अभिषेक श्रीवास्तव
Abhishek Srivastava : मुझे याद है कि एक गोरे-चिट्टे, सम्भ्रान्त से मृदुभाषी सज्जन थे जो आज से करीब 12 साल पहले बीएजी फिल्म्स के असाइनमेंट डेस्क पर काम करते थे। तब इसका दफ्तर मालवीय नगर में हुआ करता था और Naqvi जी उसके हेड थे। मैं तब प्रशिक्षु के बतौर असाइनमेंट पर रखा गया था। मैं तो ख़ैर 21वें दिन ही असाइनमेंट हेड इक़बाल रिज़वी से झगड़ कर निकल लिया था, लेकिन वे सम्भ्रान्त सज्जन इंडस्ट्री में बुलेट ट्रेन की तरह आगे बढ़ते गए। बाद में वे इंडिया टीवी गए, इंडिया न्यूज़ हरियाणा के हेड हुए और लाइव इंडिया हरियाणा के हेड बने।
आज पता चला कि वे अचानक हरियाणा के मुख्यमंत्री मनोहर लाल खट्टर के ”मीडिया सलाहकार” बन गए हैं। उनका नाम अमित आर्य है। जागरण की साइट पर आज इस आशय की एक ख़बर है जिसमें उन्होंने हिमाचल की छात्र राजनीति में एबीवीपी के अपने अतीत को इस फल का श्रेय दिया है और जेपी नड्डा को ससम्मान याद किया है। संयोग से आज ही हरियाणा पुलिस ने मीडिया को भर हिक पीटा है। सोच रहा हूं कि ”सिर मुंड़ाते ओले पड़ना” का उदाहरण क्या इससे बेहतर कुछ होगा?
अच्छे दिनों की ऐसी कहानियां चारों ओर बिखरी पड़ी हैं। मसलन, आज शाम एनडीटीवी इंडिया के पैनल पर जो लोग बाबा प्रकरण पर जिरह करने बैठे थे, उनमें एक के नाम के नीचे परिचय लिखा था ”धर्म गुरु”। इस शख्स का नाम है आचार्य शैलेश तिवारी, जो भारतीय जनसंचार संस्थान यानी IIMC का कुछ साल पुराना हिंदी पत्रकारिता का छात्र है। पत्रकारिता पढ़ कर पांच साल में धर्म गुरु बन जाना हमारे देश में ही संभव है। ज़ाहिर है, अच्छे दिनों का असर रवीश कुमार जैसे ठीकठाक आदमी पर भी पड़ ही जाता है, जिन्होंने प्राइम टाइम पर अपनी रनिंग कमेंट्री के दौरान आज मार खाने वाले पत्रकारों के नाम गिनवाते हुए ”एबीपी” चैनल को ‘एबीवीपी” कह डाला। बहरहाल, जितने पत्रकारों को आज मार पड़ी है, उनमें मुझे इंडिया टीवी, ज़ी न्यूज़ और इंडिया न्यूज़ का कोई व्यक्ति नहीं दिखा। किसी को पता हो तो नाम ज़रूर गिनवाएं।
Abhishek Srivastava : ‘पाखी’ पत्रिका के दफ्तर में साढ़े तीन घंटे तक चले अपने सामूहिक साक्षात्कार के दौरान कुमार विश्वास ने दिल्ली के खिड़की एक्सटेंशन और सोमनाथ भारती वाली कुख्यात घटना का जि़क्र करते हुए अफ्रीकी नागरिकों को ‘नीग्रो’ कहकर संबोधित किया। जब मैंने इस पर प्रतिवाद किया, तो उन्हें अव्वल यह बात ही समझ में नहीं आई कि आपत्ति क्यों की जा रही है। तब मैंने उन्हें एक और उदाहरण दिया कि कैसे कमरे में प्रवेश करते वक्त उन्होंने अपूर्व जोशी को ‘पंडीजी’ कह कर पुकारा था। इस पर वे कुछ बैकफुट पर तो आए, लेकिन अपने इन जातिसूचक और नस्लभेदी संबोधनों पर उन्होंने कोई खेद नहीं जताया। यह प्रकरण प्रकाशित साक्षात्कार में गायब है। ऐसे कई और सवाल हैं, प्रतिवाद हैं जिन्हें संपादित कर के हटा दिया गया। ज़ाहिर है, इतने लंबे संवाद से कुछ बातें हटनी ही थीं लेकिन कुछ ऐसी चीज़ें भी हटा दी गईं जिनसे कुमार विश्वास के एक रचनाकार, राजनेता और सार्वजनिक दायरे की शख्सियत होने के कारणों पर शक़ पैदा होता हो।
अपने देश-काल की औसत और स्वीकृत सभ्यता के पैमानों पर कोई व्यक्ति अगर खरा नहीं उतरता, तो यह बात सबको पता चलनी ही चाहिए। ऐसा इसलिए क्योंकि जो लोग लिखे में ‘पॉपुलर’ का समर्थन कुमार विश्वास की पूंछ के सहारे कर रहे हैं, उन्हें शायद समझ में आए कि दरअसल वे अंधेरे में अजगर को ही रस्सी समझ बैठे हैं। ‘पॉपुलर’ से परहेज़ क्यों हो, लेकिन कुमार विश्वास उसका पैमाना कतई नहीं हो सकते। मेरा ख़याल है कि अगर साढ़े तीन घंटे चले संवाद की रिकॉर्डिंग जस का तस सार्वजनिक की जाए, तो शायद कुछ धुंध छंटने में मदद मिले। जो प्रश्न औचक किए गए लग रहे हैं, जो बातें संदर्भहीन दिख रही हैं और कुमार को जो ”घेर कर मारने” वाला भाव संप्रेषित हो रहा है, वह सब कुछ पूरे साक्षात्कार के सामने आने के बाद परिप्रेक्ष्य में समझा जा सकेगा। उसके बाद पॉपुलर बनाम क्लासिकी पर कोई भी बहस विश्वास के समूचे व्यक्तित्व को ध्यान में रखकर और उन्हें इससे अनिवार्यत: बाहर रखकर की जा सकेगी।
युवा मीडिया विश्लेषक और सोशल एक्टिविस्ट अभिषेक श्रीवास्तव के फेसबुक वॉल से.
Comments on “पत्रकार अमित आर्य का मीडिया सलाहकार और पत्रकारिता छात्र शैलेश तिवारी का धर्मगुरु बनना….”
इंडिया न्यूज के एक पत्रकार को मैंने फटा हुआ हाथ लेकर सी सी करते देखा था। बहरहाल इस बेतुके और अजीब लेख का भाव समझ नहीं पाया? लिखने के लिए कुछ भी लिख दिया या बहुत सोच-समझकर लिखा है?
दूसरी फेसबुक पोस्ट जरूर सार्थक है। जब मैं छत्रसाल स्टेडियम में अन्ना के आंदोलन के दौरान बंद हुआ था, तब एक झुंड को ठहाके लगाते देख उश तरफ बढ़ा। देखा कि कोई शख्स अश्लील कविताएं और जुमले सुना रहा है और लौंडे हा हा हा हा हु हु कर रहे हैं। भीड़ छंटी तो मालूम हुआ कि वह शख्स तो कुमार विश्वास था।