Connect with us

Hi, what are you looking for?

टीवी

अंजना ओम कश्यप के नाम एक पत्र

चंचल-

डीयर देवी जी !

हम आपका नाम नहीं जानते , असूचित मूढ़ हूँ , जगत गति से अनजान , अख़बार देखते ही आँख गड़ने लगती है , कचरे का डिब्बा गंहाता है , शहर त्यागी हूँ , आते जाते अनजाने में मिलने वाली सूचनाएँ करोना ने प्रतिबंधित कर दिया है । बोलना और दुश्वार है , जब से सरकार का ख़ौफ़िया एलान हुआ है क़ि डर कर जीने का युग शुरू हो चुका है , मुंह पर खोंथा बांधो , नाक से साँस मत लो , संभ्रांत नागरिक की तर्ज़ पर अपने तजुर्बे को दूर छोड़ आओ । तब से ही देवी जी ! हमने डरना सीख लिया है ।

Advertisement. Scroll to continue reading.

असमय बधिया किए गये शोहदे , लबे सड़क सलीका बाँट रहे हैं , खुद पर आज़माए की गारंटी देकर मूताचमन और गोबर औषधि का खुला प्रदर्शन हो रहा है । इस विवेकी समाज से भागा , भगोड़ा नागरिक हूँ , देवी जी !

कल किसी परसंतापी शुभेक्षु ने , अपने जलते दिल के अंगारे पर हमे भी घसीटने की गरज से , आपकी तस्वीर भेज दी - इसे देखो , इसे सुनो , इसे सूँघो , इसे महसूस करो , तब पता चलेगा तुम कहाँ खड़े हो ।” मुदित मन से आपको देखा । अच्छा लगा ।

Advertisement. Scroll to continue reading.

तमाम पुरुषों के बीच एक संभ्रांत महिला झक्क सफ़ेद लिबास में बेलौस खड़ी है । सफ़ेद रंग से खादी का भ्रम हुआ । आज जब हिजाब , पर्दा , घूँघट जेरे बहस है , खुला चेहरा , अच्छा लगा । लेकिन जब तस्वीर को चलाने फिराने लगा तो आपकी तस्वीर तकलीफ़ देने लगी । बुलडोज़र की लम्बी बाहों से नोचे जा रहे इंसानी घरौंदे , थके माँदे काम से लौटे मज़दूरों के बिखेरे जा रहे घोंसले , और आपकी आवाज़ । उफ़्फ़ ! लगा सीमा पर फ़तह हो रही है , बढ़ो , फाटक टूटा , ये दीवार गिरी , क्या आवाज़ थी मुह से फ़ेच्कुर आ रहा था , आप हाँफ रही थी , लेकिन उत्साह की कमी नहीं थी । बीच बीच में आप चुभांकर चुभांकर बोल रही थीं। मन टूट गया । ग़ुस्सा आया अपने दोस्त पर जिसने यह क्लिपिंग भेजी थी / कोई गुनगुना रहा था –

सो रहा था चैन से , ओढ़े कफ़न मज़ार में फिर आ गये सताने , किसने पता बता दिया ।

Advertisement. Scroll to continue reading.

देवी जी ! आप जिस चैनल से हैं , प्रकारांतर से कभी हमारा भी सम्बंध उससे रहा है । Sp, कमर वहीद नकवी , राम कृपाल हम सब एक ही हुज़रे के बासिंदे हैं देवी जी ! सरकार क्रूर होती है , उसका हल , फल सब उसे पता रहता है लेकिन आप क्या कर रही हैं ? एक शब्द है “ एथिक “ । आपके दफ़्तर में कलेंडर नही है क्या ? देवी जी ! यह इस्लाम का पाक महीना है ।सालों साल से एनक्रोचमेंट खड़ा है , कुछ दिन सब्र कर लेते । रमज़ान तो बीत जाने देते ।यही ईसा मसीह के क्रूस पर लटकाए जाने का महीना है । हम आपको यह नहीं कह रहे की आप तोड़ रहीं थी या तुड़वा रहीं थी ! यह ख़त तो हमने आपकी ज़ुबान , हाव – भाव और हाँफने पर लिखा है । एक बार अपनी क्लिपिंग फिर देख लें ।

शुक्रिया

Advertisement. Scroll to continue reading.
2 Comments

2 Comments

  1. Subodh Ranawat

    April 23, 2022 at 8:47 am

    अंजना ओम कश्यप,को भाजपा की तरफ से मोटी राशि पैमेंट होता है इसी के लिए।अंजना ओम कश्यप एक रीढ़ विहीन पत्रकार है जिस का ईमान धर्म पैसा है।जब किसी का ईमान धर्म पैसा होता है तो वह क्यो हो जाता है या जाती है???

  2. RAKESH

    April 23, 2022 at 11:30 am

    चंचल जी , उस इलाके के लोगों से पूछा आपने कि रमज़ान के पाक महीने में हनुमान भक्तों पर पत्थर क्यों बरसा रहे थे। ये भी पूछ लेते कि इस्लाम में किसी गैर की ज़मीन पर कब्ज़ा जमाने की इजाज़त न होते हुए भी उन्होंने कितने रमज़ान बिता डाले।

Leave a Reply

Cancel reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Advertisement

भड़ास को मेल करें : [email protected]

भड़ास के वाट्सअप ग्रुप से जुड़ें- Bhadasi_Group

Advertisement

Latest 100 भड़ास

व्हाट्सअप पर भड़ास चैनल से जुड़ें : Bhadas_Channel

वाट्सअप के भड़ासी ग्रुप के सदस्य बनें- Bhadasi_Group

भड़ास की ताकत बनें, ऐसे करें भला- Donate

Advertisement