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मजीठिया पर ताजा फैसले के बाद मीडियाकर्मियों और लेबर कोर्ट की सक्रियता देख मालिकों की नींद हराम

यूपी के एक एडिशनल लेबर कमिश्नर ने जो बात कही, वह सच होता दिख रहा है। उनका कहना था कि मजीठिया वेज बोर्ड को लेकर आये ताजा फैसले से मालिकानों की नींद हराम हो गई होगी। जाहिर सी बात है कि अब वे और उनके गुर्गे इस काम में लग गए हैं कि कैसे इन मजीठिया क्रांतिकारियों से पीछा छुड़ाया जाए। केस में आये पुराने वर्कर से तो वे परेशान हैं ही, अब नए लोगों यानि अंदर काम करने वाले वर्कर भी केस में आने की तैयारी कर चुके हैं। तय है कि जल्द ही नए केस लगने की प्रक्रिया शुरू हो जायेगी।

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यूपी के एक एडिशनल लेबर कमिश्नर ने जो बात कही, वह सच होता दिख रहा है। उनका कहना था कि मजीठिया वेज बोर्ड को लेकर आये ताजा फैसले से मालिकानों की नींद हराम हो गई होगी। जाहिर सी बात है कि अब वे और उनके गुर्गे इस काम में लग गए हैं कि कैसे इन मजीठिया क्रांतिकारियों से पीछा छुड़ाया जाए। केस में आये पुराने वर्कर से तो वे परेशान हैं ही, अब नए लोगों यानि अंदर काम करने वाले वर्कर भी केस में आने की तैयारी कर चुके हैं। तय है कि जल्द ही नए केस लगने की प्रक्रिया शुरू हो जायेगी।

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मजीठिया को लेकर आए फैसले का दिन ज्यों ज्यों बीतता जा रहा है, मालिकान की चिंता बढ़ती जा रही है। उन्होंने अब अपने प्यादों को वर्कर से बातचीत करने के लिए भी कहा है। पिछले दिनों कुछ लोगों से बतचीत भी हुई, लेकिन अभी वे खुलकर सामने नहीं आये हैं। अभी वे वर्कर का रुख क्या है, यह जानना चाहते हैं। आगे की राह वे उसी हिसाब से तय करेंगे, ऐसा माना जा सकता है। दूसरी ओर वर्कर हैं कि वे अपनी राह छोड़ना नहीं चाहते। वे माननीय सुप्रीम कोर्ट का सम्मान करते हैं और उनके दिए रास्ते पर चलकर अपना रास्ता तय करने को आतुर हैं। सब केस में जायेंगे और आखरी दम तक लड़ेंगे। उन सब की तैयारी हो गयी है। उम्मीद की जानी चाहिए कि अब लेबर कोर्ट और डी एल सी के यहाँ वर्करों की भीड़ जुटेगी।

माननीय सुप्रीम कोर्ट के आये हालिया फैसले के बाद एक बात और देखी जा रही है। अब डी एल सी और लेबर कोर्ट जल्दी जल्दी सुप्रीम कोर्ट के आदेश को मानते हुए अपनी कार्रवाई करने में जुटे हैं और जो भी केस अख़बार के दफ्तर से आता है, उस पर ध्यान देते हैं। पहले यूपी में दैनिक जागरण को ज्यादा तवज्जो मिलती थी, लेकिन अब उनके फैसले पर एएलसी स्टे दे देते हैं। पहले ऐसा नहीं होता था। इस बात का प्रमाण है हालिया जागरण की आगरा यूनिट से दो लोगों के हुए ट्रांसफर का स्टे होना।

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दरअसल हुआ यह था कि दैनिक जागरण, आगरा के प्रबंधन ने दो पत्रकारों सुनयन शर्मा और रूपेश कुमार सिंह का मजीठिया केस में होने के कारण किसी बहाने से पिछले दिनों तबादला कर दिया था। सुनयन चीफ सब एडिटर हैं और रूपेश डिप्टी चीफ सब एडिटर। आगरा से एक का स्थानान्तरण जम्मू कर दिया गया और दूसरे का सिलीगुड़ी। ऐसा होने पर जब ये दोनों डी एल सी कार्यालय गए, तो अथारिटी ने इनके तबादलों पर रोक का आदेश जारी कर दिया। ऐसा होने से जागरण प्रबंधन तिलमिलाया हुआ है और वहां के मैनेजर को भगाने की तैयारी में है। उसे लग रहा है कि प्रशासन ने इस स्टे के जरिए उसके गाल पर तमाचा मारा है, जबकि आगरा के ए एल सी ने कानून का सही पालन किया है। उम्मीद की जानी चाहिए कि अब हर जिले में अख़बार कर्मियों के केस में ऐसा ही फैसला आएगा, जिससे मालिकानों का करार छिन जायेगा और वे एक दिन वर्कर के सामने घुटने टेकेंगे। पैसा और नौकरी दोनों देंगे, सो अलग।

सूत्र बताते हैं कि दैनिक जागरण अपने काम कर रहे वर्कर को मीठी गोली देने में जुटा है। मैनेजमेंट कहता है कि केस लड़ने वाले सुप्रीम कोर्ट में हार गए हैं। अब उनका कुछ नहीं होने वाला। अब उन्हें कौन बताये कि पढ़े लिखे लोग को माननीय सुप्रीम कोर्ट का आर्डर पढ़ना आता है, वे कंपनी की चाल समझ गए हैं और जो अभी तक नहीं समझे हैं, वे भी लोगों से पूछताछ करके जान लेंगे। मैनेजमेंट कर्मचारियों को खुश होकर जानकारी देने में तो जुटा है, लेकिन अंदर से उसका डर भी नहीं जा रहा है। वह यह भी बता देता है कि पैसा तो मिलेगा, पर कुछ वक्त लगेगा। इसके लिए वर्कर तैयार हैं। वह जानता है कि जितना पैसा मजीठिया का क्लेम लगाकर 3 या 4 साल में ले लेगा, उतना ज़िन्दगी भर काम करके वह नहीं जमा कर सकेगा। फिर ऐसी नौकरी से क्या फ़ायदा? फिलहाल सभी अख़बार समूह, दैनिक जागरण, दैनिक भास्कर, राजस्थान पत्रिका, हिंदुस्तान, प्रभात खबर, अमर उजाला, पंजाब केसरी आदि में इन दिनों वर्करों के बीच यही गणित चल रही है और मैनेजमेंट इन बातों को सुनकर परेशान हो रहा है। मालिकान का करार भी गायब है।

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मजीठिया क्रन्तिकारी और पत्रकार रतन भूषण की फेसबुक वॉल से.

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0 Comments

  1. ajay

    July 6, 2017 at 12:57 pm

    हिमाचल प्रदेश के अख़बार मालिकों ने तो अभी तक किसी को मझीठिया नहीं दिया क्योंकि इन अखबारों में कोई यूनियन ही नहीं है कहने को तो हिमाचल में अपने आपको यह नंबर एक बताते हैं पर कर्मचारियों का शोषण करने में भी नंबर एक हैं

  2. ajay

    July 6, 2017 at 12:57 pm

    हिमाचल प्रदेश के अख़बार मालिकों ने तो अभी तक किसी को मझीठिया नहीं दिया क्योंकि इन अखबारों में कोई यूनियन ही नहीं है कहने को तो हिमाचल में अपने आपको यह नंबर एक बताते हैं पर कर्मचारियों का शोषण करने में भी नंबर एक हैं

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