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आवाजाही

अजीत अंजुम ने न्यूज24 के साथियों को भेजी आखिरी लंबी-चौड़ी चिट्ठी (पढ़ें इनटरनल अलविदा मेल)

दोस्तों, आज मैं आखिरी बार आपके न्यूज रुम में आया. अब तक मैं यहां से जाने वाले साथियों को आप सबकी मौजूदगी में विदा करता रहा हूं, आज मेरी बारी थी. मुझसे किसी ने कहा कि अपने अनुभव शेयर कीजिए लेकिन मुझसे कहा और रहा नहीं गया यार. मेरे जैसा बक-बक करने वाला बातूनी आज आप सबके सामने दो शब्द भी नहीं बोल पाया. मैं अपनी भावुकता को छिपाकर आपके बीच कुछ देर रह पाता, ये भी मेरे लिए मुमकिन नहीं लगा. तो अब जा रहा हूं. आज सोचकर तो आया था कि आप लोगों से कुछ बातें करके जाऊंगा लेकिन आज जुबान से ज्यादा मेरी आंखें बोल रही थी. सो मैं बिना कुछ कहे अपनी भावनाएं लिखकर जा रहा हूं.

<p><img class=" size-full wp-image-15185" src="http://www.bhadas4media.com/wp-content/uploads/2014/07/images_kushal_ajitanjum.jpg" alt="" width="829" height="482" /></p> <p>दोस्तों, आज मैं आखिरी बार आपके न्यूज रुम में आया. अब तक मैं यहां से जाने वाले साथियों को आप सबकी मौजूदगी में विदा करता रहा हूं, आज मेरी बारी थी. मुझसे किसी ने कहा कि अपने अनुभव शेयर कीजिए लेकिन मुझसे कहा और रहा नहीं गया यार. मेरे जैसा बक-बक करने वाला बातूनी आज आप सबके सामने दो शब्द भी नहीं बोल पाया. मैं अपनी भावुकता को छिपाकर आपके बीच कुछ देर रह पाता, ये भी मेरे लिए मुमकिन नहीं लगा. तो अब जा रहा हूं. आज सोचकर तो आया था कि आप लोगों से कुछ बातें करके जाऊंगा लेकिन आज जुबान से ज्यादा मेरी आंखें बोल रही थी. सो मैं बिना कुछ कहे अपनी भावनाएं लिखकर जा रहा हूं.</p>

दोस्तों, आज मैं आखिरी बार आपके न्यूज रुम में आया. अब तक मैं यहां से जाने वाले साथियों को आप सबकी मौजूदगी में विदा करता रहा हूं, आज मेरी बारी थी. मुझसे किसी ने कहा कि अपने अनुभव शेयर कीजिए लेकिन मुझसे कहा और रहा नहीं गया यार. मेरे जैसा बक-बक करने वाला बातूनी आज आप सबके सामने दो शब्द भी नहीं बोल पाया. मैं अपनी भावुकता को छिपाकर आपके बीच कुछ देर रह पाता, ये भी मेरे लिए मुमकिन नहीं लगा. तो अब जा रहा हूं. आज सोचकर तो आया था कि आप लोगों से कुछ बातें करके जाऊंगा लेकिन आज जुबान से ज्यादा मेरी आंखें बोल रही थी. सो मैं बिना कुछ कहे अपनी भावनाएं लिखकर जा रहा हूं.

कल से मैं यहाँ नहीं आऊँगा. कल से न्यूज 24 नहीं आऊँगा. कल से बीएजी नहीं आऊँगा. कल से मैं इस कैंपस का हिस्सा नहीं रहूँगा. हाँ, आप मेरे दिल में रहेंगे और अगर मैंने एक दोस्त, एक सहयोगी, एक गार्जियन, एक संपादक , एक सीनियर या फिर किसी भी भूमिका में अगर आपके भीतर जगह बनाई होगी तो आप भी मुझे अपने से दूर नहीं जाने देंगे. इन रिश्तों को भौगोलिक या दफ्तरीय सीमाएँ नहीं बाँध पाएँगी . बीते कुछ सप्ताह में जिस ढंग से तमाम साथियों ने आकर मुझसे बात की, अपनी भावनाओं का इज़हार किया, कुछ भावुक हुए , कुछ औपचारिक हुए , कुछ ने  अपने आँसुओं से मुझे बार – तबार भिंगोया, हमने एक दूसरे से अपनी आँखों के गीलेपन को छुपाने की नाकाम कोशिशें की , ये दिन न आता तो शायद इस आत्मीयता का अहसास हमें नहीं होता . मैं तो समझता था कि मैं बहुत सख़्त बॉस हूँ, लेकिन आपके इस स्नेह, प्यार और अपनापन ने मुझे अपने खास होने का अहसास कराया . मेरी तल्ख़ी , मेरी सख़्ती , मेरी डाँट -फटकार और कई बार मेरी बदतमीज़ियों और बदज़ुबानियों ने आप में से बहुतों का दिल न जाने कितनी बार दुखाया होगा. फिर भी जाते-जाते आपने जिस स्नेह से मुझे सराबोर किया है , उसे ज़िंदगी भर नहीं भूल पाऊँगा. आप सबसे मैं अपनी उन तमाम ग़लतियों, तल्ख़ियों और काम के दबाव में की गई बदज़ुबानियों के लिए दिल से माफी माँगता हूँ . टीवी बहुत दबाव का माध्यम है .ये दबाव कई बार बदरंग शक्ल ले लेता है . बदरंग छवियाँ बना देता है लेकिन जाते जाते ये अहसास भी आपने ही कराया कि मेरा यहाँ होना आपमें से बहुतों के  लिए मायने रखता था . यक़ीन मानिए आप सबों से , इस बिल्डिंग से , इस चैनल से , इस कैंपस से , इस FC 23 से , इस फ़्लोर से , इस स्टूडियो से , इस लाइब्रेरी से, इस पीसीआर से, इस ISOMES से , इन दरो दीवारों से ..खुद  को अलग कर पाना कितना बड़ा फैसला है , ये मेरा दिल जानता है . यहाँ के ज़र्रे-ज़र्रे में मैंने खुद को महसूस किया है . मैं बहुत खुशकिस्मत हूँ कि मुझे इतने लोगों का प्यार मिला. पेंट्री, हाउसकीपिंग, गार्ड और ड्राइवर का काम करने वाले कई सहयोगी भी मुझे आँसुओं से भिंगो गए . मैं उनके आँसू पोंछ रहा था और खुद के आँसू छिपा रहा था . इतना प्यार , इतना स्नेह ….जाते जाते मुझे लगा कि मेरी ज़िंदगी के ख़जाने में आप सबने अपने प्यार का इतना बैलेंस  जमा कर दिया है कि रिश्तों के मामले में ख़ुद को बहुत अमीर समझने लगा हूँ . बहुत आसान नहीं होता है , ऐसी जगह से जाना , लेकिन ज़िंदगी में कभी कुछ कड़े  फ़ैसले लेने पड़ते हैं . ख़ुद को भी कड़वी दवा देनी पड़ती है . कहते हैं न कि परिवर्तन प्रकृति का नियम है तो मेरे हिस्से का परिवर्तन अभी ही सही. हमारे आपके बीच के दफ्तरीय रिश्तों की डोर भले ही टूट रही है लेकिन भावनात्मक रिश्तों की डोर तो और मज़बूत हो गई है न .

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हो सकता है आपमें कुछ लोगों को मैं काम के उतने मौक़े न दे पाया , जितना आप डिजर्व करते हों, हो सकता है आपमें से बहुतों को कई बार ख़ामख़ा मुझे झेलना पड़ा हो , हो सकता है काम के दबाव में आपमें से कोई मेरी तल्खी का शिकार हुआ हो …. तो आप सब से माफ़ी माँगता हूँ . असाइनमेंट, रनडाउन, पीसीआर, एमसीआर के साथियों को अब टॉकबैक पर मेरी तल्ख़  आवाज़ परेशान नहीं करेगी. नाइट शिफ़्ट वाले साथी किसी ग़लती पर सुबह-सुबह मेरे फोन की आहट से अब परेशान नहीं होंगे .

आपमें से कुछ लोग खुश भी होंगे कि चलो अच्छा हुआ कि एक खड़ूस और कड़क बॉस चला गया . आप खुश होंगे कि ग़लतियों पर ग़ुस्सा करने वाला अजीत अंजुम चला गया , आपका खुश होना लाज़मी है , मुझे अफ़सोस रहेगा कि मैं  आपकी नज़रों में ख़ुद को अच्छा साबित नहीं कर पाया. अपनी ग़लतियों से लोग सीखते हैं , मैंने भी बहुत कुछ सीखा है ,आगे भी सीखूँगा .

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ज़िंदगी के सबसे ख़ूबसूरत और ऊर्जावान बीस साल मैंने इस कंपनी में काम किया है. जिस बिल्डिंग में हम – आप बैठे हैं , इसके भूमि पूजन में भी मैं था और इस न्यूज़ रूम की डिज़ाइनिंग का सूत्रधार भी . कारपेट से लेकर टाइल्स तक और वॉल कलर से लेकर कुर्सियां तक पसंद करने में मेरी अहम भूमिका रही है . एक-एक दिन इस न्यूज़ रूम को बनते देखा है. इस कंपनी में रूपए भले ही मेरे न लगे हों लेकिन मेरी और मेरे जैसे और तमाम लोगों की निष्ठा तो लगी है. ज़ाहिर है इस कंपनी को छोड़ना मेरे लिए दुखी करने वाला फैसला है . लोगों को Home Sickness होता है लेकिन मुझे तो company Sickness है , जो जाते -जाते मुझे परेशान कर रहा है . शुरूआती पंद्रह साल में तो मैंने न घर देखा , न परिवार देखा . न दुनिया देखी . मैं बीएजी के लिए बना हूँ , यही दुनिया ने माना, समझा और यही मैंने भी माना. मैं शुक्रगुज़ार हूँ अनुराधा जी और राजीव जी का , जिन्होंने कई मौक़ों पर मुझपर अगाध भरोसा किया , अक्सर परिवार के सदस्य की तरह माना . पर्सनल टच का अहसास कराने में अनुराधा जी का जवाब नहीं . ऐसा पर्सनल टच न होता तो मैं यहां अब तक टिका न होता . सुख -दुख के हर मौके पर अनुराधा जी और राजीव जी का स्नेह मिला . उनके भरोसे ने मुझे ऊर्जावान बनाया . भरोसे के उतार – चढ़ाव का भी दौर हमने देखा . लेकिन इन बीस सालों में ज़्यादातर वक्त ऐसे बीते कि मुझे लगा ही नहीं कि मैं नौकरी कर रहा हूं . अपनी कंपनी भी होती तो भी शायद इससे ज़्यादा निष्ठा और मेहनत से काम नहीं कर पाता . यही मेरी ताक़त भी थी और यही मेरी कमज़ोरी भी . ज़्यादातर साल ऐसे रहे जब मैं इस संस्थान में पीर ,बाबर्ची , भिश्ती और खर सब कुछ रहा . हाँ, बाद के सालों में पीर बदलने लगे तो मेरी भूमिका कभी भिश्ती की रही , कभी बाबर्ची की , तो कभी खर की लेकिन आप सबके सहयोग और भरोसे की बुनियाद पर मैं अपना काम करता रहा .  कंपनी ने मुझ पर जब जब भरोसा किया और जो भी ज़िम्मेदारी दी , मैंने आप सबकी ताकत और मेहनत के बूते उसे निभाने की कोशिश की . बहुत बार कमियाँ  रही होंगी , बहुत बार अपेक्षित नतीजे नहीं मिले होंगे तो उसकी ज़िम्मेदारी भी मैं लेता हूं . मुझमें बहुत ख़ामियाँ हैं , मैं जानता हूँ . उन ख़ामियों के शिकार आप में से कई साथी कई बार हुए होंगे , ये भी जानता हूँ . अब जाते जाते यही कहूंगा कि मुझसे जुड़ी उन तमाम बुरी यादों को अपने ज़ेहन  से खुरच दीजिए . कोशिश  करूँगा कि मैं अपनी कमियों को ठीक करूँ . मैंने अपनी तमाम ख़ामियाँ के बावजूद ये कोशिश की कि सबसे संवाद क़ायम रखूँ . एक इंटर्न से भी कुछ सीखता -समझता और समझाता रहूँ . तभी तो अब तक के मेरे डिबेट शो -सबसे बड़ा सवाल के लिए रिसर्च करने वाले दोनों इंटर्न लड़के प्रकाश और मधुर कब मेरे इतने क़रीब आ गए , पता ही नहीं चला. प्रफुल्ल, सोनम , मोहित , सुनील , चंदन, अवधेश , रवि , राहुल , शशि भूषण, इशिता , निवेदिता , विनीत , अनुपमा , जहीन ,  नेहा पिलखवाल , आनंद,सावन , मोहित , मोहित ओम  , भवदीप समेत दर्जनों ऐसे बच्चे हैं , जिन्होंने इंटर्नशिप या बिल्कुल फ्रेशर से ही शुरूआत की और आज यहाँ की ताक़त हैं . अनूप , धर्मेन्द्र ,विवेक गुप्ता,  देवेश, मनीष , अखिलेश आनंद , अमिताभ भारती , रितेश श्रीवास्तव , अनुराग ,अमित , पंकज , रवि  जैसे कई प्रोड्यूसर ,रिपोर्टर ,एंकर भी तो ऐसे ही आए थे( जल्दी में लिख रहा हूँ इसलिए कुछ के नाम छूट रहे हैं तो बुरा मत मानना) . असाइनमेंट पर विष्णु शर्मा ़ शैलेष निगम से लेकर अंकित , हेमंत , प्रवीण प्रभात,  तक . इन सबसे मेरी पहली मुलाक़ात आज भी याद है मुझे . कारवाँ बढ़ता गया , साथी -सहयोगी जुड़ते गए . चैनल लाँच के वक़्त सुप्रिय प्रसाद आए थे और आजतक से मनीष कुमार , शादाब, विकास मिश्रा , आरसी, मुकुल मिश्रा , नवीन , श्वेता सिंह , पशुपति शर्मा , अखलाक समेत कई साथी आए थे . अरूण पांडेय , राहुल महाजन , विभाकर , अंजना कश्यप , सईद अंसारी , मनीष कपूर भी दूसरे चैनलों से आए थे . टेक्नीकल और दूसरे डिपार्टमेंट के तमाम नए -पुराने चेहरों ने मिलकर चैनल का नामकरण किया और इसे खड़ा किया .आज अरुण जी को छोड़ इनमें से कोई यहाँ नहीं है लेकिन जो जहाँ है , शानदार काम कर रहा है . सुप्रिय प्रसाद आजतक के सफल संपादक हैं . ऐसी न जाने कितनी यादें -क़िस्से -कहानियाँ हैं , जिसका पात्र -कुपात्र मैं रहा हूँ .

एक बात का सुकून है कि हम सबने अपनी – अपनी क्षमताओं के मुताबिक़ अच्छा काम किया . जुलाई 2011 के बाद कई महीनों तक न्यूज 24 न सिर्फ 9 -10 फीसदी चैनल शेयर के साथ नंबर चार पर रहा बल्कि इसका चैनल शेयर 11 .7 फ़ीसदी तक गया , वो भी तब जब सुप्रिय समेत ज़्यादातर सीनियर साथी चैनल छोड़ गए थे . कम रिसोर्सेज़ और छोटी टीम में इससे ज़्यादा रेटिंग कभी किसी चैनल को नहीं मिली .  कहां नामचीन चेहरों वाले और ब्रांडिंग वाले चैनल और कहां सबसे कम लोग, सबसे कम रिसोर्स और सबसे कम खर्चे वाला ये चैनल . ये सब आपकी मेहनत की बदौलत हुआ . हर डिपार्टमेंट के साथियों को इसका श्रेय जाता है .  अब तो टीम बड़ी हो गई है . कई सीनियर साथी आ चुके हैं और आ रहे हैं तो उम्मीद है कि ये चैनल नई ऊँचाइयों को छुएगा .

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हम सबने मिलकर न्यूज 24 में कई अच्छे काम किए. शानदार प्रोग्राम्स बनाए . तारीफें भी बटोरी . आलोचनाएं भी झेली . टीआरपी का ज़बरदस्त दबाव भी झेला . तमाम उतार चढ़ाव के बाद भी आप सबने बहुत अच्छा काम किया . इस सफ़र के बहुत से साथी अब दूसरे चैनलों में हैं . उन सबका योगदान न्यूज़ 24 में तो रहा ही , मेरे निजी विकास में भी रहा. न्यूज़ 24 मेरे लिए सिर्फ एक चैनल नहीं रहा , मेरी जान यहाँ बसती है .इस बात का अहसास साढ़े सात साल की मेरी बेटी जिया को भी है . आप यक़ीन करें या न करें जब उसे घर में हमारी बातें सुनकर अंदाज़ा हुआ कि मैं न्यूज़ 24 छोड़ सकता हूँ तो उसने रोनी सूरत बनाकर बार – बार कहा कि आप न्यूज़ 24 मत छोड़ो पापा.  अपने बालमन की समझ के मुताबिक उसने वजह भी बताई कि क्यों मैं न्यूज़ 24 न छोड़ूं. कई दिनों तक स्कूल जाते समय बस स्टॉप पर पूछती रही कि आप सच में छोड़ रहे हो ? क्यों छोड़ रहे हो ? कई दिन लगे उसे समझाने में , अब वो कुछ नहीं पूछती और कार्टून देखते वक़्त उसे हमेशा की तरह रिमोट छिनने का डर नहीं होता  . तो आप समझ सकते हैं कि मेरे लिए ये फैसला कितना मुश्किल फैसला है . मैं इस संस्थान से इस्तीफ़ा देकर जा तो रहा हूँ लेकिन इतनी आसानी से यहाँ की यादों से आगे निकल नहीं पाऊँगा . हाँ, कोशिश ज़रूर करूँगा.

वो दौर भी हमने देखे , जब चार कमरे का दफ़्तर था और किराए की एडिट मशीन पर चौबीसों घंटे बिना सोए हम चैनलों के लिए प्रोग्राम बनाया करते थे . ओढ़ना – बिछौना हमारा छोटा सा दफ़्तर हुआ करता था . काम में इतना रमे रहते थे कि घर आने का मन ही नहीं होता था . वो दौर भी था जब हम 2004 के चुनाव में  स्टार न्यूज़ पर पोल खोल जैसा कार्यक्रम बना रहे थे और मैं दो महीने तक पूरे चुनाव के दौरान अपने दफ़्तर से घर ( जो 25 किलो मीटर था ) नहीं आया था . पता नहीं कहां से इतनी ऊर्जा आ जाती थी उन दिनों . उस दौर के कई साथी आज भी यहाँ हैं . आदर्श , शशि, जितेन्द्र अवस्थी ,जयवीर,  चौहान समेत कई साथी . अलग अलग डिपार्टमेंट में भी तमाम लोग हैं जिनसे दस से बीस सालों का हमारा साथ है . पोल खोल 2004 के लोकसभा चुनाव का इतना सुपरहिट कार्यक्रम था कि हर सप्ताह चैनलों के TOP -5 शो में पाँचों एपिसोड पोलखोल के हुआ करते थे . जिस सप्ताह  आजतक को कोई शो टाप फ़ाइव में से एक दिन भी हमें रिप्लेस कर देता था तो नींद उड़ जाती थी .

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हमें याद है कि कैसे दर्जन भर नए नवेले युवाओं की हमने टीम बनाई थी , जिसमें रमन कुमार , अमित कुमार , अमिताभ भारती , रुपेश गुप्ता,  नरेश बिसेन , मुकेश सेंगर , गिरीश समेत कई लड़के थे. कोई लॉगिंग करता था , कोई बाइट लाता था . कोई विजुअल निकालता था . मैं दिन रात सारे टेप प्रिव्यू करता था . डेस्क पर हमारे साथ रवीन्द्र त्रिपाठी, इक़बाल रिज़वी , अपूर्व श्रीवास्तव , जैसे लोग थे . हम सब लोग दिन रात शेखर सुमन के लिए लिखते थे . टीवी में पहली बार हमने अलग ढंग से प्रयोग किया था . पोल खोल की सारी स्क्रिप्ट आज भी कहीं रखी होगी . बाद में बजरंग झा ने भी रवीन्द्र जी और विनय पाठक के साथ मिलकर लंबे समय तक संभाला . ऐसे ही नए लोगों के साथ हमने कई शोज़ लाँच किए , पोल खोल के पहले भी और पोल खोल के बाद भी . मैं कहूँ या न कहूँ लेकिन ये सच है कि बीएजी फ़िल्मस ने एक प्रोडक्शन हाउस के तौर पर जितने भी कार्यक्रम प्रोडयूस किए , सभी ने कंपनी को एक पहचान दी . इसका श्रेय उन तमाम वीडियो एडिटर्स और कैमरामैन को भी जाता है , जिनमें से आज भी कई मौजूद हैं. विवेक तिवारी, शिवा , गुडपाल सिंह रावत, अनिल यादव , पुर्णेंन्दु प्रीतम , प्रेमलता, सैंडी …ये सब ऐसे एडिटर्स हैं , जो मन लगाकर अगर कोई प्रोग्राम एडिट कर दें तो वाह वाह ही निकलता है .  2002 में एक दौर ऐसा भी आया था , जब मैं बीएजी छोड़कर आजतक चला गया था लेकिन एक साल बाद फिर लौटा तो अब 11साल बाद विदा ले रहा हूँ . दोनों पारियों को मिला दें तो मैं क़रीब 19 साल इस कंपनी का हिस्सा रहा .

अच्छा लगा कि  आज यहाँ सुकेश रंजन इनपुट एडिटर बनकर आया है , 1999 में सुकेश रंजन , मनीष कुमार ( आउटपुट हेड, आजतक) , समरेन्द्र सिंह समेत कई लड़के पहली नौकरी करने आए थे. मुझे आज भी इन सबसे पहली मुलाक़ात और इन सबकी शुरूआत याद है. सुशील बहुगुणा ( एनडीटीवी ) , अरुण नौटियाल ( एबीपी न्यूज ) , राजकुमार पांडे ( सहारा) , आशुतोष अग्निहोत्री ( आजतक) , सुशील सिंह ( सहारा ) , प्रशांत टंडन , अनवर जमाल अशरफ़ ( जर्मन रेडियो ) , अभिषेक शर्मा ( एनडीटीवी मुंबई ब्यूरो )  , प्रणय यादव ( इंडिया टीवी )  , शांता सिंह , रश्मि शर्मा ( एबीपी ) , धीरेन्द्र पुंडीर ( न्यूज नेशन, सलीम सैफी , सौमित सिंह समेत कई साथी अलग अलग समय पर उस टीम का हिस्सा रहे , जिसने उस ज़माने में डीडी पर रोज़ाना के नाम से डेली बुलेटिन प्रोडयूस किया . मुझे याद है कि अनवर उन दिनों पीटीआई भाषा के चंडीगढ़ ब्यूरो की नौकरी छोड़कर  हमारे यहाँ आया था . अभिषेक शर्मा दैनिक भास्कर से आया . प्रणय यादव नवज्योति अखबार में तेज तर्रार  रिपोर्टर था ,जिसे नवज्योति के ही ब्यूरो चीफ़ अजय सेतिया ने हमारे पास भेजा था . ये सब लोग आज अच्छे मुक़ाम पर हैं और अपनी पहचान बना चुके हैं . वक़्त बीतता गया , बीएजी फ़िल्मस कामयाब प्रोडक्शन हाउस से चैनल बन गया , हम जैसे कई लोग तमाम उतार चढ़ाव का दौर देखते हुए , इस कंपनी के कल -पुर्ज़े बने रहे. अब जाते समय यहाँ से जुड़ी यादें ज़ेहन में ताज़ा हो रही है.

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यहां आज भी कई सहयोगी ऐसे हैं , जो जब यहाँ आए थे तो ख़ाली स्लेट की तरह थे. कोई इंटर्नशिप के लिए आया था , तो कोई कुछ करने की चाह लिए . उन सबने अपनी मेहनत से जगह बनाई और उनकी मेहनत का फल मुझे भी मिला और न्यूज़ 24 को भी मिला .इस मामले में जयवीर का कोई मुक़ाबला कर सकता है तो वो मैं ही हूँ शायद और शशि. करीब 13 -14 साल तक सैकडों घंटे के फ़ुटेज तो मैंने देखकर , छाँटकर खुद ट्रांसफ़र भी कराए हैं और लागिंग भी . तो मैं तो इस लाइब्रेरी के टेपों में भी हूँ . कहाँ -कहाँ से खुद को निकालूँ . लेकिन निकालना तो पड़ेगा न ?

ISOMES के सभी नए -पुराने साथी विवेक , दीप्ति , आलोका, ज्योति , अशरफ़ , सुंदर , अरिंदम और अमिय ने इस संस्थान के लिए तो काम किया ही है , मैंने इन्हें जो भी टास्क दिया , इन्होंने पूरा किया. इन्हें भी अब मेरे आने की आहट पाकर अजीत सर आ गए , अजीत सर आ गए कहते हुए अलर्ट मोड पर नहीं आना पड़ेगा . इनमें से शायद किसी को इस बात की ख़ुशी भी हो कि चलो मुक्ति मिली लेकिन मुझे आप सब याद आएँगे , शिकायत आपको मुझसे कोई हो सकती है , मुझे नहीं . ISOMES के बच्चों को मैंने पढ़ाया भी , डाँटा भी और पुचकारा भी , ये सभी बच्चे अपने करियर बनाने में कामयाब हों , मैं यही दुआ करता हूँ.

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आईटी के हरीश और विजेन्द्र से हमारा दस साल पुराना रिश्ता रहा है. दोनों नए नए यहाँ आए थे , आज इस चैनल के trouble shooter हैं .किस किस के नाम गिनाऊं .

मैं जब आपसे विदा ले रहा हूँ तो वो तमाम चेहरे याद आ रहे हैं जो बीस सालों के इस सफ़र में कभी साथ चले , कभी दूर हुए लेकिन उन सबका योगदान मेरी निजी सफलता ( अगर है ) और कंपनी की कामयाबी में भी है.

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मुझे आज भी याद है अक्तूबर 1994 को मैं फ़ोन पर वक़्त लेकर अनुराधा जी से काम के सिलसिले में मिलने आया था , तब गेट पर बतौर गार्ड तैनात सीताराम जी ने मुझसे रजिस्टर में एंट्री करवाई थी , आज भी सीताराम यहाँ मौजूद हैं और हर रोज़ मेरे कमरे में रखी भगवान की तस्वीरों पर फूल चढ़ाने आते हैं . उनकी गीली आँखों से भी मेरा सामना हुआ . अब ये आँखें मुझे परेशान करने लगी हैं . यहाँ आज भी आदर्श रस्तोगी जैसा एडिटर काम कर रहा है , जिसके साथ मैंने 1995 में प्रोग्राम्स एडिट करवाए थे . शशि शेखर मिश्रा  भी हैं , जिनके साथ हमने सैकडों रातें एडिट मशीनों के सानिध्य में गुज़ारी हैं .  सत्येन्द्र चौहान , जितेन्द्र अवस्थी और पीएस भंडारी जैसे कैमरामैन भी, जो पुरानी तकनीक वाले कैमरों पर हाथ साफ़ करते हुए मेरे साथ शूट पर जाया करते थे . आज ये सभी अपनी – अपनी विधा में बेजोड़ हैं. इस संस्थान की बुनियाद और ताक़त हैं. लाइब्रेरी में जयवीर हैं , जिनके दिमाग़ की मेमोरी चिप में हज़ारों घंटे के फ़ुटेज का डाटा दर्ज है. यहाँ कई साइलेंट वर्कर हैं , जो सिर्फ काम करते हैं ,शिकायत नहीं . अनुराग श्रीवात्सव उनमें से एक है . स्मृति है , जो आस्ट्रोलाजी का प्रोग्राम बनाती है , इसलिए मैं उसे देवी माँ बुलाता हूँ .

ट्रांसपोर्ट में पशुपति , सपोर्ट में उदय , राइडर राजेन्द्र पाल , संजय पोद्दार, सुभाष , ड्राइवर रामू यादव, प्रदीप कुमार , राजू , कमल किशोर , पेंट्री में श्रीनिवास जी से लेकर इलेक्ट्रिशियन असगर अली तक… ये वो लोग हैं , जो 10-12 या 18 सालों से यहाँ काम कर रहे हैं , इन सबका जितना प्यार मुझे मिला , उतना खुशकिस्मत लोगों को ही मिलता है . डिस्ट्रीव्यूशन देख रहे विनय श्रीवास्तव से लेकर अकाउंट हेड अजय जैन और मनीष शर्मा से भी हमारा 12 से 19 सालों का रिश्ता रहा है . तमाम नए लोग भी जुड़ते गए और संस्थान आगे बढ़ता गया . बाद में मानक गुप्ता , प्रीति सिंह , प्रत्यूष , विद्या नाथ झा , वंदना झा , जूही सक्सेना  समेत संत प्रसाद राय , राजीव रंजन , प्रियदर्शन जैसे बेहतरीन काम करने वाले लोग इस टीम का हिस्सा बने . कम दिनों की सोहबत में भी ये लोग न सिर्फ मेरे अंतरंग बने , बल्कि चैनल का अहम हिस्सा भी . एडिटोरियल में भी बजरंग झा से लेकर नीतू सिंह , कुमार चिंतन ,जयंत अवस्थी  , विवेक सिन्हा जैसे कई अच्छे प्रोड्यूसर हैं , जिनके साथ लंबा साथ रहा . प्रोमो में वन आर्मी की तरह साजिद ने बेहतरीन काम किया है .

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रिपोर्टिंग टीम के ज़्यादातर साथी कई सालों से यहाँ हैं . रमन कुमार अमित कुमार  , प्रशांत गुप्ता , मनीष कुमार , कुमार कुंदन ,प्रभाकर , जितेन्द्र शर्मा , कुंदन सिंह , दिव्या , पल्लवी से लेकर ब्यूरो के प्रवीण मिश्रा , आसिफ़ , धीरज भटनागर , प्रवीण दुबे ,अमिताभ ओझा, सौरभ , मानस , विनोद जगदाले, श्रीवत्सन से लेकर तमाम रिपोर्टर्स और कैमरामैन तक . इनमें में ज़्यादातर से हमारा लंबा एसोसिएशन है , इसलिए दिल का रिश्ता भी है . आप में से बहुतों को कभी मेरी डाँट -फटकार या सख़्ती से चोट पहुँची हो तो माफी चाहूँगा .

पूरे न्यूज़रूम में सबसे अलग अरुण पांडेय हैं . उन जैसे लगनशील , ऊर्जावान और काम के प्रति निष्ठावान लोग कम होते हैं . मैं तो उनके सामने फ़ेल हूँ . इतनी सकारात्मक ऊर्जा और 365  दिन उसी ऊर्जा को क़ायम रखना कम से कम मेरे बूते की तो बात नहीं . आधी रात को भी अगर कोई है , जो बिना झुँझलाहट के किसी की मुश्किल को आसान बनाने में जुट सकता है तो अरुण जी हैं. मैं कई बार उनसे पूछता था कि तमाम विपरीत हालातों में भी आप इतने उत्साह और ऊर्जा से लबरेज़ कैसे रहते हैं ? मैं चाहकर भी ये उनसे नहीं सीख पाया .

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कनवर्जेंस टीम के हेड आलोक शर्मा और उनके तमाम साथियों का शुक्रिया, जिन्होंने हमारे साथ एक टीम की तरह काम किया.  इंटरटेनमेंट की पूरी टीम से मेरा निजी  संवाद कम रहा लेकिन प्रियंका से लेकर साजिद तक के काम से मैं उन्हें जानता – मानता रहा हूं . और भी तमाम लोग हैं , जिनके बारे में बहुत कुछ लिखना चाहता हूँ लेकिन वक़्त कम है और ये पत्र मुझे जल्दी ख़त्म करना है , लेकिन लिखूँगा कभी ज़रूर .

प्रोफ़ेशनल लोग कहते हैं कि नौकरी को नौकरी की तरह करो , उससे दिल न लगाओ , मैंने तो दिल लगा लिया यार. तो उसकी सज़ा तो मिलेगी न. होली, दिवाली , दशहरा को दफ़्तर आना , रविवार को घर पर होते हुए भी दफ़्तर आने के लिए कुलबुलाना, फोन पर लगातार दफ़्तर के साथियों से बात करते देख गीता का खीझकर कहना कि घर में भी जब टीवी और फोन से ही चिपके हो तो जाओ ऑफिस और फिर गाड़ी उठाकर आफिस चले जाना,  मेरे आने की आहट से बहुतों का अलर्ट हो जाना, मेरी गाड़ी कैंपस में न देखकर कुछ साथियों का सुकून में आना , आप लोगों के साथ गप्पें करना, आप लोगों की सुनना -सुनाना .सुबह सुबह आउटपुट के लैंडलाइन पर मेरे फ़ोन की घंटी बजना और वहाँ बैठे प्रोड्यूसर का फ़ोन उठाने से बचने की कोशिश करना ….तुम उठाओ तो तुम उठाओ कहते हुए सामने चल रहे टीवी स्क्रीन पर नज़र गड़ाना कि कहीं किसी ग़लती के लिए तो फोन नहीं आ रहा है . ये सारी चीज़ें आसानी से भूली जा सकती हैं क्या ?

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एडिटिंग, पीसीआर, ग्राफ़िक्स , कैमरा , ट्रांसपोर्ट, अकाउंट , एचआर , एडमिन के तमाम साथियों का शुक्रिया . एडिंटिंग के बहुत से साथी न्यूज़ 24 के पहले से इस संस्थान से जुड़े हैं . आईटी के हरीश नेगी , विजेन्द्र के भी दस साल से ज्यादा हो गए यहां काम करते हुए . इन सबों के साथ एडिट मशीन पर मैंने सैकडों घंटे गुज़ारे हैं . मैंने टीवी में जो कुछ सीखा यहीं सीखा. आप सबों के साथ रहकर ही सीखा . आज जहाँ भी हूँ , इस कंपनी की वजह से ही हूँ . जो भी ज़िंदगी में हासिल किया, यहीं रहकर किया .’ सबसे बड़ा सवाल ‘ जैसे कार्यक्रम की वजह से एक अलग पहचान भी बनी . लोग मुझे सिर्फ एक प्रोड्यूसर या न्यूज रूम मैनेजर समझते थे लेकिन इस डिबेट शो से शायद मेरी छवि भी थोड़ी बदली होगी , ये मैं मानकर चलता हूँ . इस डिबेट की रेटिंग भी इस बात का सबूत है कि इसे काफी देखा गया . मैंने इसकी एंकरिंग को एक चैलेंज की तरह लिया और लगातार बेहतर करने की कोशिश करता रहा .

चलिए , अब विदा लेने का वक़्त है . मैं जानता हूँ आपमें से कई लोग मुझे कई तरह से याद करेंग . प्रियदर्शन याद करेगा कि अब कम से कम गुटका छोड़ने के लिए कोई दबाव नहीं बनाएगा . विवेक तिवारी बार -बार सिगरेट पीने नीचे जाएगा तो बेफ़िक्र रहेगा कि अजीत सर अब नहीं टोकेंगे कि दिन भर में कितना सिगरेट पीते हो. कुर्सी पर बैठने की जगह पसरकर लेटने वाले को अब मैं कहने नहीं आऊँगा कि कुर्सी टूट जाएगी , कुर्सी को आराम कुर्सी क्यों बना रहे हो….

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अब मेरा नया सफ़र शुरू होगा , नए लोग मिलेंगे , नए साथी होंगे , नई चुनौतियाँ होंगी . मुझे भी ख़ुद को नए सिरे से साबित करना होगा , लेकिन ये सब आपकी शुभकामनाओं और शुभेच्छाओं के बिना नहीं हो पाएगा .

(बहुत से लोगों का नाम छूट गया है , लेकिन मेरी भावनाओं को समझते हुए माफ़ करेंगे )

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आपका साथी , दोस्त , बड़ा भाई , संपादक…जो भी आप मानें

अजीत अंजुम

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0 Comments

  1. kunvar sameer shahi

    August 5, 2014 at 2:45 pm

    bahut marmik chitran vigat 20 varsho ka bahut kuch sikhne ko mila ajeet sir se hum logo ke pas aap jaise agraj yshwant bhai jaIse bade bhai hai yahi hamari thathi hai..parnam sir janha bhi rhe isi trh se dhamk patrkarita ki chamak kyam rakhe yhi prarthna hai ishwar se..sadar parnam..

  2. arvind singh

    August 12, 2014 at 5:37 pm

    apke ahsas ko jis tarah se apne likha hai dil ko chhu jayega hame apse kam karne ka mouka nahin mila lekin upar wale se jarur duwa karenge ki apke jaise soch wale log hame bhi mile
    From _>jharkhand khunti

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