Satyendra PS : अखिलेश यादव कह रहे हैं कि वह सोशल मीडिया पर गाली देने वालों को लाइक कर रहे हैं। उनकी सूची बना रहे हैं। ब्याज सहित जवाब दिया जाएगा।
अखिलेश या कोई भी वंचितों का नेता जब भी सत्ता में रहा है तो यह लोग बुनियादी गलतियां करते रहे हैं। इन लोगों ने कभी अपनी वैचारिक टीम नहीं बनाई। ऐसी कोई टीम नहीं है जो समाजवाद या उनके 1950 के बाद संसोपा से समाजवादी पार्टी की हिस्ट्री या उनके नेताओं के त्याग व बलिदान के बारे में लिखे।
यहां तक कि इन लोगों ने यूनिवर्सिटी कॉलेज में ऐसे टीचरों की नियुक्ति नहीं की, जिन्होंने समाजवाद या समाजवादी नेताओं पर पीएचडी करवाई हो।
इन्होंने पत्रकारों की ऐसी पीढ़ी नहीं तैयार की जिसे समाजवादी कहा जाए। कांग्रेसी, संघी, कम्युनिस्ट ढेरों मिल जाएंगे।
इन्होंने अपना मीडिया हाउस, प्रिंट हाउस, बिजनेस खड़ा करने की कवायद नहीं की।
इन्होंने अपनी विचारधारा के लोगों की पेशेवरों की टीम नहीं तैयार की।
इस तरह की तमाम गलतियां हुई हैं। इसकी वजह से आज गर्त में हैं। कोई इनके फेवर में तार्किक तरीके से बोलने वाला नहीं है। इनके समर्थक भी पार्टी के संघर्षों को नही जानते। यह नहीं जानते कि समाजवादी आन्दोलन ने कितने आम नागरिकों के हाथों सत्ता की चाबी दी।
इतने संकट के दौर में भी सपा, बसपा, राजद, जदयू जैसे दल ऐसी कोई कवायद नहीं कर रहे हैं। इसका खामियाजा जनता भुगत रही है।
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दिल्ली के पत्रकार सत्येंद्र पीएस की एफबी वॉल से.
RAJ KAMAL
February 26, 2020 at 10:33 am
समझ में नहीं आता की अखिलेश यादव अपने विरोधियों को इतना कमजोर कैसे आंकने लगे. उनका यह आकलन ही उनके दुर्गति का कारण है. अखिलेश यादव आज जो चिंता जाहिर कर रहे हैं की उनके कार्यकर्त्ता और उनके नेता ही “समाजवाद” का अर्थ और औचित्य से वाकिफ नहीं तो मैं उनके इस आकलन को एक ईमानदार आकलन मान कर सहर्ष स्वागत करता हूँ. देर आयद दुरुस्त आयद. लेकिन उन्हें आपके इस बहुमूल्य सुझाव को भी आत्मसात करना चाहिए और व्यवहारिक पटल पर उतारते हुए इस बात की कवायद करना चाहिए की वो समाजवादी पार्टी के संगठनात्मक ढाँचे को दुरुस्त करें. आज की राजनीति प्रोफेशनल हो चुकी है तो खुद के पार्टी के कायाकल्प के लिए भी प्रोफेशनल लोगों को चयनित करें जो सोशल मिडिया पर समाजवादी पार्टी के पक्ष में एक सुदृढ़ सेनापति के रूप में तार्किक तौर पर खड़ा दिखे और विरोधियों को तार्किक रूप से धराशायी करे. लेकिन अखिलेश यादव ऐसा करेने ? ये संशय है क्योंकि अखिलेश यादव का दुश्मन केवल विपक्षी दल ही नहीं है बल्कि वो लोग सबसे बड़े दुश्मन हैं जो “अखिलेश भईया जिंदाबाद” उद्दघोष कर अखिलेश यादव को प्रसन्नचित्त करने का कामयाब प्रयास तो करते हैं लेकिन समाजवाद के इतिहास और गौरव के पन्ने को पलटकर खुद को तार्किक रूप से मजबूत करने का प्रयास कदापि नहीं करते. बेहतर होगा की अभी भी समय है. दो साल बचे हैं. अखिलेश यादव इस बचे हुए समय में पार्टी को प्रोफेशनल तरीके से खड़ा करने का प्रयास करें. पार्टी को नए रंग-रूप में परिवर्तित करने का प्रयास करें. मैं इतना दावे के साथ कह सकता हूँ की समाजवादी पार्टी अगर अपनी कुछ कमियों को सहर्ष स्वीकार कर ले तो निश्चित रूप से आगामी चुनाव में बेहतर परिणाम के साथ सामने फिर से दिखेगी. लेकिन नहीं, ये तो चाटुकारों से घिरे पड़े हैं. एक समय इनके एक चाटुकार जो हमारे पुराने मित्र भी रहे, फर्जी तरीके से फर्जी कागज़ पत्तर देकर “यश भारती सम्मान” से सम्मानित हो गया, उससे जब मैंने सोशल मिडिया पर समाजवादी पार्टी में आमूल-चुल परिवर्तन के कुछ सटीक उपाय बताये और अखिलेश यादव से मिलकर इन उपायों पर विस्तृत चर्चा कर उसे लागू करने की बात की तो वो खुद को ही सोशल मिडिया पर चमकाने के लिए मेरे सामने नत-मस्तक दीखता रहा. मैंने मित्रता धर्म को निभाया, अपना भरपूर सहयोग देकर मनगढ (कुंडा) में आयोजित कार्यक्रम के माध्यम से लिम्का बुक ऑफ़ वर्ल्ड रिकॉर्ड में नाम दर्ज कराने में भरपूर सहयोग दिया. लेकीन जब समाजवादी पार्टी को चमकाने और अखिलेश यादव से मिलाने कि बात हुयी तो उस रंगा सियार ने आनाकानी दिखानी शुरू कर दी. जबकि ऐसी भी बात नहीं की उसकी घनिष्ठता अखिलेश यादव से नहीं, खूब घनिष्ठता भी है. लेकिन वो खुद को चमकाने के लिए बेचैन दिखा, पार्टी को चमकाने में उसकी कोई दिलचस्पी नहीं……..अब ऐसे लोग क्या कभी हम जैसे तार्किक लोगों के सवालों का सामना सोशल मिडिया पर कर पाएंगे ? कभी भी नहीं……..यही कारन है की सोशल मिडिया पर समाजवादी पार्टी कमजोर है, अखिलेश यादव की योजनायें और विचार को व्यापकता देने वाला कोई नहीं है. प्रोफेशनल की कमी है और “अखिलेश भईया जिंदाबाद” कर के अपनी चाटुकारिता से प्रसन्नचित्त करने वालों की भरमार है…….ठीक है ?
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