तारीख 28 जून। ग्राम-पयासे। जिला महराजगंज। स्थान दिवंगत पत्रकार धीरज पांडेय का घर। बाहर अपने हमउम्र बच्चों के साथ खेलता धीरज का बेटा। कभी घर के अंदर, कभी बाहर। धीरज के पिताजी तख्त पर लेटे हुए। हाथ में प्लास्टर, ठुड्ढी पर टांका। एक भौंह पर लगभग ठीक हो चुका घाव। कैंसर वाले जीव तो अंदर कहीं पैबस्त हैं। अब क्या दु:ख दे पाएंगे। जवान बेटे की मौत से ज्यादा असह्य पीड़ा और क्या हो सकती है।
अपने पत्रकार पिता धीरज पांडेय के शव को मुखाग्नि देता उनका मासूम पुत्र
धीरज के चाचा भी एक अलग तख्त पर लेटे हैं। तीर-बांस उन्होंने ले लिया है बच्चे से। बच्चे ने बाप को मुखाग्नि दे दी। इससे ज्यादा क्या कर पाएगा नन्हीं सा मासूम। कर तो वो भी नहीं पा रहे, जिनके यहां धीरज ने जिंदगी के तमाम हसीन साल गुजार दिए थे। ज्यादा तफ्सील में तो फिर आगे।
लंबी खामोशी क बाद थोड़ी बात हुई तो धीरज के छोटे भाई ने कहा कि ‘भैया ने महराजगंज में अमर उजाला को स्थापित किया। ‘अमर उजाला घर-घर जाला’ नारा लगाया और लगवाया लेकिन वहां का कोई अधिकारी अब तक आया नहीं। पिताजी भी बोले ‘सुनलीं हईं संपादक आइल रहलं घाटे पर, केहूसे भेंट नाहीं कइलंअ।’
धीरज की पत्नी से बात करने का कलेजा नहीं था लेकिन जो कुछ पता चला, वह अमर उजाला ‘इंतजामिया’ के लिए बेहद शर्मनाक, चिल्लू भर पानी में डूब मरने जैसा है। धीरज के घर के किनारे आम के पेड़ का एक ठूंठ है, विचित्र। मेरी नजर में आया तो सोचा कि संपादक प्रभात सिंह होते तो इसकी फोटू जरूर उतारते। इतना असंवेदनशील, निष्ठुर व्यक्ति कैसे फोटोग्राफी करता होगा, और कैसे समाचारों के सच को जान पाता, पचा पाता होगा, सचमुच कितनी अचरज की बात।
वेद रतन शुक्ला से संपर्क : [email protected]
अमित सिंह बरेली
June 30, 2015 at 5:48 am
ऊफ!
वेद जी आपने तो कलेजा ही निचोड़ लिया, लिखकर. पढ़ने के बाद वाकई जिस्म के झुरझुरी सी दौड़ गई.
धीरज को मैं नहीं जानता पर मेरी दिल से बद्दुआ हैं कि संपादक और अमर उजाला के मालिक के करीबी भी एक-एक करके मर जाए और ये सब लोग अपना बुढ़ापा लावारिश हालत में एढ़िया रगड़ कर मरें.
अमित सिंह बरेली
June 30, 2015 at 5:48 am
ऊफ!
वेद जी आपने तो कलेजा ही निचोड़ लिया, लिखकर. पढ़ने के बाद वाकई जिस्म के झुरझुरी सी दौड़ गई.
धीरज को मैं नहीं जानता पर मेरी दिल से बद्दुआ हैं कि संपादक और अमर उजाला के मालिक के करीबी भी एक-एक करके मर जाए और ये सब लोग अपना बुढ़ापा लावारिश हालत में एढ़िया रगड़ कर मरें.
पंडित
June 30, 2015 at 7:57 am
जली डाल की ठूंठ पर गई कोकिला कूक
बाल न बांका कर सकी शासन की बंदूक
rahul
June 30, 2015 at 9:25 am
Ved ji prabhat se kam harami mirgank nahi hai mail aapko uska khuch puran record aap ke mail par de raja hun super bhi khuchh likho taki insabki pool khul sake.
ansu
June 30, 2015 at 9:35 am
Dost mail par mai bi mirgak ka का पुराना रिकॉर्ड दे रहा हू। परभात तो मालिकों का कुत्ता है।
muradabab
June 30, 2015 at 9:42 am
Jagran muradabad se use hatane ki charcha thi tabhi amar ujala gaya. Yaha uski politics KO Jagran KO jankari ho gae thi.
rajan
June 30, 2015 at 9:46 am
Maro Prabhat aur Mirgank saloo KO.
बिमल
June 30, 2015 at 9:53 am
नमन : बेद भाई इन सालों को भगवान 😆 सजा देंगे।
vivek
June 30, 2015 at 10:01 am
बेद जी राजूल सर और उदय सर शिकायत करो।
मीडिया रिपोर्टर
June 30, 2015 at 1:02 pm
अकालग्रस्त अमर उजाला गोरखपुर में चंद दिनों में छह विकेट गिरने वाले हैं भगवान बचाए. प्रभात बिना डुबोए मानेंगे नहीं. 37000 कॉपी से घटकर सिटी एडीशन का प्रसार आधे से भी कम मात्र 13000 कॉपी के आसपास आ गया है. जबकि प्रभात ने इसके लिए सारे घोड़े खोल रखे हैं. काबिल सब एडिटर, दो चीफ सब, एक एनई और ढेर सारे तुर्रम खां रिपोर्टर. अन्य संस्करणों जैसे देवरिया, बस्ती, सिद्धार्थनगर आदि में डेस्क पर केवल एक सब एडिटर, उसको भी अपना संस्करण निपटाकर दूसरे संस्करण का काम करन होता है. ब्यूरो में भी पांच हजार रुपल्ली पर रिपोर्टरैं ह वह भी गिने-चुने. इन संस्करणों का माई-बाप कोई नहीं. सिर्फ मीन मेख और डांट-फटकार.
नोट : [email protected] इसे खबर के रूप में प्रयोग कर सकता है.
vivek
July 1, 2015 at 9:13 am
भडास टीम को बधाई।
Jagran murada
July 1, 2015 at 9:41 am
आप सब का कमेंट देखकर काफी
खुशी हुई मैं वहां के समपादक के बारे सिफ सुना हुं की हरामी का पिला है ले किन मिरगांक को जानता हूं। उसको यहां गेहूबन सांप कहा जाता था।
अमर उजाला से एक पत्र
July 1, 2015 at 10:00 am
परभात और मिरगांक कुशीनगर में रंगरलिया मनाने जाते हैं सायद राजूल सर को पता नहीं हैं। इन सबको सजा देने की जरूरत है।
मीडिया रिपोर्टर
July 1, 2015 at 10:30 am
अमर उजाला गोरखपुर से आज एक बंधू गए. उनके पीछे-पीछे इसी महीने पांच और लोग निकल लेंगे. वहां कोई रहना चाहता है प्रभात सिंह के चलते.
chandu
July 1, 2015 at 10:36 am
Mirgarng kamina kub Gorakhpur join kiya es sale KO Jagran she nikal diyagya that.
mahendra
July 1, 2015 at 10:44 am
Kya kar raheho Gorakhpur waloo mark saloo KO
pksingh
July 2, 2015 at 5:59 am
Kyo mirgank waha bhi bosdike politics suru kar diya waha bhi sale hand pe lat padegi parbhat hi marega