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अमित शाह के रोड शो में हिंसा का सच – जनसत्ता और राजस्थान पत्रिका के हवाले से

आज दिल्ली के अखबारों में आपने पढ़ा कि कोलकाता में भारतीय जनता पार्टी के अध्यक्ष अमित शाह के रोड शो के दौरान तृणमूल कार्यकर्ताओं ने हिंसा की – इस कारण रैली नहीं हो पाई। इसपर भाजपा ने पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री, पुलिस और तृणमूल कार्यकर्ताओं के खिलाफ शिकायत की है और तृणमूल पार्टी ने भाजपा के खिलाफ। कहने की जरूरत नहीं है कि यह राजनीतिक झगड़ा है और जिसे सुलझाना होगा सुलझाए या इसपर राजनीति होती रहे। मेरा मानना है कि अखबारों को निष्पक्ष रहना चाहिए और पूरी बात बतानी चाहिए। पर ज्यादातर अखबार भाजपा के पक्ष में झुके हुए नजर आ रहे हैं।

दो प्रमुख अखबारों जनसत्ता (प्रिंट एडिशन) और राजस्थान पत्रिका की खबर के कुछ तथ्य उल्लेखनीय हैं जो बताते हैं कि यह झड़प नहीं भाजपा की जबरदस्ती भी हो सकती है। यह सही भी हो कि तृणमूल कार्यकर्ताओं ने काले झंडे दिखाए और रोडशो को रोकने की कोशिश की या रोक दिया तो इसका जवाब तोड़फोड़ नहीं हो सकता और ईश्वर चंद्र विद्यासागर की मूर्ति को तोड़ना तो बिल्कुल नहीं। अगर हिंसा भाजपा ने की है तो यह अखबारों में स्पष्ट होना चाहिए ताकि हम जान-समझ सकें कि भाजपा कैसी राजनीति करती है। आखिर तोड़फोड़ करने वाले बच्चे तो हमारे-आपके बच्चे हैं चाहे वे किसी दल और किसी नेता के समर्थक हों।

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नेता का काम युवाओं को हिंसा सीखाना और हिंसा में उतारना नहीं है उनसे हिंसा करवाकर अपनी रोटी सेंकना भी नहीं है। अखबारों का काम इस तथ्य को छिपाना भी नहीं है। आप देखिए आपके अखबार ने क्या लिखा मैं बताता हूं घटना से संबंधित तथ्य जो दो अखबारों में हैं।

अमर उजाला में छपी खबर – घटना से संबंधित सूचना है कि भगवान राम और हनुमान की तरह सजे-धजे लोग भी देखे गए पर फोटो वो है जो हम आप रोज देखते हैं। राम – हनुमान तो दिखे ही नहीं।

पहले राजस्थान पत्रिका की खबर के अंश (नेट पर)
पुलिस रैली स्थल पर पहुंची और भाजपा से रैली की अनुमति वाले कागज दिखाने को कहा। पार्टी की ओर से कागज नहीं दिखाए जाने पर पुलिस ने पीएम मोदी और शाह के पोस्टर हटा दिए। भाजपा कार्यकर्ताओं ने पोस्टर हटाने का विरोध किया लेकिन पुलिस ने सभी पोस्टर और बैनर हटा दिए। (जब अनुमति नहीं थी तो रैली क्यों और अगर हुई तो खबर होगी – बिना अनुमति रैली करने की कोशिश मना करने पर विरोध बवाल आदि) पर खबर छपी है जिसके बाद बवाल शुरू हो गया है (जैसे अधिकृत और जायज हो)।

आगे की खबर है, भाजपा के वरिष्ठ नेता और पश्चिम बंगाल के प्रभारी कैलाश विजयवर्गीय ने ममता बनर्जी पर निशाना साधा है। विजयवर्गीय ने प्रशासन पर आरोप लगाया कि परिमशन मिलने के बाद भी होर्डिंग और पोस्टर हटाए गए हैं। भाजपा इसकी शिकायत चुनाव आयोग से करेगी। (अखबार ने नहीं लिखा है कि कैलाश वर्गीय जो बोल रहे हैं उसका आधार क्या है। वे सच बोल रहे हैं या झूठ। पर जब पहले लिखा है कि अनुमति का कागज नहीं दिखाया गया तो विजय वर्गीय ने जो कहा उसे साफ किया जाना चाहिए)।

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जनसत्ता (प्रिंट) की खबर
वैसे तो जनसत्ता की खबर का शीर्षक है ममता के गढ़ में शाह की हुंकार और उपशीर्षक है, मोदी-शाह के बैनर पोस्टर हटाए जाने पर भड़के भाजपाई पर आगे यह भी कहा गया है कि दरअसल शाह के रोड शो के लिए भाजपा के स्थानीय नेताओं ने सेना से अनुमति ले ली थी लेकिन पुलिस के पास नियमों के मुताबिक आवेदन नहीं किया था। इस कारण पुलिस ने आपत्ति जताई, वहां बैनर पोस्टर हटाए जिसको लेकर हंगामा शुरू हो गया।

और सुनिए रोड शो में क्या था – भाजपा अध्यक्ष के काफिले के आगे राज्य और देश के भिन्न हिस्सों की संस्कृतियों को प्रदर्शित करती झांकी चल रही थी। भाजपा के झंडे लहराते पार्टी समर्थक जय श्रीराम, नरेन्द्र मोदी जिन्दाबाद और अमितशाह जिन्दाबाद के नारे लगा रहे थे । भगवान राम और हनुमान की तरह सजे-धजे लोग भी देखे गए। … खबर आगे कहती है, रोड शो के दौरान जिस ट्रक पर शाह सवार थे उसपर डंडे फेंके गए। पुलिस ने लाठी चार्ज किया। …. कलकत्ता विश्वविद्यालय के बाहर हाथापाई शुरू हो गई। टीएमसी कार्यकर्ताओं ने गाड़ी में आग लगाई …. दमकल नहीं पहुंची … पुलिस आग बुझाने में जुटी रही आदि।

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खबर के अंत में बताया गया है कि हंगामे की शुरुआत दरअसल …. से हुई (जो राजस्थान पत्रिका में है)। इसके साथ जनसत्ता ने यह भी बताया है, कोलकाता पुलिस ने ट्वीट कर कहा कि चुनाव आयोग के निर्देश पर पोस्टर बैनर हटाए गए हैं क्योंकि आदर्श आचार संहिता का उल्लंघन हुआ है। इसके बावजूद भाजपा कार्यकर्ताओं ने ममता बनर्जी और तृणमूल पर मनमर्जी का आरोप लगाया। इसे इस तथ्य के आलोक में देखिए कि राज्य सरकार की मनमानी का आरोप उत्तर प्रदेश में अखिलेश यादव भी लगा रहे हैं। वे उत्तर प्रदेश में सरकार चलाते रहे हैं। निश्चित रूप से उनके पास कार्यकर्ता बंगाल में भाजपा के मुकाबले ज्यादा होंगे पर वे वहां सरकार की कार्रवाई से कायदे से लड़ रहे हैं या मान रहे हैं। पर भाजपा को देखिए … बंगाल में और उत्तर प्रदेश में भी।

वरिष्ठ पत्रकार और अनुवादक संजय कुमार सिंह की रिपोर्ट

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1 Comment

1 Comment

  1. Shiraj

    May 16, 2019 at 10:36 pm

    आप जैसो की वजह से ही पत्रकारिक्ता जिंदा है नही तो हक़ीक़त हकीकत में काली है

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