही नहीं. सचमुच बड़े लोगों का व्यक्तित्व प्याज़ के मानिंद छिलके दार होता है सारे छिलके भी अलग अलग रंग के.

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पत्रकार स्वतंत्र मिश्रा, भूपेंद्र सिंह और गिरिजेश वशिष्ट की एफबी वॉल से.

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