दिल्ली दंगे की खबरों में आपने आईबी अफसर अंकित शर्मा की हत्या की खबर जरूर सुनी होगी। आपने यह भी सुना होगा कि उनकी हत्या बहुत ही निर्मम या क्रूर तरीके से की गई थी। अगर बात इतनी ही होती तो मैं यह पोस्ट नहीं लिखता। किसी की हत्या की खबर का पोस्टमार्टम करना ठीक नहीं है। मेरा मकसद सिर्फ रिपोर्टिंग की लापरवाही या शैतानी को हाईलाइट करना है।
मेरी पूरी सहानुभूति अंकित शर्मा के साथ है और 400 चाकू नहीं 12 ही चाकू लगे थे – यह कहने और साबित करने का मेरा मकसद सिर्फ अखबारों की खबरों को झूठ साबित करना है। मैं जितना दुखी मौत से हूं उतना ही इस तरह की रिपोर्टिंग से। मेरा मानना है कि खबर के लिहाज से यह पर्याप्त था कि अंकित शर्मा की हत्या हो गई। या चाकू मारकर की गई। हत्या बर्बर और क्रूर ही होती है। प्यार से हत्या हो ही नहीं सकती और अगर कोई संरक्षित, सुरक्षित, प्रेरित अनुभवी या पोषित दंगाई सफलतापूर्वक ऐसा कर भी दे तो मरने वाले या उसके परिवार को क्या फर्क पड़ना?
फर्क तो पाठक को भी नहीं पड़ना लेकिन हां, दंगे के माहौल में फर्क जरूर पड़ेगा। हिन्दू-मुस्लिम दंगे में अंकित शर्मा नामक ‘भारतीय’ की हत्या बर्बरतापूर्वक की गई तो आप दंगाई भारतीयों के बारे में एक राय बनाएंगे। और आपको लगेगा कि दंगाई हिन्दू हो ही नहीं सकते। आपको यह नहीं बताया जाएगा कि दंगे में मरने वाले मुसलमान ज्यादा हैं तो आपको यकीन कैसे होगा कि हिन्दुओं ने भी मुसलमानों को मारा होगा या मुसलमान भी मुसलमान को मारते हैं या दंगाइयों का धर्म नहीं होता है।
दंगे के समय ऐसी खबरों का मकसद होता है। कोई पत्रकार ऐसा जान बूझकर करे या मूर्खता में – प्रभाव एक ही होगा। वह दो तरह का नहीं हो सकता है। इस आशय की खबर 28 फरवरी को छप गई। खूब चर्चित रही। आज द प्रिंट ने खबर दी है कि अंकित शर्मा को 400 बार नहीं, अनगिनत बार नहीं, सिर्फ12 बार चाकू मारा गया था। शीर्षक देखिए उसमें साफ बताया गया है और गिना जा सका है कि 33 चोट और थीं। कुल 51 जख्म थे। ये किसी भी हिसाब से कम नहीं हैं पर 400 से बहुत कम हैं। यह खबर पोस्टमॉर्टम रिपोर्ट पर आधारित है और पहले की खबरें भी!
भक्तों की पत्रकारिता या पत्रकारों से उनकी उम्मीद अलग है, एक भक्त और वरिष्ठ पत्रकार मित्र ने कहा है कि 12 बार कम है? मैं जानना चाहता हूं कि 12 ज्यादा है तो 400 बताने की क्या जरूरत थी? और ज्यादा ही बताना था तो 4000 क्यों नहीं? इसीलिए ना कि समझ में आ जाता कि झूठ है। तो यह सोची समझी झूठी रिपोर्टिंग किसके लिए, किस लिए? आज मैंने गूगल सर्च किया – जितनी खबरें मिलीं तकरीबन सबमें 400 बार चाकू मारने की बात है। एक दो ही अनगिनत या कम हैं। ऐसी खबर देने वालों के भरोसे आप दंगे के बारे में राय बनाएं या सरकार के बारे में या राजनीति के बारे में वह सत्य, तथ्य और यथार्थ से कितनी दूर है जान लें। जय श्री राम।
यह सब लिखना-बताना इसलिए जरूरी है कि आगे ऐसी मौतें न हों। कम हों। दंगा करवाकर वोट बटोरने की राजनीति को सब समझ सकें। कई अखबारों में, कई चैनलों पर और सबसे ज्यादा सोशल मीडिया में कहा गया था कि अंकित शर्मा को 400 बार चाकू मारा गया था।
आप यह भी कह सकते हैं कि इतने अखबारों में छपा 400 सही है या अकेले द प्रिंट की खबर। पर द प्रिंट की खबर गलत होगी तो ये अखबार चुप रहेंगे?
वरिष्ठ पत्रकार और अनुवादक संजय कुमार सिंह के एफबी वॉल से.
Mrityunjay Tripathi
March 14, 2020 at 3:12 am
उन्होंने लिखा और आपने वेबसाइट पर डाल दिया? भाई साहब, जो हत्यारोपी पकड़ा गया है, उसने कहा है कि उसने 14 बार चाकू मारे। ये नहीं कहा कि 14 ही चाकू मारे गए। उसने सिर्फ अपनी गिनती बताई है। अन्य चाकूबाजों की गिरफ्तारी अभी नहीं हुई है।
बाकी यह जो नए चाकूबाज आए हैं, तमाम खबरों और पोस्टमार्टम रिपोर्ट को भी गलत साबित करने, उन्हें भी सलाह है कि इस तरह चाकू न भांजे। तथ्यों की जांच में थोड़ा समय दें।
ठाकुर
March 14, 2020 at 5:21 pm
देश के ज्यादातर मीडिया हाउस सत्ता के चम्मच हैं. ये केवल दंगे भड़काने का काम करते हैं सत्ता के इशारे पर. डूब मरना चाहिए बिना जांच पड़ताल किए फर्जी खबर छापने वालों को.