(मोहम्मद अनस)
Mohammad Anas : हरियाणा में दो दलित बच्चों को जिंदा जलाए जाने पर रक्षा राज्य मंत्री वीके सिंह ने कहा, ‘कोई कुत्ते को पत्थर मार दे तो सरकार ज़िम्मेदार नहीं होती।’ मंत्री जी कुत्ते के मारने पर किसी ने सरकार को ज़िम्मेदार नहीं ठहराया, हम सब तो इंसानियत की हिफाजत करने में जानबूझ कर पीछे रहने वाली सरकार से सवाल कर रहे हैं कि आखिर कब खत्म होगा हिंसा का सिलसिला। आखिर कब तक मुसलमानों और दलितों के लिए कुत्ता और कुत्ते के बच्चे का शब्द इस्तेमाल करते रहेंगे भाजपाई?
केंद्रीय राज्य मंत्री वीके सिंह प्रधानमंत्री मोदी जी के बहुत खास हैं. इन्हीं वीके सिंह ने हरियाणा के जलाकर मारे गए उपरोक्त दो दलित बच्चों को कुत्ता कहा है, जिन्हें ऊंची जाति के अपराधियों ने बंद कमरे में जला कर मार डाला था। क्या आप सभी पाठकों को ये बच्चे कुत्ते नज़र आते हैं? अगर नहीं तो हर मिलने जुलने वाले भाजपाई को यह तस्वीर दिखा कर सवाल कीजिए कि आखिर वीके सिंह ने इन बच्चों की तुलना कुत्ते से क्यों की? शर्म कीजिए मंत्री जी।
एक मंत्री जिसने भारतीय गणतंत्र को संगठित और सुदृढ़ रखने की संवैधानिक शपथ खाई थी उसने डकार ले कर कहा है, ‘कुत्ते को पत्थर मारने पर सरकार ज़िम्मेदार नहीं होती।’ अपने ही देश के नागरिकों को कुत्ता कहने वाले वीके सिंह को ज़रूर नरेंद्र मोदी से शाबाशी मिलेगी, क्योंकि कुछ दिनों पहले साहब ने भी देश की जनता को कुत्ते का बच्चा कहा था। कुत्ता कहलाए जाने की परंपरा को बनाए रखने की अगली कड़ी में हो सकता है सेक्यूलर हिंदू जिसमें अगड़ी जाति के लोग, महिलाएं और वे हिंदू आ जाएं जो भाजपा को नहीं पसंद करते। मुसलमानों और दलितों के बाद जो बचते हैं वे हिंदू ही हैं। मुझे उन बुरे दिनों की याद शिद्दत से आती है जब टू जी घोटाला करके कुछ मंत्रियों और सांसदों ने सस्ते दर पर फोन कॉल और इंटरनेट की सुविधा मुहैय्या कराई थी। घोटाले तो अब भी हो रहे हैं लेकिन उसका लाभ जनता को नहीं मिल पा रहा है। छह हजार करोड़ से ऊपर का काला धन ‘बैंक ऑफ बड़ौदा’ की एक शाखा से बाहर चला गया और मोदी जी कहते रह गए, ‘सौ दिनों में काला धन वापस न लाऊं तो फांसी पर चढ़ा देना।’
वीके सिंह जी हों या फिर नरेंद्र मोदी जी। दोनों ने सुनियोजित हिंसा में मारे गए भारतीयों की तुलना कुत्ते और कुत्ते के बच्चे जैसी उपमाओं से की है। आखिर देश यही तो चाहता था। देश को विकास से भला क्या मतलब। सोशल मीडिया पर भाजपा समर्थकों की भाषा जैसी है वैसी ही भाषा कैबिनेट मिनिस्टर्स और पीएम तक की है। मेरी बात पर यक़ीन न हो तो नरेंद्र मोदी के भाषण यू ट्यूब से उठा कर सुन लीजिए। ऐसी विषम परिस्थितियों में धैर्य बना कर रखना चाहिए, क्योंकि हम या आप अंग्रेजों के दलाल कभी रहे नहीं। जिनके कथित महापुरूषों ने अंग्रेजों से माफी मांगी, क्रांतिकारियों की मुखबिरी की वे देश में सहिष्णुता और बेहतरी कभी ला नहीं सकते। अब जो करना है हमें ही करना है। संघियों का जब तक बहिष्कार नहीं होगा तब तक ये ज़हर बोते रहेंगे।
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वो माखनलाल के वीसी बनाए ही इसलिए गए हैं ताकि नए मिथक गढ़ सकें….
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आनंद
October 22, 2015 at 3:53 am
इसी मामले पर कामरेड बादल सरोज और युवा पत्रकार भारत सिंह की टिप्पणियां यूं हैं:
Badal Saroj : अनेक बार रामायण और रामचरितमानस पढी। जैन, बौद्द रामायण सहित बाकी 16 प्रमुख रामायणों में से जितनी हिंदी अंग्रेजी में मिली पढ़ीं, किन्तु रावण ने वीके सिंह के कुत्ता टाइप के स्तर का कोई संवाद बोला हो, नजर में नहीं आया। एक को गुजरात दंगे में मरे लोग गाड़ी के नीचे आये पिल्ले नजर आते हैं और दूसरे को फरीदाबाद में मरे बच्चे कुत्ते!! हम सचमुच शर्मिन्दा हैं।
Bharat Singh : कोई पिल्ला गाड़ी के नीचे आ जाए तो भी दुख होता है- नरेंद्र मोदी
कोई कुत्ते को पत्थर मारे तो सरकार ज़िम्मेदार नहीं है- वीके सिंह
पिल्ले= कटुवे
कुत्ते= डोम
औक़ात समझ आ गई हो तो ठीक वरना २०१९ तक मार-कूट कर, जला कर, नंगा कर समझा देंगे।
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सादर