Sanjay Sinha : आजकल मैं नौकरी देने की प्रक्रिया में व्यस्त हूं। कई लोगों के इंटरव्यू रोज़ ले रहा हूं। कई दिलचस्प लोगों से मिलना हो रहा है। आज मुझे आपको एक दिलचस्प कहानी सुनानी है। लेकिन मेरे लिए ज़रूरी है कि उस कहानी से पहले अपनी ही सुनाई एक और कहानी आपको सुना दूं। पांच साल पहले इसी तरह इंटरव्यू की प्रक्रिया से गुज़रते हुए मैंने ये कहानी आपको सुनाई थी। आपको पता है कि संजय सिन्हा सिर्फ वही कहानी सुनाते हैं, जो सच्ची होती है, जिसमें कुछ सकारात्मक होता है। इन पांच सालों में मेरी कहानी बिल्कुल बदल गई है। इतनी कि उसकी कहानी सुनते हुए आपको लगेगा कि इस पर तो संजय सिन्हा पूरी फिल्म ही बना दे सकते हैं।
इंटरव्यू की दूसरी कड़ी की कहानी मैं आपको सुनाऊंगा लेकिन उससे पहले ज़रूरी है पांच साल पुराने इंटरव्यू की वो कहानी, जिसे मैं कल लिखी जाने वाली कहानी का पहला अध्याय मानता हूं।
तो पहले सुनिए वो कहानी और फिर इंतज़ार कीजिए कल की कहानी का।
कहानी शुरू होती है पांच साल पहले एक इंटरव्यू में पूछे मेरे पहले सवाल से।
“अच्छा बताइए, राज्य सभा को अपर हाउस क्यों कहते हैं?”
“नहीं पता सर।”
“संसद के कितने अंग होते हैं, ये तो पता होगा ही।”
“नहीं सर, ये भी नहीं पता।”
“ओके, संसद में शून्य काल के बारे में तो सुना ही होगा।”
एक बड़ी चुप्पी…।
“आपने तो अभी बताया था कि आपने राजनीति शास्त्र में ऑनर्स किया है।”
“हां सर। लेकिन पांच-छह साल हो गए, सब भूल गई हूं।”
“अच्छा, आपने और कौन-कौन से विषय लिए थे ग्रेजुएशन में?”
“इंगलिश, हिंदी और हिस्ट्री सब्जेक्ट भी थे साथ में।”
“लॉर्ड कर्जन का नाम सुना होगा?”
बिना किसी अपराध बोध के उन्होंने चमकते दांतों को फैला कर कहा, “सुना तो है, लेकिन अभी कुछ याद नहीं आ रहा।”
“इंग्लिश और हिंदी के बारे में कुछ पूछूं?” ये मेरा अगला सवाल था।
“सर, पूछने को तो आप कुछ भी पूछ लें। लेकिन पढ़ाई छूटे वक्त बीत गया है।”
“आपकी लिखित परीक्षा जो हमने ली है, उसमें आपने सामान्य ज्ञान के पचास फीसदी सवाल छोड़ दिए हैं। बाकी के आधे जवाब गलत हैं। अनुवाद आपने ठीक नहीं किया है। हिंदी में हिज्जे गलत हैं। इंटरव्यू में आप कुछ जवाब नहीं दे पा रहीं। क्या करूं?”
“सर, एक बार एंकर बन जाऊं फिर सब आ जाएगा। आप मेरे काम से खुश रहेंगे। आपको निराश होने का मौका नहीं दूंगी। आप जो कहेंगे करुंगी।”
“आपका अनुभव?”
“सर, चार साल से उस छोटे से चैनल में काम कर रही हूं। अब किसी बड़े चैनल में काम करना चाहती हूं।”
“आपको क्या लगता है, एक एंकर में क्या-क्या खूबी होनी चाहिए?”
“सर, मैं स्मार्ट हूं। सुंदर हूं। आत्मविश्वास से भरी हुई हूं।”
एक चुप्पी।
“मैं किसी का भी इंटरव्यू ले सकती हूं? बॉलीवुड मेरा पैशन है।”
“मान लीजिए आपको आज शाहरुख खान का इंटरव्यू लेना हो तो आप उनसे क्या सवाल पूछेंगी?”
“मैं पूछूंगी, टीवी से फिल्मों तक का आपका सफर कैसा रहा?”
“लेकिन इस सवाल को तो उनसे हजार बार पूछा जा चुका है। ये तो पच्चीस साल पुरानी बात हो चुकी है। और अगर अमिताभ बच्चन सामने आ जाएं तो?”
“ओ माई गॉड, अमिताभ बच्च्न! सर, मेरा सपना है, एक बार उनका इंटरव्यू करूं।”
“लेकिन पहला सवाल क्या होगा?”
“सर, अमिताभ बच्चन सामने होंगे? मुझे संभलने का जरा मौका दीजिए। मैं सोच कर बताती हूं।”
संजय सिन्हा बहुत बेसब्री से कुछ एंकर और कुछ डेस्क पर काम करने वालों की तलाश कर रहे हैं। पिछले कई दिनों से रोज इंटरव्यू ले रहा हूं। हमने बहुत सामान्य-सा नियम बना रखा है। जो भी आवेदन भेजता है, उसकी लिखित परीक्षा ली जाती है, फिर तीन लोग मिल कर इंटरव्यू लेते हैं। हमारी कोशिश रहती है कि जिसे हिंदी, अंग्रेजी और सामान्य ज्ञान की जानकारी हो, उसे अनुभव के आधार पर नौकरी दे दें।
कुल मिला कर पिछले तीन महीनों में मैंने कई इंटरव्यू लिए। यकीन कीजिए, शुरू-शुरू में हंसी आती थी। अब रोना आता है।
क्या सचमुच हमारी शिक्षा इतनी खराब हो गई है कि हम बीए, एमए की डिग्री उन लोगों को दे देते हैं, जिन्हें एक भी भाषा ठीक से नहीं आती। मैं अक्सर सोच में पड़ जाता हूं कि जिसने हाई स्कूल की परीक्षा भी ईमानदारी से पास की होगी, उसे एक भाषा तो ठीक से आती होगी। अगर उसने हिंदी माध्यम से पढ़ाई की है तो हिंदी पर तो नियंत्रण होगा। चलिए बहुत अच्छी अंग्रेजी न भी आए, तो कामचलाऊ अंग्रेजी तो आनी चाहिए। और अगर किसी ने इतिहास, राजनीति शास्त्र में ऑनर्स किया हो और उसे बुनियादी बातें न पता हों तो उस संस्थान पर मुकदमा ठोक देना चाहिए जहां से ऐसे बच्चे डिग्री लेकर निकलते हैं। मुझे नहीं पता शिक्षा तंत्र में ऑडिट की व्यव्स्था किस तरह होती है, लेकिन मैं पचास लोगों के बायोडेटा उन लोगों तक भिजवा सकता हूं, जिन्हें कायदे से छठी कक्षा भी नहीं पास करनी चाहिए थी।
अगर किसी शिक्षक ने किसी और योग्यता को देख कर उन लड़के और लड़कियों को पास किया है, ग्रेजुएट होने का मौका दिया है, तो वो शिक्षक अपराधी है। ऐसे शिक्षकों पर देशद्रोह का मुकदमा चलना चाहिए, क्योंकि उन्होंने देश की पूरी पीढ़ी के साथ गद्दारी की है।
जो लड़की किसी भी चैनल में मोतियों से दमकते दांतों और लहराते बालों के बूते टीवी पत्रकार बनने का दंभ भरती हैं, उन्हें कौन बताए कि जिस तरह बुरे ड्राइवर के हाथों में गाड़ी सुरक्षित नहीं होती, जिस तरह खराब पायलट के हाथों विमान सुरक्षित नहीं होता, उसी तरह अशिक्षित और अर्ध शिक्षित पत्रकारों के हाथों देश का चौथा स्तंभ सुरक्षित नहीं रहेगा। मेरे पिता मुझे सलाह दिया करते थे कि रोज रात नौ बजे टीवी पर खबरें देखा करो, सुबह ‘हिंदू, स्टेट्समैन और इंडियन एक्सप्रेस’ पढ़ा करो। इससे सामान्य ज्ञान ठीक होगा, अंग्रेजी दुरुस्त होगी।
कई साल बीत गए हैं। मैं संजय सिन्हा, मैंने अपने बेटे से नहीं कहा कि तुम सुबह उठ कर अखबार जरुर पढ़ो। मैंने ये भी नहीं कहा कि तुम टीवी पर कोई बुलेटिन देखो।
मैं नहीं जानता कि दोषी कौन है। क्या पता कुछ दोष मेरा भी हो।
लेकिन मुझे तलाश है कुछ डेस्क पर काम करने वाले पत्रकारों की। कुछ एंकर की।
कोई ऐसा नज़र आए जिसे हिंदी और अंग्रेजी आती हो। जिसका सामान्य ज्ञान ईमानदारी से रोज की खबरों लायक भी हो तो चलेगा।
जिन्हें ऐसा लगता हो कि सिर्फ स्मार्ट और सुंदर होना एंकर बनने का क्वालिफिकेशन है, उन्हें खुद पर शर्मिंदा होना चाहिए ये कहते हुए कि उनमें आत्मविश्वास है।
आत्मविश्वास उनके भीतर होता है, जिनके भीतर ज्ञान की ईमानदारी होती है। बाकी जो लोग अपने भीतर आत्मविश्वास बताते हैं, दरअसल उसे निर्लज्ज होना कहते हैं।
आजतक न्यूज चैनल को संचालित करने वाली कंपनी टीवी टुडे में कार्यरत संपादक संजय सिन्हा की फेसबुक वॉल से.
Amit kumar singh
March 3, 2020 at 8:04 pm
बहोत सार्थक पोस्ट सर।
आशीष चौकसे पत्रकार
March 3, 2020 at 11:06 pm
मैं शाहरुख़ से पूछता कि दिल्ली में दंगा हो गया। जब दंगे का माहौल बनाया जा रहा था और अब जब दंगा हो गया तो क्या वजह है जो अभी आपको इस देश में डर नहीं लग रहा?
अमिताभ बच्चन से पूछता की आप देशभक्ति की काफ़ी बातें करते हैं। देश से जुड़े मुद्दों पर भी बोलते हैं। फिर क्या वजह है कि आपके बेटे से लेकर नातिन तक विदेश में शिक्षा ले रखे हैं?
और एक सवाल संजय साहब से करता कि मीडिया में खुले विचार और खुले किरदार वाली लड़कियों की भरमार है। 90% जॉब में बने रहने या प्रमोशन पाने अपने ही सीनियर से कोई न कोई रिश्ता रखती हैं। यह बहुत कॉमन बात है। कल्पेश याह्यनिक जैसा बंदा तक औरत के लपेटे में आकर ज़िंदगी की बाज़ी हार गया। कई मीडिया मालिकों पर यौन शोषण के केस चल रहे हैं। और इन सबके पीछे बेसिक वजह यही है की टेलेंट है ही नहीं। और आपने किसी को रिजेक्ट भले कर दिया हो लेकिन जिसको टेलेंट की बजाय किसी और चीज़ से मतलब हो वो ऐसी लकड़ियों को झट से रख लेगा। भई यहाँ ख़ुद को मशहूर करने की जंग है… सोने सी ख़ासियत नहीं तो “सो कर” ही सही।
shivangi sharma
March 4, 2020 at 11:47 pm
Bilkul sahi khaaa gya hai. is article ma…. qki.. agr hum mehnat se anchor banna b chahe ro ni ban paate…. qki raaste ma reference or casting couch ki deewar aakr khadi ho jaati hai… fir majbooran kuch ladkiya ye raasta chunnti hai…. to kuch ladkiya jaanbhujhkr… wahi dekha jaaye.. to saamne se aise offers ate hai…jiske chalte hum strugglers ko lamba time lg jata hai… jisse pareshaan hokr talanted log b is field ko chod dete hai…. wase ye profession bilkul b bura nahin hai…bht acha or alag profession hai… jismein har din kuch na kuch naya seekhne ko milta hai… lekin kuch logo ki wja se …bht log galat raste pr chale jaate hai… fir media chodh dete hai.. or na jaane kya kya…