जनसत्ता अखबार के लखनऊ ब्यूरो चीफ रहे पत्रकार अंबरीश कुमार ‘शुक्रवार’ मैग्जीन को नए रंग-रूप में लेकर सामने आ रहे हैं. ‘शुक्रवार’ मैग्जीन चिटफंड कंपनी पीएसीएल की मीडिया कंपनी पर्ल ग्रुप से संबंधित थी. चिटफंड कंपनी पीएसीएल के मुश्किल में पड़ने से इसका मीडिया वेंचर भी ध्वस्त हो गया और पत्रिका से लेकर चैनल तक बिक गए या बंद हो गए. अंबरीश कुमार ने फेसबुक पर डाले अपने ताजे स्टेटस में ‘शुक्रवार’ से अपने जुड़ाव को न सिर्फ स्वीकारा है बल्कि इसे बेहतर बनाने के लिए लोगों से सुझाव भी मांगे हैं.
अंबरीश का स्टेटस और उस पर आए कमेंट्स आप भी पढ़ें…
Ambrish Kumar : दिल्ली से प्रकाशित होने वाली पत्रिका ‘शुक्रवार’ को नए रूप में लाने की तैयारी शुरू चुकी है. अप्रैल के अंत तक बाजार वाला अंक आ जाएगा. इस दौर में एक साप्ताहिक पत्रिका से आप क्या अपेक्षा रखते है यह भी जानना चाहता हूँ. पर सुझाव मेल पर ही. [email protected]
Bibha Singh क्या इसका संपादन आप कर रहे हैं अब ? अगर हाँ, तो ख़रीदा जा सकता है.
Ambrish Kumar पत्रिका खरीदना है या कंपनी को
Bibha Singh कंपनी खरीदने की हैसियत नहीं. आम लोग पत्रिका खरीद कर ही संतुष्ट हो सकते हैं. शायद शब्दों के चयन में कोई त्रुटि रह गई हो.
Ambrish Kumar यह खरीदने लायक पत्रिका बने इसके लिए कोई कोर कसर नहीं छोड़ी जाएगी और पूर्वोत्तर से दक्षिण तक यह जाएगी भी
चंचल बैसवारी सुझाव बस इतना ही कि सामाजिक सरोकार, राजनीति और साहित्य का सम्मिश्रण रहे।
Aditya Jatav एक पाठक और नवोदित पत्रकार की हैसियत से अधिकारपूर्ण तरीके से कहना चाहूँगा की कम से कम दो पेज दलित खबरों को समर्पित होने चाहिए।
Ambrish Kumar ख़बरों की सोशल इंजीनियरिंग ठीक नहीं खबर तो खबर होती है ,हां दलित ,आदिवासी और अल्पसंख्यकों को लेकर ठीकठाक कवरेज हो यह हम पहले भी करते रहे है और आगे भी होगा .बेहतर हो इन सवालों पर कुछ लिखे भी
Pankaj Chaturvedi इसमें एक ग्रीन पेज हो जिसके तहत केवल पर्यावरण से जुड़े मसले पर एक लेख हो 1200 शब्दों तक
Bibha Singh खबरों की बजाय विचारों को तरजीह दी जाए तो बात ही क्या है.
Rajesh Dwivedi Patrika jab tak hanth me n aaye tab tak bina dekhe kuchh kahana adhura hoga.
Ambrish Kumar हाथ में आने से पहले ही तो आप जैसे विद्वानों का सुझाव माँगा जा रहा है
Rajesh Dwivedi Aap ke anubhaw w drishti ke dayare se upar koi sujhaw kya ho sakata hai?
Prem Verma राजनीतिक विश्लेषण बहुत सही और पूरी तरह से निष्पक्ष होंना चाहिए। आज कल जिस तरह से पक्षपात पूर्ण विश्लेषण देखने को मिल रहा है उससे पत्रकारिता की विश्वसनीयता बहुत घट रही है। विश्लेषण किसी के पक्ष में हो या विपक्ष में हो यह केवल तथ्यों पर निर्भर होना चाहिए…See More
Sanjaya Kumar Singh हिन्दी में संपादन औऱ वर्तनी का बुरा हाल होता है। जरा कसी हुई कॉपी हो तो पढ़ने में मजा आए। अनीता प्रताप ने कहा था (शायद आपने लिखा भी था) कि ट्रेलीग्राफ के एक पेज का मैटर इंडिया टुडे (या आउटलुक में) दो पेज में आता है औऱ वही टाइम में एक पेज में। टाइम जैसा तो नहीं – रविवार जैसी कसी हुई कॉपी हो।
Ambrish Kumar वर्तनी वाला यह सुझाव बहुत महत्वपूर्ण है खासकर जो जनसत्ता से जुड़े रहे है ,कोशिश कर रहे है कि अच्छी कापी एडिटिंग हो सके इसके लिए आन लाइन व्यवस्था भी की जा रही है
Sanjaya Kumar Singh कसी हुई कॉपी हो तो पढ़ने में मजा आता है और एक पत्रिका पढ़कर ही लगता है कि कितनी जानकारी मिल गई।
Prathak Batohi अगर ग्रीन पेज हो तो सोसियल मीडिया का भी एक कोना हो।
Ambrish Kumar सोशल मीडिया ,पर्यावरण ,मुख्यधारा का मीडिया ,शुद्ध अन्न जल ,स्वास्थ्य पर्यटन जैसे कई स्तंभ तय है
Subhash Chandra Kushwaha आजकल मीडिया दिनभर कुछ ऐसी खबरों से गंधाता रहता है जिनका सामाजिक मूल्य कुछ नहीं होता. तो दो चार पेज- खबरें, जो खबरों में नहीं रहीं. लोक और परलोक… परलोक बाबाओं वाला नहीं?
लोकेन्द्र सिंह शुक्रवार अपने आप में बहुत सार्थक प्रयत्न करती है… मुझे तो अब तक सम्पूर्ण पत्रिका नज़र आई है
Shashi Shekhar सूचना का अधिकार पर एक नियमित स्तंभ. पाठक इस स्तंभ के माध्यम से जुड़ता है.
Vinamra Vrat Tyagi
March 18, 2015 at 1:05 pm
यदि आप इस पत्रिका के कलेवर में फेरबदल कर रहे हैं तो मैं भी इससे अवैतनिक रूप से जुड़ना चाहूंगा। राजनीतिक विषयों के साथ-साथ आजकल और प्राचीन काल के सामाजिक मूल्यों पर भी लेख होने चाहिए।
विनम्र व्रत त्यागी–दैनिक जागरण, डीएलए, प्रभात जैसे समाचार पत्रों में सीनियर रिपोटर और सीनियर सब एडिटर के रूप में कार्य कर चुका हूं।
राकेश भारतीय
March 18, 2015 at 2:54 pm
हार्दिक शुभ कामना