जैसा कि वादा किया था, इस रहस्य से पर्दा उठाऊँगा कि क्यों और किन हालात में जुलाई 2017 में टाइम्स समूह की वेबसाइटों से अमित शाह के बारे में छपी एक स्टोरी हटा ली गई। क्या यह संपादकों ने ख़ुद हटाई थी, मैनेजमेंट ने इसे हटवाया था या इसे हटाने के लिए किसी बाहरी ताक़त (पढ़िए सरकार) ने बाध्य किया था? लेकिन इससे पहले कि हम आगे बढ़ें, सारे मामले को फिर से याद कर लिया जाना सही होगा ताकि वे पाठक जिनको इस मामले का पता न हो, उनको भी मामला क्लियर हो जाए।
29 जुलाई 2017 को टाइम्स ऑव इंडिया में एक ख़बर छपी – Shah’s assets grew by 300% in five years. (देखें चित्र) हिमांशु कौशिक और कपिल दवे नाम के दो टाइम्स संवाददाताओं ने उन चार उम्मीदवारों की संपत्ति के ब्यौरे के बारे में रिपोर्ट लिखी थी जो गुजरात से राज्यसभा की तीन सीटों के लिए उम्मीदवार थे। ये थे बीजेपी के अमित शाह, बलवंत सिंह राजपूत, स्मृति इरानी और कांग्रेस के अहमद पटेल। चुनाव नियमों के अनुसार किसी भी उम्मीदवार को पर्चा दाख़िल करते समय एक हलफ़नामा (ऐफ़िडेविट) देकर अपनी आय और दूसरी जानकारियों का ब्यौरा देना होता है।
इन दो संवाददाताओं ने उन हलफ़नामों में दी गई सूचनाओं के आधार पर पता लगाया कि वर्तमान में किस उम्मीदवार के पास कितनी संपत्ति है। इसके साथ ही उन्होंने उन उम्मीदवारों द्वारा अतीत में दाख़िल किए गए हलफ़नामों को भी देखा और दोनों में दी गई सूचनाओं की तुलना की ताकि यह पता चले कि इस बीच उनकी संपत्ति में कितना इज़ाफ़ा हुआ है। अमित शाह ने इससे पहले 2012 में गुजरात विधानसभा का चुनाव लड़ा था और तब फ़ाइल किए गए ऐफ़िडेविट में अपनी संपत्ति की जानकारी दी थी।
जब इन संवाददाताओं ने अमित शाह के दोनों हलफ़नामों में दी गई जानकारियों की तुलना की तो इन्हें पता चला कि 2012 में जहाँ अमित शाह की चल-अचल संपत्ति 8.54 करोड़ की थी, वहीं 2017 में वह 34.31 करोड़ की हो गई। यानी पाँच सालों में चार गुना! यह एक एक ज़बरदस्त ख़बर थी क्योंकि कोई भी ऑनेस्ट निवेश आपको इतना रिटर्न नहीं देता कि पाँच साल में आपका एक रुपया चार रुपये हो जाए। ख़बर से प्रथम दृष्ट्या यही संदेश जाता था कि अमित शाह ने बीजेपी अध्यक्ष बनने के बाद अवैध तरीक़े से धन-संपत्ति अर्जित की है हालाँकि ख़बर में ऐसा कुछ नहीं लिखा था।
29 जुलाई की सुबह यह ख़बर छपी और राजनीतिक गलियारों में हड़कंप मच गया। तब तक यह ख़बर टाइम्स ग्रूप की वेबसाइटों पर भी आ गई थी और सोशल मीडिया पर भी चल निकली थी। अध्यक्षजी अपनी इज़्ज़त पर बट्टा लगते देख ऐक्टिव हो गए और अपने दामन पर लगे दाग़ को मिटाने का ज़िम्मा एक विश्वस्त सहयोगी को दिया जो केंद्र में मंत्री भी था। मंत्री महोदय अपने काम में जुट गए और टाइम्स के संपादकों के मोबाइल घनघनाने लगे। मंत्रीजी का कहना था कि इस ख़बर में यह जानकारी नहीं है कि पिछले पाँच सालों में अमित शाह की संपत्ति में यह इज़ाफ़ा कैसे हुआ और इसी कारण ग़लत तस्वीर पेश करती है। उनके अनुसार 2013 में अमित शाह की माताजी के निधन के बाद उनको 18.85 करोड़ की अपनी पैतृक संपत्ति मिली जिस कारण 2017 में उनकी संपत्ति बढ़ी हुई दिख रही है।
टाइम्स के संपादकों ने कहा कि ठीक है, प्रिंट में छपी ख़बर का तो हम कुछ नहीं कर सकते। आपका पक्ष हम कल छाप देंगे। जहाँ तक वेबसाइटों पर चल रही ख़बर का मामला है तो उसमें हम यह बात अभी जुड़वा देते हैं। मंत्रीजी मान गए। उसके बाद टाइम्स ऑव इंडिया, नवभारत टाइम्स और ईकनॉमिक टाइम्स के ऑनलाइन संस्करणों में यह ख़बर संपादित कर दी गई।
ख़बर संपादित तो हो गई, मंत्रीजी को यह शुभ सूचना भी दे दी गई लेकिन टाइम्स समूह का दुर्भाग्य, मंत्रीजी के कंप्यूटर पर पुरानी ख़बर ही दिख रही थी।
जो लोग वेबसाइट तकनीकी से वाक़िफ़ हैं, वे जानते होंगे कि कैश के कारण कई बार कंप्यूटरों और मोबाइलों पर पुराना पेज ही दिखता है। इस मामले में भी संभवतः वही हो रहा था।
टाइम्स का तकनीकी विभाग सर्वर से कैश क्लियर करवाने में जुट गया। मेहनत रंग लाई और टाइम्स के सभी कंप्यूटरों पर संशोधित ख़बर दिखने लगी लेकिन न जाने क्यों एक घंटे के बाद भी मंत्रीजी के कंप्यूटर पर बदली हुई ख़बर नज़र नहीं आई। उनको लगा कि ये टाइम्स वाले हमें उल्लू बना रहे हैं… या शायद अध्यक्षजी की तरफ़ से एक बार फिर फ़ोन आ गया होगा कि अभी तक ख़बर ठीक क्यों नहीं हुई। उन्होंने साफ़ आदेश दिया कि आप ख़बर हटा दो।
आपको बता दूँ कि टाइम्स ऑव इंडिया के मैनेजमेंट की यह स्पष्ट नीति है कि कोई भी ख़बर या तस्वीर साइट से हटाई नहीं जाएगी। उसका मत है कि जब किसी ख़बर में जा रही ग़लती को सुधारा जा सकता है तो वह ख़बर हटाई क्यों जाए। इसलिए यह काम उतना आसान नहीं था जितना मंत्रीजी को लगता था कि उन्होंने कहा और इन्होंने कर दिया।
टाइम्स ग्रूप के संपादकों और मैनेजमेंट के बीच सलाह-मशविरा का दौर शुरू हुआ कि अब क्या करें। सरकार को नाराज़ करना ठीक नहीं है, ख़ासकर तब जबकि मामला अमित शाह जैसे पावरफ़ुल व्यक्ति का हो लेकिन साइट से ख़बर हटाना भी ठीक नहीं है क्योंकि इससे ग्रूप की बहुत बदनामी होगी। टाइम्स के ही एक संपादक ने तब उस मंत्री से सीधे बात की, समझाया कि ख़बर हटाने से आपको ही नुक़सान होगा। लोग सोचेंगे कि ज़रूर कोई घपला है, इसीलिए ख़बर हटवाई जा रही है। वे दो घंटे तक उनको समझाते रहे लेकिन वे अपनी माँग पर अड़े रहे। बोले, ‘हमारे नफ़ा-नुक़सान की आप चिंता मत करिए। आप बस ख़बर हटा दीजिए।’
जब दो घंटों तक समझाने के बाद भी मंत्रीजी नहीं माने तो ग्रूप ने फ़ैसला किया कि ख़बर हटा ही दी जाए चाहे इसके लिए उसे सोशल मीडिया पर कितनी भी आलोचना झेलनी पड़े।
टाइम्स में अपने करियर के 34 साल गुज़ारने के कारण मैं जानता हूँ कि उसके संपादकों और मैनेजमेंट को यह ख़बर हटवाते समय कितनी तक़लीफ़ हुई होगी। लेकिन उन्होंने उस दिन अपने-आपको यही कहकर समझाया होगा कि जब आपके सामने दो लोग खड़े हों – एक वह जो आपको गालियाँ दे सकता है और दूसरा वह जो आपको मार सकता है तो आपको उसी की बात माननी चाहिए जो आपको मार सकता है।
सही भी है। डर सबको लगता है। वैसे भी टाइम्स ऑव इंडिया आख़िर कितना भी बड़ा अख़बार हो, वह इंडियन एक्सप्रेस नहीं है न ही उसके मालिक रामनाथ गोयनका हैं जिन्होंने कहा था कि मैं अख़बार बंद कर दूँगा लेकिन दबाव के आगे नहीं झुकूँगा।
जैसे कि मैनेजमेंट और संपादकों को डर था, टाइम्स की वेबसाइटों से वह ख़बर हटाने पर मीडिया में उसकी ख़ूब खिंचाई हुई। TheWire ने इसपर भी एक स्टोरी चलाई – Stories on Amit Shah’s Assets, Smriti Irani’s ‘Degree’ Vanish From TOI, DNA. उसने मैनेजमेंट और एडिटॉरियल से जानना चाहा कि ख़बर क्यों हटाई गई लेकिन सबने ज़ुबानें बंद कर लीं। मैं उस समय नवभारतटाइम्स.कॉम का संपादक था। हमने भी वह ख़बर ली थी और बाद में उसे हटाया इसलिए सोशल मीडिया पर मुझसे भी तब सवाल किए गए कि हमने यह ख़बर क्यों हटाई। तब मैं ये सारी बातें नहीं बता सकता था। मैंने केवल इतना कहा कि यह ख़बर हमने टाइम्स से ली है और चूँकि टाइम्स ने ही यह ख़बर हटा दी है सो हमें भी हटानी पड़ी। मैंने पीटीआई का उदाहरण देते हुए कहा कि वह यदि कोई ख़बर जारी करे और बाद में उसे वापस ले ले तो मुझे तो वह ख़बर हटानी ही होगी।(देखें चित्र)
TOI समूह की साइटों से ख़बरें हटने के बाद अमित शाह की संपत्ति में इज़ाफ़े वाली ख़बर की और चर्चा होने लगी तो दो दिनों के बाद बीजेपी की तरफ़ से एक वक्तव्य जारी किया गया जिसमें वही बात कही गई थी जो पार्टी TOI संपादकों से कह रही थी। (देखें चित्र)
आज मैं ये सारी बातें इसलिए लिख रहा हूँ ताकि सरकार किस तरह मीडिया पर दबाव डाल रही है, यह सबको पता चले। माना कि बीजेपी का स्टैंड सही था कि ख़बर अधूरी है और उससे ग़लत संदेश जा रहा है लेकिन टाइम्स के संपादक तो उसे सुधारने के लिए राज़ी थे, सुधारा भी था। बस एक तक़नीकी कारण से संशोधित ख़बर नहीं दिख रही है (और वह तकनीकी गड़बड़ी मंत्रीजी के कंप्यूटर की भी हो सकती है) लेकिन उसके लिए ख़बर ही हटवा दी गई, यह सरकारी दादागीरी नहीं तो क्या है!
उस घटना के बाद पूरी संपादकीय टीम को एक संदेश दे दिया गया कि मोदी और शाह के ख़िलाफ़ कोई भी ख़बर नहीं जानी है। एक तरह से सरकार और टाइम्स में ‘दोस्ती’ हो गई थी।
क्या एक्सप्रेस के कार्यक्रम में स्पीच देते समय राजनाथ सिंह सरकार और मीडिया के बीच ऐसी ही ‘दोस्ती’ की इच्छा जता रहे थे?
टाइम्स ग्रुप में डिजिटल एडिटर रह चुके वरिष्ठ पत्रकार नीरेंद्र नागर की एफबी वॉल से.
उपरोक्त स्टेटस पर आए ढेरों कमेंट्स में से कुछ प्रमुख यूं हैं…
Avinish Kumar सर बहुत बढ़िया किए। कल सत्यहिंदी ने वो खबर हटा दी थी। आपने लिखकर मीडिया के दलालों पर तमाचा मार दिया है…
Nirendra Nagar मुझे Satya Hindi सत्य हिन्दी से कोई शिकायत नहीं है। उनका कहना सही है कि इसमें TOI का पक्ष नहीं है जो कि किसी भी फ़र्स्ट हैंड अकाउंट में होता भी नहीं है। लेकिन मेरी समझ से उनको यह स्टोरी हटाने के बजाय TOI का पक्ष लेकर एक और स्टोरी डालनी चाहिए थी।
Avinish Kumar सर यही नियम भी है। अगर टाइम्स ग्रुप आपत्ति दर्ज कराती है, तो उसे भी अपना पक्ष रखने के लिए कहा जाना चाहिए। स्टोरी हटाना गलत है।
Vikas Kumar ऐसी हजारों कहानियां हैं। लेकिन शुक्रिया एक कहानी को रिकार्ड में लाने के लिए।
Devpriya Awasthi नीरेंद्र जी, आज के मीडिया का स्याह पहलू बखूबी उजागर किया आपने।
Ramsharan Joshi पूँजी के हमाम में अमित, अहमद सब नंगे हैं.