उत्तर प्रदेश में खुद को नंबर वन कहलाने और सच का आइना जैसे स्लोगन से सच्चाई का पाठ पढ़ाने वाले किसी भी बड़े अखबार ने पीलीभीत में वर्ष 2009 में लोकसभा चुनाव के दौरान भड़काऊ भाषण देने के आरोपों से घिरे भाजपा सांसद वरुण गांधी के विरुद्ध मुकदमों में अपीलीय न्यायालय के फैसले की एक लाइन नहीं छापी।
हालांकि इस फैसले को आए अब 2 सप्ताह से अधिक का समय हो गया है लेकिन उत्तर प्रदेश के किसी भी अखबार ने वरुण गांधी के पक्ष में आए अपीलीय न्यायालय के फैसले की अपने पाठकों को जानकारी देने की जहमत नहीं उठाई।
ऐसा नहीं है कि राष्ट्रीय स्तर पर सुर्खियों में रहे इतने बड़े मामले में विशेष न्यायालय के इस फैसले की अखबार के स्थानीय नुमाइंदों को खबर नहीं थी। लगभग सभी प्रमुख अखबारों में अदालतों की खबरों के लिए नुमाइंदे नियुक्त हैं। बावजूद इसके पीलीभीत के भाजपा सांसद वरुण गांधी पर चल रहे भड़काऊ भाषण के मामले में विशेष न्यायालय एमपी/एमएलए की 15 अक्टूबर को खुली अदालत में सुनाए गए फैसले की एक लाइन की खबर किसी भी अखबार में अब तक नहीं है।
भले ही विशेष न्यायालय से राज्य सरकार की अपील खारिज होने से भाजपा सांसद वरुण गांधी को बड़ी राहत मिली है लेकिन प्रमुख अखबारों के लिए क्यों नहीं यह खबर बनी, यह बड़ा सवाल है। इसकी निश्चित रूप से कोई बड़ी वजह होगी। कुछ लोगों का कहना है कि इस खबर के छपने से वरुण के खिलाफ दूसरे लोग बड़ी अदालतों में जा सकते थे। शायद इसी वजह से एक खास समय अवधि तक के लिए इस खबर को दबवा दिया गया।
वैसे, स्थानीय अखबार 5 लीटर देसी शराब व खराब तमंचे के साथ सामान्य व्यक्ति के पकड़ने व साइकिल चोरी जैसी सामान्य घटना को भी छापने से गुरेज नहीं करते हैं। हालांकि इसमें भी कोई दो राय नहीं है कि इसी साल हुए लोकसभा चुनाव के दौरान हिंदुस्तान के ब्यूरो चीफ संदीप सिंह की आनन-फानन में वरुण गांधी की शिकायत पर नौकरी जाने की घटना स्थानीय पत्रकारों के जेहन से अभी हटी नहीं है।
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