(आईपीएस अमिताभ ठाकुर और उनकी पत्नी नूतन ठाकुर)
: एक आईपीएस अफसर की जुबानी, रामपुर में एक नेता के दहशत, आतंक और अत्याचार की कहानी : मैं और नूतन दो दिन के लिए रामपुर गए. वजह थी यह जानकारी कि वहां करीब 80 वाल्मीकि परिवार, जो लगभग 60 वर्षों से घर बना कर रह रहे थे, को जिला प्रशासन द्वारा अचानक उजाड़े जाने की बात कही जा रही है. हम 11 अप्रैल की शाम लगभग 5 बजे रामपुर पहुंचे और 12 को लगभग 12 बजे तक वहां रहे. इस दौरान हमने मौके को भलीभांति देखा और देखते ही यह बात समझ में आ गयी कि वाल्मीकि बस्ती के लोगों की बात पूरी तरह जायज़ है. कई दशकों से ये लोग पक्के मकान बना कर रह रहे हैं, पूरे के पूरे परिवार. उनके वोटर आईडी हैं, सभी सरकारी दस्तावेज़ हैं, नगर पालिका ने मकान नंबर दिए हैं.
लेकिन अब वे बेचारे गाँधी मॉल (जी हाँ, रामपुर के मॉडर्न मॉल का नाम है गाँधी मॉल) के बगल में आ गए हैं, जैसे रेशम के परदे पर टाट की पैबंद. इस बड़े, विशाल और खूबसूरत मॉल के बगल में ये गरीब लोग और उनके साधारण मकान अच्छे नहीं लग रहे शायद. वहां के लोगों का कहना है कि रामपुर के नए नवाब साहब चाहते हैं कि वह जगह साफ़ हो और वहां की हुकूमत इस हुक्म के तामील में पूरे जी-जान से जुट गयी है. फरमान है कि रातोंरात मकान खाली हों, उन्हें गिराना है.
यह भी जाहिर सी बात है कि गाँधी जी यदि जिन्दा होते तो न तो कभी उन्होंने ऐसा किया होता और न ही किसी और को ऐसा करने की इजाजत दिया होता पर अब तो गांधीजी रहे नहीं और सारे अच्छे-बुरे काम उन्ही के नाम पर होते हैं, यह एक और सही. (यहाँ यह भी बताना मुनासिब होगा कि बातचीत में एक पत्रकार साथी ने कहा था कि रामपुर में कहावत है कि नए नवाब साहब के बाद सबसे अधिक गांधीजी अर्थात नोट की चलती है)
हमने अपनी औकात भर उन लोगों की हिम्मत बंधाई, उन्हें अपने अधिकारों के लिए लड़ने को कहा, बताया कि वे सही पर हैं, उनके वाजिब कानूनी अधिकार हैं. वे गरीब बेचारे कुछ समझे, कुछ नहीं समझे पर इतना जरुर हुआ कि जिन्हें जबरदस्ती धरने से उठा दिया गया था, वे फिर से अपने घर के सामने अपने लोकतान्त्रिक अधिकारों के लिए धरने पर बैठ गए और हमें यह बेहद अच्छा लगा. उन्होंने यह भी कहा कि वे बिना डरे अपनी पूरी लड़ाई लड़ेंगे.
यह तो हुआ एक पहलू लेकिन असल बात जो रामपुर में दिखा वह था डर. डर अर्थात खौफ, टेरर, थरथराहट, कंपकपाहट, भय और न जाने क्या-क्या. अभी तक सुनता था रामपुर में लोग नए नवाब साहब से डरते हैं, जा कर देख लिया. एक दिन पहले जिले के आला अफसर को एक राजनैतिक धरने में जमीन पर बैठे या लगभग लोटे फोटो देखा ही था, वहां जा कर देखा कि पूरा तोपखाना इलाका, जहां यह बस्ती है, पूरी तरह सीलबंद है. चारों तरफ पुलिस का भारी पहरा. यानि धरना देने वाले दस और पुलिस सैकड़ों की तादाद में. जाहिर सी बात है, ऐसी स्थितियों में धरना देना कम फौलादी ह्रदय नहीं खोजता, या फिर ऐसी मजबूरी हो कि आदमी सब भूल कर धरना देने को बाध्य हो.
इतना ही नहीं, हमारे साथ जो स्थानीय व्यक्ति लगे थे, वे पूरे समय यही बताते रहे कि उनकी मुखबिरी हो गयी है, वे दिन-दो दिन में चरस में बंद हो जायेंगे. उन्होंने बताया कि रामपुर में एक चरस वाले बाबा हैं (एक सीनियर पुलिस अफसर) जो जेब में ही चरस लिए घूमते हैं और चरस का मुक़दमा इतना तेज लगाते हैं कि पूछो मत. मैंने दो दिनों में लगातार उस सज्जन के चेहरे पर भयावह खौफ देखा.
यहाँ तक कि पत्रकार भी जितने मिले सभी एकमुश्त यही कहते मिले कि रामपुर में अघोषित कर्फ्यू सालोसाल चल रहा है. यह भी बताया कि इधर ‘गलत’ (अर्थात वाजिब) रिपोर्टिंग की, उधर चरस वाले बाबा सक्रिय हुए.
और तो और मैंने, स्वयं देखा कि मेरे पीछे भी दो ख़ुफ़िया जासूस एलआईयू से लगा दिए गए थे, मुझे यह बात तब मालूम हुई जब सीआरपीएफ गेस्ट हाउस, जहां मैं ठहरा था, में मुझे सुबह आठ बजे ही फोन आया कि एलआईयू वाले साहब मिलने आये हैं. मैंने कहा भेज दीजिये लेकिन वे साहब नहीं आये. मैंने कई बार कहा भेज दीजिये, वे नहीं आये. वे दोनों मुझे तब दिखे जब मैं कैम्पस से बाहर निकला जहां दोनों जासूस मिले. पूछने पर शरमाते हुए कहा कि आपकी निगरानी में लगे हैं.
आज रामपुर से एक पत्रकार का फोन आया. कल मेरे साथ बैठ कर फोटो खिंचवाया था. बताया कि डीएम ने सभी थानों से उनके और एक और पत्रकार साथी, जिन्होंने मेरे साथ फोटो खिंचवाने की हिम्मत की थी, के मुकदमे निकलवाने शुरू कर दिए हैं. जिससे भी मिला, सभी एक स्वर में एक ही बात कह रहे थे- यहाँ प्रशासन का मतलब है एक शख्स की हुकूमत और उनकी हुकुमउदूली का मतलब है कोई न कोई सजा. रामपुर में अपने दो दिन के प्रवास में मैंने हवाओं में जो कुछ महसूस किया उसकी तासीर यह साफ़ बयान करती है कि कुछ तो ऐसा है जो कर्फ्यू सा दिखता है और आज के दिन भी आपातकाल की याद दिला जाता है. यह कत्तई अच्छा नहीं है, न तो उस नए नवाब साहब के लिए और न ही रामपुर के लोगों के लिए, पर जो है सो है.
बस मुझपर इतनी गनीमत रही कि मैं गया, अपनी पूरी बात कही और बिना मुक़दमा लिए लौट आया क्योंकि मुझे बताया गया कि वहां नवाब साहब के एक ख़ास खबरनवीस साहब हैं, जो फेसबुक कमेन्ट तक पर छूटते ही मुक़दमा दर्ज कराते हैं, भले ऐसे मुकदमों पर बाद में सुप्रीम कोर्ट गहरी चिंता और आपत्ति दर्ज कराये. मैंने सुना है नए नवाब साहब पुराने नवाबों की तानाशाही का मुकाबला करते हुए आगे बढे, फिर ऐसा क्यों हो गया कि वे खुद धीरे-धीरे उसी ढर्रे में ढल गए…
लेखक अमिताभ ठाकुर यूपी कैडर के वरिष्ठ आईपीएस अधिकारी हैं. अपनी बेबाकबयानी और जनपक्षधरता के लिए मशहूर अमिताभ ठाकुर ने उपरोक्त टिप्पणी अपने फेसबुक वॉल पर प्रकाशित की है.
Anand Jain
April 14, 2015 at 1:33 pm
I have not seen such a bold Government officer who can speak about new king of Rampur. King is making use of police to harass persons who will speak against him. I also appreciate you for your efforts to post it in your bhadas4media.
clarke
April 14, 2015 at 1:49 pm
Mr. Amitabh, as a retired police officer I wish the country had many more couples like you to cleans the rotten system. Congrats