जे सुशील-
अमेरिका में गन वायलेंस को लेकर कुछ नहीं होगा. आज उन्नीस बच्चे मरे हैं तो पूरी दुनिया बात कर रही है लेकिन लोगों को पता नहीं है पांच महीने में यह 27वीं घटना है स्कूलों में गोलीबारी की.
अमेरिका एक हिंसक राष्ट्र है. यह राष्ट्र हिंसा की नींव पर बसा है जिसने लाखों नेटिव लोगों की लाशों पर अपना वजूद खड़ा किया है. इस देश में ही ये संभव है कि हर दिन गोली से सौ से अधिक लोग मारे जाएं.
यह इस देश में ही संभव है कि हर दिन बाईस बच्चों को गोली लगे और हर दिन औसतन पांच बच्चों की गोली लगने से मौत हो. यह इसी देश में संभव है कि हर साल (एक से सत्रह साल के) करीब आठ हज़ार बच्चे गोलियों का शिकार हों जिसमें अठारह सौ से अधिक की मौत हो जाए.
हर साल करीब छह हज़ार बच्चे गोली खाकर बच जाएं. जिसमें से सात सौ बच्चों ने खुद को गोली मार ली हो.
अमिताभ श्रीवास्तव-
अमेरिका के टेक्सस में सैंटा फे हाईस्कूल में गोलीबारी की वारदात रूह कँपा देने वाली है और सिर्फ अमेरिका ही नहीं, तेज़ी से अमेरिकी उपभोक्तावादी जीवन शैली की नक़ल करते जा रहे हमारे भारतीय समाज के लिए भी एक बहुत डरावनी चेतावनी है ।
हिंसा का आकर्षण, हथियारों के जरिये उत्तेजना हासिल करने की बढ़ती ललक कैसे समाज की सोच को बीमार बनाती जाती है, लोग मानसिक रोगी हो जाते हैं और पागलपन में वहशी की तरह व्यवहार करने लगते हैं, यह इस घटना ने एक बार फिर दिखाया है। सिर्फ 18 साल की उम्र के एक हमलावर ने स्कूल में अंधाधुँध गोलीबारी करके 19 बच्चों समेत 23 लोगों को मार डाला। उसने अपनी दादी को भी नहीं बख़्शा। पुलिस ने उसे भी मार गिराया। पुलिस का कहना है मौतों का आँकड़ा बढ़ सकता है। अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडेन ने हादसे पर अफसोस जताते हुए चार दिन के राष्ट्रीय शोक का ऐलान किया है ।
बाइडेन ने अमेरिका की गन लॉबी पर हमला बोला है । सवाल तो यह है कि गन लॉबी को पनपने , बढ़ावा देने का काम क्या सरकार की मंज़ूरी के बगैर हो रहा है? जब अमेरिका हथियारों का सौदागर बन कर पूरी दुनिया पर दादागिरी के जरिये धौंस जमाता है , हॉलीवुड का सिनेमा रैंबो जैसे नायक रचता है तो उसके अपने समाज में ऐसी वारदातें क्यों नहीं होंगी।
अमेरिका की नक़ल में भारत में भी आजकल हिंसक और उग्र अभिव्यक्तियों के लिए आकर्षण तेज़ी से बढ़ रहा है। गांधी की बातों पर चर्चा की जगह गोडसे का महिमामंडन होने लगा है। अहिंसक विचारों , विनम्रता, शालीनता को कमजोरी और नामर्दी समझा जाने लगा है। एक समाज के तौर पर हमें समझना चाहिए कि बच्चों के हाथों में तीर-तलवार, त्रिशूल और पत्थर, बंदूक़ें थमाने वाली सियासत टेक्सस जैसी वारदातों को ही जन्म देगी।
माँ-बाप को सचेत हो जाना चाहिए कि उनके बच्चे कहीं हिंसक वीडियो गेम, एनिमेशन फिल्मों , कॉमिक्स , खिलौनों वगैरह की संगत से अशांत, ज़िद्दी , उग्र , हिंसक तो नहीं हो रहे हैं। आजकल बच्चों के खिलौनों में बंदूक़ों और रेस लगाने वाली कारों पर ज्यादा ज़ोर रहता है। तोहफ़े में किताबें देने का चलन ख़त्म हो गया है। अगर बच्चे की सालगिरह पर महँगा खिलौना नहीं दिया तो देने वाले की इज़्ज़त गई समझो।
समाज को मानसिक रोगी होने से बचाना है तो बच्चों पर और ज्यादा ध्यान देने की ज़रूरत है।हमारे न्यूज़ चैनल दिन रात हिंसक लहजे में चर्चाएँ कराते हैं। शीर्षक देख लीजिए ऐसे कुछ कार्यक्रमों के – दंगल , हुंकार, हल्ला बोल,ताल ठोंक के। बातचीत से ज्यादा कुश्ती का संकेत देते हैं ये शीर्षक। इन चैनलों से भी बचने की ज़रूरत है। यह लोगों को मानसिक बीमार बना रहे हैं।