Ravish Kumar : इस चुनाव में अभी तक की एक ही रिपोर्ट है जिसे मेहनत से तैयार किया गया है। Huffpost के अमन सेठी की ये रिपोर्ट इकलौती है जो खोजी और साहसिक पत्रकारिता के मानदंडों पर खरा उतरती है। मीडियाविजिल ने इसका हिंदी में अनुवाद किया है। भाजपा के समर्थक और कार्यकर्ता इसे पढ़ें और समझें कि कैसे उनके दल के भीतर अब ऐसे रहस्यमयी संगठन हैं जिनके बारे में उन्हें ख़बर तक नहीं।
अमन सेठी की रिपोर्ट पढ़ने के बाद लगा कि राजनीतिक संगठनों में जो बदलाव आए हैं उसके बारे में नेताओं और कार्यकर्ताओं को भी नहीं पता। बीजेपी के पास निष्ठावान कार्यकर्ताओं का विशाल नेटवर्क है फिर भी अमित शाह को पर्सनल और रहस्यमयी नेटवर्क बनाना पड़ता है। फेक न्यूज की फ़ैक्ट्री खोलनी पड़ती है। Huffpost पर अमन सेठी की रिपोर्ट इस चुनाव की एकमात्र शानदार पत्रकारिता है। ABM के नेटवर्क का ख़ुलासा किया है वो बता कहा है कि जीवंत कार्यकर्ता सिर्फ व्हाट्स एप मीम फार्वर्ड करने की इकाई बन कर रह गया है। यह प्रक्रिया दूसरे दलों में भी है मगर लघु रूप में। संसाधनों से लैस बीजेपी में यह पेशेवर और परिपक्व हो गया है।
इसके अलावा बहुत कुछ बदला है। हमने कभी भी बीजेपी के ऐसे पोस्टर नहीं देखे जिस पर कई नेताओं की तस्वीर हो और अटल-आडवाणी की न हो। इस वक़्त वडोदरा में बीजेपी की स्थापना दिवस पर कार्यक्रम चल रहा है। पोस्टर में अटल-आडवाणी नहीं हैं। यह बदलाव सिर्फ वर्चस्व का नहीं है। कुछ और है। वरना ऐसी चूक अनजाने में तो नहीं होती। कांग्रेस के पोस्टरों से ऐसे ही पटेल ग़ायब होने लगे तो मोदी ने पटेल की प्रतिमा पर तीन हज़ार करोड़ ख़र्च कर दिए। कहीं ऐसा न हो कि कांग्रेस छह हज़ार करोड़ ख़र्च कर अटल बिहारी वाजपेयी की प्रतिमा बनवा रही हो! जो बदल रहा है वो सतही समझदारी से अधिक की माँग करता है।
अमन सेठी की अंग्रेज़ी में मूल रिपोर्ट बहुत लंबी है। इसे सभी समझें। सभी न्यूज चैनल न देखने के मेरी अपील पर ग़ौर करें। सोचें। चैनल बंद करने से पहले मैंने जो लिखा है और बोला है उस पर विचार करें। मैं आपको न्यूज़ चैनलों से छीन कर आपकी शाम लौटा रहा हूँ। इतना तो पक्का है। रिपोर्ट का सार-
1- अगस्त, 2013 में प्रशांत किशोर ने महिला सशक्तीकरण के लिए एक संस्था बनाने की सलाह दी थी, जिसे असल में चुनाव प्रचार के लिए इस्तेमाल किया जाना था. किशोर तब भाजपा के प्रचार अभियान में मुख्य भूमिका निभा रहे थे.
2- योजना यह थी कि भाजपा, मोदी या किशोर से इस एनजीओ का कोई नाता सामने न दिखे. घोषित तौर पर इसे तेज़ाब हमले की सर्वाइवर महिलाओं के लिए काम करना था.
3- 10 अगस्त को प्रशांत किशोर के साथ काम करनेवाले एक ग्राफ़िक डिज़ाइनर की पत्नी और बहन के नाम पर सर्वणी फ़ाउंडेशन नामक एनजीओ का पंजीकरण करा लिया गया.
4- पर इस संस्था का कोई ख़ास उपयोग न हो सका और यह निष्क्रिय पड़ी रही. लेकिन 2015 में बिहार विधानसभा चुनाव में हार के बाद इस संस्था को फिर से ज़िंदा किया गया. तब तक प्रशांत किशोर भाजपा का साथ छोड़कर नीतीश कुमार के साथ लग गये थे और कुछ अन्य पार्टियों को भी प्रचार रणनीति में मदद करते थे.
5- अब सर्वणी फ़ाउंडेशन का नया नाम था- द एसोसिएशन ऑफ़ बिलियन माइंड्स. इस संस्था को भाजपा अध्यक्ष अमित शाह की निजी सलाहकार इकाई के रूप में काम करना था.
6- यह संस्था- एबीएम- तब से लोगों के बीच में और सोशल मीडिया प्लेटफ़ॉर्म, व्हाट्सएप आदि पर झूठ फैलाने, चर्चा कराने आदि के काम में जुटी हुई है. मार्च, 2018 में भाजपा के आइटी सेल प्रमुख अमित मालवीय से ‘इंडिया टूडे’ के एक कार्यक्रम में जब इस संस्था से भाजपा के संबंध के बारे में पूछा गया, तो उनका जवाब था कि वे ऐसी किसी संस्था को नहीं जानते हैं.
7- एबीएम में कम-से-कम 161 फ़ुलटाइम कर्मचारी हैं, जो देशभर में फैले 12 क्षेत्रीय कार्यालयों में काम करते हैं. इनके अधीन बड़ी संख्या में कार्यकर्ता हैं, जिन्हें काम के बदले पैसा दिया जाता है. ये लोग भाजपा कार्यकर्ताओं से अपना परिचय ‘अमित शाह टीम’ के रूप में कराते हैं.
8- यह संस्था इंटरनेट पर पार्टी के लिए ‘मैं भी चौकीदार’, ‘भारत के मन की बात’, ‘नेशन विथ नमो’ जैसे कई अभियानों की रूप-रेखा तय करती है और उनके लिए सामग्री तैयार करती है. सोशल मीडिया पर ऐसे पेजों को इस तरह बनाया गया है कि वे एबीएम या भाजपा द्वारा संचालित न लगकर मोदी के प्रशंसक पेजों की तरह दिखें.
9- फ़रवरी, 2019 में फ़ेसबुक द्वारा जारी सूचना के मुताबिक, एबीएम द्वारा संचालित दो पेजों ने सबसे अधिक पैसा ख़र्च किया है. हफ़पोस्ट ने अपनी जांच में पाया है कि सही-ग़लत असीमित सूचनाओं से मतदाताओं को प्रभावित करने के लिए संसाधन-संपन्न एक बड़ी मशीनरी खड़ी कर दी गयी है, जो सोशल मीडिया का ख़ूब इस्तेमाल कर रही है. इसका उद्देश्य हमेशा नरेंद्र मोदी को फ़ोकस में रखना है. चुनाव आयोग के मौजूदा नियमों के तहत भाजपा को एबीएम द्वारा किये गये ख़र्च का ब्यौरा भी नहीं देना है और यह संस्था एक तरह गोपनीय रहकर भी काम करती है.
10- मई, 2018 में कर्नाटक चुनाव के समय बूम लाइव ने अनेक ऐसे वेबसाइटों का ख़ुलासा किया था, जो देखने में समाचार साइटों की तरह थे- एक्सप्रेस बंगलोर, बंगलोर हेराल्ड, बंगलुरु मिरर, बंगलुरु टाइम्स आदि. ये साइटें फ़ेक न्यूज़ देने के साथ विपक्षी पार्टियों के ख़िलाफ़ दुष्प्रचार करती थीं. कर्नाटक में भाजपा की हार के बाद ये साइटें ग़ायब हो गयीं.
11- बूम लाइव ने पाया था कि बंगलोर हेराल्ड का बेवसाइट भारत पॉज़िटिव नामक साइट पर ले जाता था, जो लगातार फ़ेक न्यूज़ और बदनाम करने के लिए घटिया प्रचार करता था. हफ़पोस्ट ने अपनी जांच में पाया है कि यह वेबसाइट और इसका फ़ेसबुक पेज एबीएम द्वारा संचालित किया जाता है. बंगलोर हेराल्ड और बंगलुरु मिरर का मालिकाना भी एबीएम के पास है.
12- इनके अलावा एबीएम कम-से-कम सात लोकप्रिय फ़ेसबुक पेज चलाता है- भारत के मन की बात, नेशन विथ नमो, फिर एक बार मोदी सरकार, महाठगबंधन, इंडिया अनरैवेल्ड, माइ फ़र्स्ट वोट फ़ॉर मोदी और मोदी11. नेशन विथ नामो ने राहुल गांधी के भाषणों में छेड़छाड़ कर अनेक वीडियो फ़ेसबुक पर साझा किया है.
13- दिसंबर, 2018 में फ़ेसबुक ने नियम बनाया कि राजनीतिक विज्ञापन देनेवाले पेजों को अपना पता और फोन नंबर दिखाना होगा. एबीएम द्वारा चलाये जा रहे तीन पेजों- नेशन विथ नमो, भारत के मन की बात और माइ फ़र्स्ट वोट फ़ॉर मोदी- का पत्राचार का पता भाजपा मुख्यालय है. फिर एक बार मोदी सरकार, महाठगबंधन और मोदी11 के पेजों के पता एबीएम या भाजपा से संबंधित नहीं हैं. इन सभी पेजों पर दिए गए फोन नंबरों पर संपर्क नहीं हो पाया था.
14- फ़ेसबुक भले ही पते और फोन नंबरों को सत्यापित करने के नियम का दावा करता है, पर इसमें वह बेहद लापरवाह है. हफ़पोस्ट ने राजनीतिक विज्ञापन देनेवाले पेज के रूप में जब अपना पंजीकरण कराया, तो फ़ेसबुक से एक टेक्स्ट मैसेज आया कि यह पेज सत्यापित हो गया है.
15- एबीएम ने मार्च, 2017 के उत्तर प्रदेश चुनाव से ही लगातार भाजपा के लिए काम किया है, लेकिन चुनाव आयोग को भाजपा द्वारा जमा कराये गये ख़र्च के विवरण में इस कंपनी का कहीं भी उल्लेख नहीं है.
16- फ़ेसबुक पेज नेशन विथ नमो की कहानी बहुत विचित्र है. यह पेज सबसे पहले इंडियाकैग नाम से 11 जून, 2013 को बनाया गया था. फिर हफ़्ते भर बाद इसे बदलकर सिटिज़न फ़ॉर एकाउंटेबल गवर्नेंस कर दिया गया. यह सीएजी तब मोदी के प्रचार प्रबंधक प्रशांत किशोर के दिमाग़ की पैदाइश था. पहले वे इसे छुपाकर चला रहे थे, फिर बाद में इसे उन्होंने अपनी संस्था ही बना लिया. यह संस्था 2014 में भंग कर दी गयी, जब मोदी ने चुनाव जीत लिया. फिर प्रशांत किशोर भी अलग हो गये क्योंकि मोदी और शाह को लगने लगा था कि वे जीत का अधिक श्रेय ख़ुद को देने लगे हैं.
17- साल 2016 में जब सर्वणी फ़ाउंडेशन नये अवतार- एबीएम- के रूप में आया, तो सीएजी का फ़ेसबुक पेज भी उनके हाथ लगा. इस पेज का नाम जनवरी, 2018 में बदलकर सिटिज़ेंस फ़ॉर मोदी गवर्नमेंट किया गया, फिर दो फ़रवरी को नेशन विथ मोदी किया है और फिर 14 फ़रवरी को नेशन विथ नमो किया गया.
हफ़पोस्ट ने इस रिपोर्ट में बहुत सी सूचनाएं और विवरण उपलब्ध कराया है. भारतीय लोकतंत्र को बचाने और उसे बेहतर बनाने की कोशिश में वैचारिक और विचारधारात्मक तत्वों पर ध्यान देने के साथ तकनीकी और वित्तीय आयामों पर भी नज़र रखी जानी चाहिए. दुनिया भर में इनका दुरुपयोग हो रहा है और लोकतांत्रिक मूल्यों को नष्ट किया जा रहा है.
एनडीटीवी के वरिष्ठ पत्रकार रवीश कुमार की एफबी वॉल से.
Shailendra Singh
April 8, 2019 at 8:46 pm
Kuchh khas nahin. Kya The Wire aur Huffpost bhi isi shreni ke online pages nahin hain?
Khoda pahad nikla haath, woh bhi toota hua
Anuradha Sharma
April 10, 2019 at 8:53 pm
Shailendra ji aisi news aapke liye nahi hai..kyonki itne tathya dene ke baad bhi aap nahi maan sakte ki Amit Shah ka personal network kaise kaam karta hai…..Shayad aap bhi BJP ke andhe bhagto me se ek hain.Regards
Anuradha Sharma
April 8, 2019 at 9:36 pm
very nice ravish ji.. akhir sach kab tak chupa reh sakta hai. pani ke satah se gandgi ek na ek din ubhar kar samne aa he jaati hai.. God bless u
Lots of Regards
विश्वास व्यास
April 13, 2019 at 4:14 pm
आज अच्छे सच्चे पत्रकार है ही कौन जो सरकार के दमनचक्र के खिलाफ भी खड़े रहने का साहस दिखाए आज पत्रकारिता का स्तर बहुत ही गिर चुका है सारे यूट्यूब चैनल और वेबसाइट्स वाले अपनी माईक आई डी लगाते है आज फिर भी भले ही 99% लोग सरकार की सुविधाएं पंसद करते है चाहे ही विज्ञापन राशि हो लेकिन जिसने भी ये न्यूज़ बनाई है वो सचमुच बधाई के पात्र है…विश्वास व्यास 9893511000