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अमिताभ बच्चन यानि एक भयंकर अवसरवादी आदमी!

Narendra Nath : बहुत रिस्क के साथ पोस्ट कर रहा हूं। जानता हूं इस देश में बहुमत के खिलाफ लिखना-बोलना बहुत जोखिम भरा होता है। फिर भी देश के एक नायक पर तल्ख टिप्ण्णी करने का साहस उठा रहा हूं। उस मुल्क में जहां सितारों को भगवना की तरह पूजा जाता है। और हां, बतौर अभिनेता मैं भी इनका बहुत ही बड़ा प्रशंसक हूं। नाम है अमिताभ बच्चन। अमिताभ बच्चन सुपरस्टॉर हैं। लारजर दैन लाइफ जिया है सिने दुनिया में। रील दुनिया में जो किरदार निभाया वह उन्हें अपने क्षेत्र में महान बनाती है।

Narendra Nath : बहुत रिस्क के साथ पोस्ट कर रहा हूं। जानता हूं इस देश में बहुमत के खिलाफ लिखना-बोलना बहुत जोखिम भरा होता है। फिर भी देश के एक नायक पर तल्ख टिप्ण्णी करने का साहस उठा रहा हूं। उस मुल्क में जहां सितारों को भगवना की तरह पूजा जाता है। और हां, बतौर अभिनेता मैं भी इनका बहुत ही बड़ा प्रशंसक हूं। नाम है अमिताभ बच्चन। अमिताभ बच्चन सुपरस्टॉर हैं। लारजर दैन लाइफ जिया है सिने दुनिया में। रील दुनिया में जो किरदार निभाया वह उन्हें अपने क्षेत्र में महान बनाती है।

लेकिन रियल लाइफ में बतौर इंसान और सार्वजनिक जीवन में भी वह कभी नायक नहीं दिखे। छद्म, स्वार्थ और मौकामरस्त दिखे। मुझे आज तक उनकी उस सिंपैथी बटोरने वाली कहानी का मतलब नहीं समझ में आया कि शुरू में वह गुमनाम थे, किस तरह पैसे-पैसे के लिए संघर्ष करते थे। रलेवे स्टेशन पर गरीबी में खाते थे। जहां तक मेरी जानकारी है, जब वह कुछ नहीं थी तब भी देश के उस परिवार के बेटे थे जो देश के पीएम और नेहरू जैसे कद के बेहद करीबी फेमिली फ्रेंड थे। सुपरस्टार कवि के बेटे थे। अमीर परिवार था। और अमिताभ की पिता से बनती भी थी, ऐसे में घर से तनाव वाली बात भी नहीं थी।

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बाद में अमिताभ बच्चन ने जिनसे भी रिश्ते निभाए, उनसे सुख का साथी वाला रिश्ता ही निभाया। भाई अजिताभ से संबंध नहीं रखा। इंदिरा गांधी इस कदर अमिताभ को बेटे की तरह प्यार करती कि दौरा छोड़ बीमार अमिताभ को देखने आ गयी थी। राजीव गांधी ने परिवार माना। लेकिन जब गांधी परिवार के सितारे खराब हुए, अमिताभ उन्हें छोड़ चुके थे।

जिस दिन टीवी कैमरा अमिताभ के बंगले की नीलामी के लाइव की तैयारी कर रहा था और सारे दोस्त अमिताभ बच्चन को नमस्ते कर चुके थे, अमर सिंह ने चंद घंटों में न सिर्फ कर्जे से निकाला बल्कि नई जिंदगी की। लेकिन जब अमर कमजोर हुए अमिताभ उन्हें छोड़ चुके थे।

एक टीवी से जुड़े बड़े दिग्गज ने उन्हें बुरे दिन में सबसे बड़ा ब्रेक दिया लेकिन बाद में उनके साथ ही काम करने से मना कर दिया।

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अब अमिताभ बच्चन को गुजरात और नरेन्द्र मोदी में भविष्य नजर आ रहा है। लेकिन यहां भी वह इस रिश्ते को किस तरह यूज कर रहे हैं उसकी बानगी देखये। टैक्स सिस्टम के ब्रांड अंबेसेडर बनते हैं। स्वच्छ भारत अभियान के भी। वही अमिताभ बच्चन जिनका नाम पनामा पेपर में साबित हो चुका है। उनकी पूरी परिवार इस ब्लैक मनी के खेल में शामिल हैं। मामला कितना गंभीर है उसका इसी बात से अंदाजा लग सकता है कि पाकिस्तान के पीएम नवाज शरीफ का भी नाम इसमें शामिल था और उन्हें तयाग पत्र देना पड़ा।

अमिताभ बच्चन रिश्तों की कीमत समझते हैं और कीमत वसूलना भी। जब तक उन्हें कीमत मिलती रहेगी मोदी के गुडबुक बने रहेंगे। अभी अपनी इमेज बनाए रखने के लिए हर समर्थन देंगे। जब रिश्ता कीमत देना बंद कर देगा, वह नए ठिकाने की तलाश में निकल पड़ेंगे। कल जाकर अगर कहीं कोई दूसरे पावर का उदय होता है तो वे रेलवे की पटरी की तरह कब बदल उनके साथ हो जाएंगे, पता नहीं चलेगा।

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टाइम्स आफ इंडिया में कार्यरत पत्रकार नरेंद्र नाथ की एफबी वॉल से.

उपरोक्त स्टेटस पर आए ढेर सारी प्रतिक्रियाओं में से दो प्रमुख और पठनीय हैं, जो इस प्रकार हैं….

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Nikita Arora : अमिताभ से गलती हो गई, जो उन्होंने आपको अपना सलाहकार नियुक्त नहीं किया। वरना उनको दोस्ती किससे, कैसे और कब तक निभानी है, यह तो सीखने को मिल ही जाता। किसी के व्यक्तिगत जीवन पर छींटाकशी करके कुछ साबित नहीं किया जा सकता। गांधी परिवार से अमिताभ नहीं दूर हुए हैं बल्कि खुद गांधी परिवार यानी सोनिया ने उनसे किनारा कर लिया था। आज तक को दिए एक इंटरव्यू में अमिताभ ने कहा था कि गांधी परिवार के सामने वह रंक हैं और गांधी परिवार राजा। रंक को न तो यह अधिकार होता है कि वह राजा से रिश्ता रखे या तोड़े और न ही उसकी इतनी हैसियत होती है कि वह राजा को रिश्ता रखने के लिए मजबूर कर सके।

सोनिया बोफोर्स मामले में अमिताभ से नाराज हुई थीं क्योंकि अमिताभ ने खुद को बेकसूर साबित करवाने के लिए विदेश में कोर्ट का सहारा ले लिया था और सांसद पद से इस्तीफा देते हुए राजनीति छोड़ दी थी। जबकि गांधी परिवार यह चाहता था कि बोफोर्स में गांधी और बच्चन परिवार की छीछालेदार के बावजूद अमिताभ न तो अपनी बेगुनाही साबित करने के लिये कोर्ट जाएं और न ही सांसदी और राजनीति छोड़ें। अब राजनीति या सांसदी छोड़ने का फैसला करने का अधिकार तो अमिताभ को है ही…या गांधी परिवार ही तय करेगा कि उन्हें क्या करना है और क्या नहीं? और, बच्चन इसके बाद कभी राजनीति में आये भी नहीं। जया बच्चन पत्नी हैं अमिताभ की, गुलाम नहीं। यह जया की इच्छा है कि वह अपने लिए क्या करियर, कौन-सी राजनीति या किस पार्टी को चुनती हैं। इसलिए अमिताभ को लेकर ये नहीं कहा जा सकता कि अमिताभ बच्चन ने गांधी परिवार को बुरे वक्त में छोड़ दिया। बच्चन ने तो खुद को बेगुनाह साबित करने की कोशिश की, राजनीति में आकर लगे कीचड़ से आहत होकर राजनीति छोड़ने का फैसला किया…. अब उसमें गांधी परिवार नाराज होता है तो हो जाये।

बोफोर्स में नहीं बोले। चुपचाप जांच का सामना करते रहे। लोगों की गालियां झेलते रहे। क्या हुआ? अंत में हर सरकार और अदालत की जांच में बरी हो गए। इसलिए उन्हें हर आरोप में बोलने के लिए मजबूर मत करिए। जांच का सामना वह कर रहे हैं और अभी हाल ही में उन्हें बुलाकर पूछताछ भी की गई थी। मोदी सरकार पर भरोसा न हो तो अदालत का भी रास्ता खुला है। जो चाहे उनको वहां घसीट कर जांच पड़ताल करवा ले। इसमें परेशानी क्या है?

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इसी तरह, अमर सिंह का मामला ले लीजिए। अमर सिंह ने बच्चन की मदद की दोस्ती के नाते…लेकिन इस दोस्ती को राजनीति और धंधेबाजी में बदलते हुए अमर सिंह ने बच्चन से यह उम्मीद लगा ली कि बच्चन सपा में हो रही उनकी थुक्का फजीहत के बाद उनको लात मारकर निकाले जाने का बदला लें…और न जया बच्चन के साथ मिलकर अमर सिंह के साथ वैसे ही खड़े हो जाएं, जैसे कि जया प्रदा खड़ी हैं। जब बच्चन ने राजनीति छोड़ने के अपने फैसले में गांधी परिवार जैसे ताकतवर परिवार से रिश्तों की परवाह नहीं की तो फिर अमर सिंह को न जाने कहाँ से यह गुमान हो गया कि वह बच्चन की मदद करके उन्हें इस कदर अपना गुलाम बना चुके हैं कि दोस्ती की आड़ में वह अमिताभ को अपना फैसला बदलने के लिए मजबूर कर देंगे।

नरेंद्र मोदी के साथ अमिताभ अगर खड़े हैं तो बिल्कुल उसी तरह और उसी अंदाज में, जिस तरह वह कभी राजीव गांधी और अमर सिंह के साथ थे। लौटकर वापस राजनीति में न आने की अपनी अटल प्रतिज्ञा को बच्चन ने जीवन भर निभाया… अब चाहे इसे गांधी परिवार से धोखा कहें, अमर सिंह से धोखा कहिए या फिर भविष्य में मोदी जी के बुरे वक्त में भी उनके साथ मिलकर राजनीति न करने पर मोदी जी से धोखा कहिए….

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Ashwini Kumar Srivastava : फेसबुक पर एक बेहद मजेदार डिबेट चल रही है…अमिताभ बच्चन को गरियाया जा रहा है क्योंकि उन पर आरोप है कि उन्हें सदी का महानायक जिस-जिसने बनाया, उसको अमिताभ ने पलट कर कुछ नहीं दिया। इस डिबेट में अमिताभ को बनाने वालों की जो लिस्ट जारी हो रही है, उनमें गांधी परिवार, महमूद, कादर खान, अमर सिंह का नाम खूब उछाला जा रहा है। जाहिर है, अमिताभ इस वक्त भारत की ऐसी हस्ती हैं, जिसे 40 बरस से भी ऊपर समय से दुनियाभर में करोड़ों-अरबों लोगों का प्यार और सम्मान हासिल होता रहा है।

दुनियाभर में उन्हें बॉलीवुड का शहंशाह या सदी का महानायक कहकर पुकारा जाता है। अब वह यहां तक पहुंचे हैं तो किसी एक-दो का ही क्यों, उनके माता-पिता, भाई, तमाम दोस्त, नेता, व्यापारी, पत्रकार आदि के रूप में सैकड़ों-हजारों लोगों का सहयोग तो मिलता ही रहा होगा। इन सभी ने बच्चन के 40-50 साल के फिल्मी सफर में उनका सहयोग कभी न कभी तो किया ही होगा या बच्चन से खफा लोगों की बात मानकर यहां यह कह ही देते हैं कि अमिताभ ने इन सभी का इस्तेमाल कभी न कभी तो किया ही होगा। लेकिन अमिताभ को इसके लिए गरियाने वाले क्या इन चंद सवालों के जवाब भी दे पाएंगे…

जैसे कि अगर इन सभी का सहयोग लेने के बाद भी अमिताभ अगर असफल हो जाते तो क्या यही लोग अमिताभ के पीछे यूं ही भागते? या ऐसे ही अमिताभ को लेकर मीडिया में गिला शिकवा करते? क्या वे सभी अमिताभ को वैसे ही भूल नहीं जाते, जैसे वे अपने साथ फिल्मों में काम किये हुए न जाने कितने छोटे-मोटे और असफल अभिनेताओं को भूल गए थे। या फिर ये बताएंगे कि अमिताभ को अगर इन सभी ने सफल बनाया है तो ये खुद को या अपने लड़के-बच्चे, भाई-भतीजे को क्यों नहीं अमिताभ के दसवें हिस्से के बराबर सफल बना पा रहे हैं?

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जाहिर है, अमिताभ अगर आज सदी के महानायक हैं तो सिर्फ और सिर्फ इसलिए क्योंकि उनमें टैलेंट है, उनमें बद से बदतर हालात से भी जूझकर कामयाबी पाने या खुद को साबित करने का हुनर है। केबीसी ने उन्हें फ़िल्म और टीवी इंडस्ट्री में पुनर्जन्म दिया, न कि किसी अमर सिंह या किसी और लग्गू-भग्गू ने। और केबीसी से पहले भी वह जंजीर, डॉन और दीवार जैसी न जाने कितनी यादगार फिल्मों और अभिनय के जरिये फ़िल्म जगत के शहंशाह बने थे, न कि किसी गांधी परिवार या महमूद-कादर खान की बदौलत।

और, आज भी अगर अमिताभ 75 साल की उम्र में इस फ़िल्म और टीवी जगत के बेताज बादशाह हैं तो पिंक, पीकू, केबीसी, बंटी और बबली जैसी न जाने कितनी अभिनय प्रधान या मसाला फिल्मों के जरिये। इसलिये बराये मेहरबानी अमिताभ की कामयाबी से जलभुनकर या नरेंद्र मोदी के साथ खड़े हो जाने से चिढ़कर उन्हें इस कदर खारिज करने की बेवकूफी मत कीजिये। क्योंकि अमिताभ आज भी वही इंसान और अभिनेता हैं, जो जहां खड़े हो जाते हैं, लाइन वहीं से शुरू होती है…

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सत्ता के आगे लोट जाता है अमिताभ बच्चन

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4 Comments

4 Comments

  1. indu

    October 11, 2017 at 11:10 am

    Ye narendra nath apni gireban me jhak kr dekhe ki kaise nbt tk pahucha hai..bc

  2. Ritesh Pandey

    October 11, 2017 at 7:06 pm

    आपका विश्लेषण कुछ हद तक सही है क्योंकि अमिताभ एक शुद्ध व्यवसायी हैं। अभी हाल में उन्होंने कुमार विश्वास को बच्चन जी के एक कविता पाठ के लिए कॉपीराइट का लीगल नोटिस भेज दिया था। लेकिन उनके व्यक्तिगत संबंध क्यों बने और टूटे अब उसके बारे में दोनों पक्ष ज़्यादा बेहतर बता सकेंगे।

  3. sanjeev shrivastava

    October 12, 2017 at 4:37 am

    25% लीवर, 75 की उम्र और 12 घंटे काम और लोग चाहते हैं बिगबी उनकी मदद करे! यही अमिताभ बच्चन की शख्सियत की विशेष ‘शक्ति’ है कि अब उनसे भारी आकांक्षा रखी जाती है। कुछ लोग चाहते हैं अमिताभ उनके दिल की सुने क्योंकि उन्होंने कभी ‘कुली’ एक्सीडेंट के दौरान उनके लिए मंदिर, मस्जिद, गुरुद्वारे में प्रार्थना की थी। अब वो प्रार्थना लौटा दें। कुछ लोग चाहते हैं कि ‘ज़ंजीर’ और ‘शहंशाह’ का अमिताभ एक बार फिर अंधेरी रातों में सड़कों पर निकले, हर शोषण और भ्रष्टाचार को ‘इंकलाब’ के आखिरी सीन की तरह खत्म कर दे, ‘अंधा कानून’ को रोशनी दिखा दे, ‘लावारिस’ को आशियाना दे और भटके ‘शराबी’ को उसके पिता का प्यार दिलवा दे, समाज में पनपे सभी भेदभाव की ‘दीवार’ गिरा दे, हरेक के साथ हो रहे जुल्मों की ‘जंजीर’ तोड़ दे; कुछ लोग चाहते हैं अमिताभ एक बार फिर ‘त्रिशूल’ के साये में गलाकाट बिजनेस रेस और कालेधन का पर्दाफाश कर दे, तो फिर ‘मि. नटवरलाल’ बन कर दुखी, दीनों की सहायता करे और फिर ‘मुकद्दर का सिकंदर’ कहलाये, ‘मर्द’ की तरह देशवासियों को ‘देशप्रेमी’ होने का पाठ पढ़ाये और ‘जय’ बनकर दोस्ती की आन बान और शान की खातिर ‘नसीब’ से कुर्बान हो जाये। लेकिन कुछ लोग इतना भी नहीं चाहते। कुछ लोग तो यही चाहते हैं कि अमिताभ ने राजनीति के मैदान में ‘सत्याग्रह’ कर ही लिया तो हाई बीपी को मेंटेन करते हुये ‘सरकार’ वन और ‘सरकार टू’ में भी शामिल रहते। कुछ लोग तो यह भी चाहते हैं कि काश वो ‘अग्निपथ’ पर चलते हुये ऑपरेशन ‘ब्लैक’ पर ‘विजय’ पाते और फिर ‘एन्थॉनी’ की तरह अमर जाते।
    लेकिन कुछ लोग तो यह भी चाहते हैं कि वे सियासी साथियों के राजनीतिक अपराध के कीचड़ में भी उनके साथ खड़े रहते और उनके अपराध के बोझ को हल्का कर देते।
    कुछ लोग तो यह भी चाहते हैं कि इस अवस्था में वो काश! इतने सक्रिय न रहते, जितने कि उनके हमउम्र! और कुछ लोग तो यह भी चाहते हैं कि उनके हर सवाल पर वो कभी ‘नि:शब्द’ नहीं रहते तो ताकि उनकी प्रतिक्रीया से उनकी ख्याति भी ‘बेमिसाल’ हो जाती! लेकिन क्या कभी किसी ने सोचा है कि पोलियो हो या सफाई अभियान-ऐसे कार्यक्रमों से उन्होंने देश को कितनी मदद की है? बहुत से लोग यह कहते, लिखते, बोलते देखे जाते हैं कि अमिताभ को इस उम्र में ये नहीं करना चाहिये, वो नहीं करना चाहिये, केवल लोगों की मदद करनी चाहिये-लेकिन कभी क्या किसी ने सोचा है कि एक अमिताभ अगर इस उम्र में इतने सक्रिय हैं तो इससे कितने लोगों का घर चलता है? फिर भी मदद के नारे लगाये जाते हैं? अगर मदद चाहते हैं तो हमें उनके अभियान में भागीदार बनना चाहिये, उनके हौसलों को सलाम करना चाहिये- दुआ करनी चाहिये कि बिगबी यूं ही खिलखिलाते रहें, काम करते रहें, लोगों का मनोरंजन और प्रेरणावर्धन करते रहें –इसका उपादान ही तो उनकी सबसे बड़ी मदद है।
    सादर.-संजीव श्रीवास्तव

  4. madan Tiwary

    May 18, 2018 at 11:53 am

    अमिताभ के घटियापन पर मैं भी पहले लिख चुका हूं, बहुत थर्डग्रेड का व्यक्ति है वह ,परिवार,मित्र सबको थोखा दिया है है उसने, मूर्ख फैन इनकी वास्तविकता नही जानते और डेमो गॉड की तरह इन्हें पूजते है ,एक और घटिया व्यक्ति अमित खान है ,जिसके बारे में भी मैंने लिखा था । इन सबको जनता ही सबक सिखा सकती है ।

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