भारतीय जनता पार्टी के नवनियुक्त राष्टीय अध्यक्ष अमित शाह को चुनाव रणनीति का माहिर माना जाता है। ऐसा माना जाता है, कि 16 वीं लोकसभा के चुनाव में उनकी बनाई रणनीति के चलते ही भारतीय जनता पार्टी को उत्तर प्रदेश में इतनी बड़ी कामयाबी मिली। पार्टी व उसके सहयोगी सूबे की 80 में से 73 सीटें जीतने में सफल रहे। भाजपा का राष्ट्रीय अध्यक्ष बनने के बाद उत्तराखंड की तीन सीटों के लिए उपचुनाव हो रहे हैं। शाह के दिशा निर्देशन में इन तीन सीटों के चुनाव परिणाम उनके चुनाव कौशल को परखेंगे। हालांकि भारतीय जनता पार्टी के नज़रिए से इस उपचुनाव से कोई बडा उलटफेर राज्य की सियासत में नहीं होने वाला है लेकिन इससे आगामी कुछ महीनों में चार राज्यों हरियाणा, महाराष्ट्र, जम्मू-कश्मीर व झारखण्ड में होने वाले विधान सभा चुनावों की तस्वीर कुछ हद तक साफ हो जायेगी। क्योंकि इन राज्यों में लोकसभा चुनाव में पार्टी को जनता की ओर से अच्छा रिस्पॉन्स मिला था। इससे यह अनुमान भी लगाना आसान होगा कि मोदी लहर का जनता पर अब कितना और किस हद तक प्रभाव है।
भारतीय जनता पार्टी के अध्यक्ष अमित शाह को 16 वीं लोकसभा के चुनाव से पहले तक गुजरात राज्य के बाहर कम ही लोग जानते थे। लेकिन चुनाव से ठीक पहले उन्हें केन्द्र की राजनीति में लाकर पार्टी के थिंक टैंक ने उनको आगे की जिम्मेदारी के लिए तैयार कर लिया था। उत्तर प्रदेश में उम्मीदों से अधिक लोकसभा सीटों पर मिली कामयाबी के कारण अमित शाह के चुनावी कौशल को न केवल पार्टी के अंदर बल्कि विपक्षी दलों ने भी सराहा। इसमें मोदी लहर व कांग्रेस के प्रति लोगों के गुस्से का भी असर था। राज्यों में काबिज उन क्षेत्रीय दलों के प्रति भी जनता का असंतोष दिखा जो जनआकांक्षाओं पर खरा नहीं उतर पाये। उड़ीसा, पश्चिम बंगाल व तमिलनाडु अवश्य अपवाद हैं जहां मोदी का जादू नहीं चला।
दरअसल अमित शाह को नरेन्द्र मोदी का सबसे विश्वस्त माना जाता है। गुजरात चुनावों की कामयाबी का राज उनकी रणनीति को ही माना जाता है। गुजरात के बाहर उत्तर प्रदेश में भी इस बार उनके राजनीतिक प्रबंधन को देख लिया है। भाजपा की कमान उनके हाथों में सौपें जाने की खास वजह भी यही गिनाई जा रही है। क्षेत्रीय असंतुलन व एक ही राज्य से प्रधानमंत्री व पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष होने की बात को भी न तो पार्टी के भीतर और न ही संघ ने ज्यादा तवज्जो दी। पार्टी की कमान अब शाह के हाथों में है। उनके सामने खुद को साबित करने के लिए आगामी कुछ माह में चार राज्यों में होने वाले विधानसभा चुनाव हैं। इनमें महाराष्ट्र व हरियाणा में कांग्रेस की सरकार है। झारखण्ड में कांग्रेस के सहयोग से झारखण्ड मुक्ति मोर्चा सत्ता पर काबिज है और जम्मू-कश्मीर में नेशनल कांफ्रेस की सरकार है। केन्द्र की सत्ता संभालने के बाद भारतीय जनता पार्टी को पहला चुनाव फेस करना है। इन राज्यों के चुनाव परिणाम ही भाजपा के प्रति लोगों के आकर्षण का निर्णय करेंगे।
इन चुनावों से पहले उत्तराखण्ड राज्य की तीन विधान सभा सीटों, डोईवाला, सोमेश्वर व धारचूला के लिए 21 जुलाई को मतदान होगा। इसमें से दो सीटें डोईवाला व सोमेश्वर भाजपा विधायकों के लोकसभा सांसद चुने जाने के चलते रिक्त हुई है। जबकि धारचुला सीट कांग्रेस विधायक हरीश धामी के इस्तीफे से खाली हुई। डोईवाला सीट भाजपा पर भाजपा की प्रतिष्ठा दांव पर लगी हुई है। यहां से भारतीय जनता पार्टी ने पार्टी के राष्ट्रीय सचिव व उत्तर प्रदेश में लोकसभा चुनाव के दौरान अमित शाह के करीबी रहे त्रिवेन्द्र सिंह रावत को चुनाव मैदान में उतारा है। इस लिहाज से भाजपा व उसके राष्ट्रीय अध्यक्ष अमित शाह के लिए भी यह सीट खास हो जाती है। यह इसलिए भी है क्योंकि त्रिवेन्द्र को चुनाव लड़ाने का फैसला पार्टी हाईकमान ने ही लिया है। ऐसे में पार्टी के नवनियुक्त अध्यक्ष व चुनाव रणनीति बनाने में माहिर अमित शाह की पहली परीक्षा उत्तराखंड के उपचुनाव से होगी।
बृजेश सती/देहरादून
9412032437
Saroj joshi
July 19, 2014 at 6:31 am
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