उत्तर प्रदेश के प्रमुख हिंदी दैनिक अमर उजाला ने फिलहाल बरेली यूनिट के 90 फ़ीसदी कर्मचारियों से किनारा कर लिया है। अब ये कर्मचारी ‘अमर उजाला प्रकाशन’ के नहीं बल्कि ‘संवाद न्यूज़ एजेंसी’ के कर्मचारी माने जाएंगे। इनके द्वारा लिखी जा रही खबरों का प्रकाशन भी ‘संवाद न्यूज़ एजेंसी’ से किया जा रहा है। खबर पर अब ‘अमर उजाला ब्यूरो’ सिर्फ बरेली सिटी के ऑनरोल कर्मचारियों की लिखी खबरों पर ही लिखा जा रहा है।
इस बदलाव के पीछे निश्चित रूप से कोई बड़ी वजह है। हालांकि जानकार लोगों का मानना है कि मजीठिया वेज बोर्ड के कंपनी पर बढ़ते दबाव के चलते ऐसा निर्णय लिया गया है।
बरेली यूनिट से अमर उजाला के 5 संस्करणों का प्रकाशन होता है। सोमवार 14 अक्टूबर को जब बदायूं, शाहजहांपुर, लखीमपुर खीरी, पीलीभीत व बरेली देहात क्षेत्र में अखबार का वितरण हुआ तो न सिर्फ कर्मचारियों में हड़कंप मचा बल्कि पाठकों के बीच भी कानाफूसी होने लगी।
प्रत्येक पृष्ठ पर छपी स्थानीय खबरों पर ‘अमर उजाला ब्यूरो’ की जगह पर ‘संवाद न्यूज़ एजेंसी’ लिखा देखा गया। मंगलवार को भी जब खबरों पर यही दोहराया गया तो कर्मचारियों को समझ में आ गया कि ‘अमर उजाला प्रकाशन’ ने उनसे किनारा कर लिया है और वे लोग अब ‘संवाद न्यूज़ एजेंसी’ के न्यूज़ सप्लायर बना दिए गए हैं।
गोरखपुर यूनिट के अंतर्गत कुशीनगर संस्करण में भी संवाद न्यूज़ एजेंसी से खबरों का प्रकाशन हो गया है जबकि अन्य सभी यूनिटों पर ‘अमर उजाला ब्यूरो’ से ही खबरें छप रही हैं।
दरअसल अमर उजाला प्रबंधन सभी यूनिटों में इसे अभी लागू नहीं कर रहा है। अभी वह कुछ संस्करणों में इसे लागू कर स्थिति को भांप रहा है। दरअसल मजीठिया वेज बोर्ड को लागू किए जाने को लेकर सुप्रीम कोर्ट के फैसले के बाद मीडिया घरानों पर दबाव बढ़ता जा रहा है।
उत्तर प्रदेश में भी प्रमुख हिंदी दैनिक अमर उजाला, जागरण व हिंदुस्तान पर बड़ी संख्या में कर्मचारियों ने मजीठिया वेज बोर्ड के बकाया वेतन भत्ते व एरियर की मांग को लेकर श्रम न्यायालय, इलाहाबाद उच्च न्यायालय, लखनऊ उच्च न्यायालय में केस कर रखे हैं। मजीठिया क्लेम के केसों की तादाद बढ़ने से रोकने के लिए मीडिया घराने लगातार कवायद कर रहे हैं ताकि आगे आने वाले समय में वो कर्मचारी मजीठिया का क्लेम ना कर सके, जो अभी संस्थानों में कार्यरत हैं।
जानिए किसकी है संवाद न्यूज़ एजेंसी
संवाद न्यूज़ एजेंसी को कंपनी के रूप में 15 अक्टूबर 2018 को पंजीकृत कराया गया। कंपनी का पंजीकृत कार्यालय 5 सिविल लाइंस रोहिल्ला होटल के सामने बरेली है। इस कंपनी के दो ही डायरेक्टर हैं जिनमें पहला नाम मीडिया से जुड़ा हुआ है। प्रथम डायरेक्टर प्रभात सिंह हैं। दूसरे डायरेक्टर के रूप में उनकी पत्नी श्वेता सिंह हैं जिनका आवासीय पता खुश्बू एनक्लेव बरेली है। कंपनी की अधिकृत पूंजी मात्र एक लाख रुपए है।
ज्ञात हो कि प्रभात सिंह अमर उजाला के कई संस्करणों के संपादक रह चुके हैं और अमर उजाला के मालिक राजुल माहेश्वरी के काफी करीबी माने जाते हैं।
बरेली से मजीठिया क्रांतिकारी निर्मलकांत शुक्ला की रिपोर्ट.
https://www.youtube.com/watch?v=jsymg7SWyxs
pk singh
October 19, 2019 at 3:53 pm
बहुत बुरी स्थिति में फंसा है हिंदी अखबार जगत। हिंदी पत्रकारों का शोषण उन्हीं के बीच के कुछ लोग करवा रहे हैं अखबार मालिकों के चंपू बनकर। वे पेटी ठेकेदार की तरह काम कर रहे।
Anil verma
December 11, 2021 at 1:37 pm
जहां एक तरफ ऎसी वाले कमरों में अपने गद्देदार कुर्सियों पर लोग क्षेत्रीय पत्रकारों पर अपना रौब जमाते और काम को लेकर दबाव बनाते हैं वहीं लोगों की देन हैं आज पत्रकारों की यह स्थिति आने पड़ी हैं ज्यादातर यह वही लोग होते हैं, जो कभी खुद सडकों पर अपने जूते रगड़ने के बाद इन कुर्सियों पर आसीन होते हैं और अपने दौर में अच्छा सैलरी और रुतबा का भोग भी कर चुके हैं। हालाँकि आज के दौर में पत्रकारिता को लेकर हर युवा वर्ग उदास हो गया हैं क्यू के न सैलरी का पता हैं और ना नौकरी की गारंटी। ऎसे में लाखों रुपये खर्च कर पढाई और डिग्री का क्या फायदा। एक दिन इसका परिणाम तो मिडिया जगत को भुगतना ही था। आज के दौर में जहा सरकार डिजिटल सेवा को लेकर अग्रसर रही है वहीं यह मौका युवाओं को भी प्रेरित करते हुए ऐक नया आयाम स्थापित करने का रास्ता भी दिखाई देता है। उनके द्वारा यूट्यूब, वैब न्यूज, तथा लोकल समाचारपत्र प्रकाशित करने का मौका मिला है और वह इस कार्य को बखूबी कर भी रहे हैं। यदि आज के समय में बड़े बैनर वाले अखबारों द्वारा इस वर्ग का ध्यान नहीं रखा गया तो वह दिन दूर नहीं है कि हर घर में अपने अखबार पहुचाने के लिए हर कदम जंग लड़ना पडेगा।
अखबार जगत में पत्रकारों को भी ठेकेदारी प्रथा में किया जा रहा शामिल
आज के दौर में लगभग हर क्षेत्र में ठेकेदारी प्रथा प्रारंभ हो गया हैं। लेकिन जो लोग इस प्रथा के कार्य करते हुए शोषण के शिकार होकर मिडिया से सहायता की गुहार लगाते हैं। लेकिन अब दौर के साथ जो पत्रकार लोगों की समस्याओं को लेकर अवाज उठाने का काम करता है आज वही पत्रकार खुद ही समस्या के घेरे में खड़ा हैं और वह कुछ नहीं कर सकता। यह उन लोगों के लिए चिंता का विषय है जो ऎसी वाले कमरों में बैठ कर अपने सलाह संस्थापकों को देते हैं कल उनका भी नंबर आना तय हैं।
नया दौर में पत्रकारिता करना है तो अब नहीं मिलेगा ज्वाइनिंग लेटर और आईडी कार्ड
यदि आप पत्रकार हैं और आप रात के समय रास्ते में किसी खबर को कवर करने जा रहे हैं तो आपके पास आपका सबसे बड़ा हथियार आईडी कार्ड होता है। ताकि कोई अधिकारी आपकों रोक कर आपके कार्य में बाधा उत्पन्न ना कर सके लेकिन अब जिला संपादकों द्वारा पत्रकारों को अपने व्यवहार और पकड बनाने और उनके सहारे ही काम करने की बात कह दिया जाता हैं परंतु आपको आपके प्रभाव को बढ़ाने नहीं दिया जाएगा आपका आईडी कार्ड प्रदान नहीं किया जाएगा यदि आपके द्वारा कोई खबर किसी अधिकारी के खिलाफ किसी भ्रष्टाचार के विरोध में लगाया जाता हैं और अधिकारी आपसे अपने हुए अपमान का बदला लेने के लिए कुछ गलत राह चुनता है और अपने संपादक को सुचना देते हैं तब वहां से भी कोई सहयोग नहीं किया जाता। फिर तो साफ है कि आप केवल ऐक ऎसी कलम बन गए हो जो लेखने के बाद आपको कूड़ेदान में कभी भी फेक दिया जाएगा।