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सुख-दुख

ये अमित शाह के गृहमंत्री होने का खौफ ही है कि चिदंबरम रातोंरात लापता हैं!

Abhishek Upadhyay : आज अगर अमित शाह की जगह कोई दूसरा गृहमंत्री होता तो चिदंबरम आज भी अपने घर पर मिलते। वे डरे हुए न होते। लापता न होते। वाकई बहुत ही दिलचस्प राजनीतिक लड़ाई है। संयोग देखिए। पी. चिदंबरम आज भागे हुए हैं और आज देश का गृह मंत्रालय अमित शाह के हाथ में है। कभी तस्वीर एकदम उल्टी थी। तब चिदंबरम देश के गृहमंत्री थे और अमित शाह साबरमती की जेल में थे। तब चिदंबरम नॉर्थ ब्लॉक स्थित गृहमंत्री कार्यालय में बैठकर “भगवा आतंकवाद” की फाइल तैयार करवा रहे थे और अमित शाह अपने बचाव की फ़ाइल में रोज़ ही नए पन्ने जोड़ रहे थे। अमित शाह इस मामले में हिसाब किताब पूरा रखने के आदी हैं। मुरव्वत करना उनकी आदत में नही है। ये अमित शाह के गृहमंत्री होने का खौफ ही है कि चिदंबरम रातोंरात लापता हैं।

यही अमित शाह के काम करने की शैली है। किसी ने कभी उम्मीद नही की थी कि एक रोज़ कश्मीर में यूँ बाजी पलट दी जाएगी। उम्मीद तो ये भी नही थी कि कभी देश के सबसे ताकतवर मंत्री रहे चिदंबरम का ये हश्र भी होगा! पर यही अमित शाह हैं। उनकी किताब में “रियायत” नाम का शब्द नही हैं। सही-गलत क्या है, ये फैसला वक़्त और कोर्ट पर छोड़ते हैं। आज सिर्फ राजनीति की नई इबारत को पढ़ने की कोशिश हैं।

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चिदम्बरम मार्च 2018 से लगातार अपनी गिरफ्तारी पर रोक का आदेश हासिल कर रहे थे। मगर आज किस्मत जवाब दे गई। उनके खिलाफ ठोस सबूत हैं। एक भी आरोप हवाई नहीं हैं। विदेशों में परिवार के नाम हजारों करोड़ों की संपत्ति के कागज हैं। आईएनएक्स मीडिया और फिर एयरसेल-मैक्सिस के मामले में एफआईपीबी नियमों को तोड़ मरोड़ कर सैकड़ों करोड़ का फायदा पहुंचाने और उसका एक बड़ा परसेंटेज अपने बेटे की कंपनी तक पहुंचाने के पक्के सबूत हैं। ये सब तब हो रहा था जब चिदंबरम देश के वित्तमंत्री थे।

यकीन मानिए कि इस देश की राजनीति वक़्त के एक निर्णायक दौर में पहुंच चुकी है। परिवार, खानदान, प्रभावशाली लोग, बड़े नेताओं से मीठे रिश्ते जैसे सियासत के खानदानी शब्द राजनीति की इस नई डिक्शनरी से साफ हो चुके हैं। अब ये आर-पार की लड़ाई है। आज चिदंबरम की बारी आई है। नोट कर लीजिए, कल दस जनपथ का बुलावा आएगा। इन पांच सालों में बहुत कुछ ऐसा होगा जो इतिहास में कभी न हुआ।

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नोट कर लीजिए कि भारत की राजनीति के ये 5 साल अगले सौ सालों तक राजनीति के पंडितों के लिए शोध का विषय रहेंगे।

Dayanand Pandey : पूर्व केंद्रीय गृह और वित्त मंत्री रहे पी चिदंबरम का किसी पेशेवर अपराधी की तरह मोबाईल बंद कर फ़रार हो जाना बहुत ही अफसोसनाक है। अब अगर सुप्रीम कोर्ट से उन्हें कल कोई राहत मिल भी जाए तो भी कोई मतलब नहीं। गिरफ्तार तो कल हो ही सकते हैं , भले ही तुरंत ज़मानत मिल जाए। फ़िलहाल चिदंबरम को क़ानून के साथ चूहे , बिल्ली का खेल तो नहीं खेलना चाहिए था।

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कहा तो यह भी जा रहा कि नोटबंदी भी मोदी ने चिदंबरम के रैकेट को तोड़ने के लिए किया था। इंद्राणी मुखर्जी तो चिदंबरम के खिलाफ सरकारी गवाह बन ही चुकी हैं , अभी-अभी लंबे समय बाद जेल से ज़मानत पर छूटे एक पत्रकार उपेंद्र राय को भी चिदंबरम के खिलाफ सरकारी गवाह बनाने की तैयारी है। माना जा रहा है कि चिदंबरम के कैरियर और टूल के तौर पर उपेंद्र राय काम कर रहे थे । तो सुब्रमण्यम स्वामी ने चिदंबरम को घेरने के लिए उपेंद्र राय को घेर कर गिरफ्तार करवाया था।

बहरहाल , चिदंबरम अगर एक मामले से बचेंगे तो दूसरे , तीसरे तमाम मामले सी बी आई और ई डी तैयार किए बैठी है। कहा तो यह भी जा रहा है कि मोदी पिछले कार्यकाल में ही चिदंबरम को जेल भेजना चाहते थे लेकिन अरुण जेटली प्रकारांतर से उन की मदद करते रहे थे। इस लिए चिदंबरम बचते रहे थे । लेकिन निर्मला सीतारमण ने चिदंबरम को सूत भर भी सांस नहीं लेने दिया है। अभी तो सी बी आई ने आधी रात उन के घर पर नोटिस चिपका कर दो घंटे में सी बी आई दफ्तर तलब किया है। सुबह तक देखिए कि क्या-क्या हो जाता है।

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वरिष्ठ पत्रकार अभिषेक उपाध्याय और दयानंद पांडेय की एफबी वॉल से।

इसी प्रकरण पर कुछ अन्य पोस्ट्स-

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Manish singh : चिदम्बरम को जेड सेक्युरिटी कवर है। 22 सरकारी व्यक्ति सदा साथ रहते है। सब एक साथ गायब हैं? एक मामूली इन्कमटैक्स की रेड के पहले ये पता किया जाता है कि असामी के ठिकाने कहाँ कहाँ है, उसकी दिनचर्या क्या है। दबिश के वक्त कहां मिलेगा, ताकि श्योर शॉट पकड़ की जा सके। ईडी जैसी एजेंसी ऐसी चूक कैसे कर सकती है। चूक वूक नही है। पकड़ नही, सुर्खियां चाहिए।

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