Connect with us

Hi, what are you looking for?

प्रिंट

मां की महायात्रा पर पत्रकार विजय मनोहर तिवारी ने आठ पेज का अखबार छाप कर दी अनोखी विदाई

विजय मनोहर तिवारी ने अपनी मां श्रीमती सावित्री तिवारी को अलग तरीके से विदाई दी। उन्होंने अपनी मां की स्मृति में 8 पेज का वर्ल्ड क्लास का अखबार छापा है, जो केवल परिजनों के लिए है। इस अखबार में श्रीमती सावित्री तिवारी के जीवन से जुड़ी लगभग सभी बातों को पिरोने की कोशिश की गई है। विजय जी का कहना है कि जमींदार और राजे-महाराजे छत्रियां बनवाते थे, लेखक लोग किताब लिखते है, मूर्तिकार मूर्तियां बनाते है तो मैंने सोचा कि मैं अपनी मां के लिए अखबार निकाल दूं। इस अखबार में उनकी मां का लिखा हुआ दुनिया का सबसे संक्षिप्त सम्पादकीय भी है- ‘‘काए खों लिख रए हो? कौन पढ़ेगो? पप्पू तुम फालतू में दिमाग-पच्ची कर रए।’’

विजय मनोहर तिवारी ने अपनी मां श्रीमती सावित्री तिवारी को अलग तरीके से विदाई दी। उन्होंने अपनी मां की स्मृति में 8 पेज का वर्ल्ड क्लास का अखबार छापा है, जो केवल परिजनों के लिए है। इस अखबार में श्रीमती सावित्री तिवारी के जीवन से जुड़ी लगभग सभी बातों को पिरोने की कोशिश की गई है। विजय जी का कहना है कि जमींदार और राजे-महाराजे छत्रियां बनवाते थे, लेखक लोग किताब लिखते है, मूर्तिकार मूर्तियां बनाते है तो मैंने सोचा कि मैं अपनी मां के लिए अखबार निकाल दूं। इस अखबार में उनकी मां का लिखा हुआ दुनिया का सबसे संक्षिप्त सम्पादकीय भी है- ‘‘काए खों लिख रए हो? कौन पढ़ेगो? पप्पू तुम फालतू में दिमाग-पच्ची कर रए।’’

Advertisement. Scroll to continue reading.

जीवन यात्रा के 63 वर्ष पूरे करके श्रीमती सावित्री तिवारी 16 दिसंबर 2015 को महायात्रा पर रवाना हो गई। 63 साल के भरपूर जीवन में कोई भी व्यक्ति दुनिया को जिस तरह से देखता है वह उसे एक नई दिव्यता प्रदान करता है। अखबार के पहले पन्ने पर पत्रकार विजय मनोहर तिवारी ने लिखा कि मां कहती थीं- ‘लिख-लिखकर पढ़ो, पढ़-पढ़कर लखो तो लिखना-पढ़ना सिख जाओगे’। यह एक ऐसा फॉर्मूला है, जो अक्सर गांवों में मांएं अपनाती रही है। मांएं घर का काम संभालती रहती थीं और बच्चे बोल-बोलकर लिखते-पढ़ते थे, इस तरह घर के काम के अलावा बच्चों की निगरानी भी हो जाती थी।

श्रीमती सावित्री तिवारी ने 63 साल की जीवन यात्रा में भरपूर संघर्ष किए। पल-प्रतिपल अपने परिवार से जुड़ी रही। 15 साल की उम्र में जब उनकी शादी हुई, तब उनके पति साधारण कर्मचारी थे, लेकिन शादी के बाद 39 साल में उनकी मेहनत, लगन और सहयोग के कारण परिवार खूब फला-पुâला। परिवार के पास आज 100 एकड़ जमीन है। यह सब ऐसे ही नहीं हुआ। इसके पीछे श्रीमती तिवारी की मेहनत, भगवान पर अटूट विश्वास और हर सफलता या विफलता के लिए प्रभु को श्रेय देने के कारण हुआ।

Advertisement. Scroll to continue reading.

जिस तरह किसी भी मां के लिए अपने बच्चे जान से प्यारे होते हैं, वैसे ही बच्चों को भी अपनी मां प्यारी होती हैं। मांएं अपने बच्चों को और बच्चे अपनी मां को हमेशा सुधारने में लगे रहते हैं। श्रीमती सावित्री तिवारी ने आजीविन पूरी भक्तिभाव से प्रभु की सेवा की और उसी भक्तिभाव से जर्दा भी खाया। बिमारी के बावजूद जर्दा नहीं छूटा। डॉक्टर और परिवार के लोग समझा-समझाकर थक गए। डायबिटीज और किडनी तथा पेâफड़ों की बीमारी के कारण आंखों की रोशनी खतरे में पड़ गई थी, लेकिन कभी भी उन्होंने जर्दे से तौबा नहीं की। चाय-कचोरी भी चलती रही। यहां तक कि डायलिसिस के दौरान भी उनका नाता चाय-कचोरी से बना रहा।

गंभीर बीमारी का पता चलने के बाद पूरा तिवारी परिवार सावित्री जी के सेवा में लगा रहा। पत्रकार विजय मनोहर तिवारी ने 3 साल में उनके दर्जनों इंटरव्यू रिकार्ड किए। फिर बाद में उन इंटरव्यू के 25 हजार शब्दों में से चुनकर कुछ लेख और टिप्पणियां तैयार की। उनके जीवन से जुड़े तमाम चित्रों को इकट्ठा किया। इंटरव्यू के दौरान उन्होंने अपनी मां से ऐसे-ऐसे सवाल किए, जो शायद ही कोई बच्चा अपनी मां से कर पाए, लेकिन मां तो मां निकली, उन्होंने इस सवाल का जवाब अंतिम घड़ी तक नहीं दिया कि वे अपने पति सरजू प्रसाद तिवारी को 10 में से कितने नंबर देती है। अपनी बहन को उन्होंने 10 में से 10 नंबर दिए और अपने बेटे को पुत्र के रूप में शून्य बट्टा सन्नाटा दिया। अपनी बहू तृप्ति को भी उन्होंने 10 नंबर दिए।

Advertisement. Scroll to continue reading.

ईश्वर में अटूट आस्था रखने वाली सावित्री जी जीवन के सभी सुखों और दुखों को प्रभु का प्रसाद मानती रहीं। अपनी सुख-सुविधाओं के बारे में उन्होंने कहा कि ये सब झूठी माया है। पुत्र जनो तो नब के चलियो। गहनो पहनो तो ढक के चलियो। मतलब किसी को बेटा हो तो घमंड नहीं करना चाहिए और सोना मिले, तब भी विनम्र बने रहना चाहिए। जिसे हम अपना समझते है हमारा कुछ भी नहीं है। न जमीन जायदाद अपनी है, न सोना अपना है। यहां तक कि बेटा-बहू सबकुछ प्रभु की माया है। हमने जीवन में कुछ भी नहीं किया।

आठ पेज के इस अखबार में कहीं भी श्रद्धांजलि, स्वर्गवास, देहावसान जैसे शब्दों का इस्तेमाल नहीं किया गया है। भाषा और विचारों की पवित्रता बनाए रखते हुए यह अखबार पहले ही तैयार किया जा चुका था। महायात्रा के पहले ही श्रीमती सावित्री तिवारी ने सम्पादकीय भी लिख दिया था। महायात्रा की आहट को महसूस करते हुए मां-बेटे में मजाक भी चलता था कि यह अखबार कब छपेगा, इसका निर्धारण सावित्री जी ही करेंगी। अपनी अंतिम इच्छा के रूप में उन्होंने कहा था- ‘‘देह मुक्त होने पर अगर ईश्वर से भेंट हुई, तो कहूंगी- अगला जन्म हो तो उच्च कुल में देना, जहां शिक्षा-दीक्षा का श्रेष्ठ और उत्तम वातावरण हो। या पत्थर बनाकर किसी तीर्थ में रख देना। वहीं पड़ी रहूंगी…’’।

Advertisement. Scroll to continue reading.

लेखक प्रकाश हिंदुस्तानी इंदौर के वरिष्ठ प्रिंट व टीवी पत्रकार हैं. उनका यह लिखा उनके ब्लाग से साभार लिया गया है.

Advertisement. Scroll to continue reading.
Click to comment

0 Comments

  1. Santosh Kumar pandey

    January 13, 2016 at 8:43 am

    यदि मनोहर जी ने अपनी माँ के यादगार वृतान्त को समाज क़े समुख् रखा तो क्या गुनाह किया ।
    अरे पीत पत्रकारिता करने वालो
    सूवरो कम से कम पत्रकारो को तो अपनी नैतिकता से काम करने दो ।
    यदी इस बयान पर किसी को आपत्ती हो तो फ़ोन करे
    09839938810

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Advertisement

भड़ास को मेल करें : [email protected]

भड़ास के वाट्सअप ग्रुप से जुड़ें- Bhadasi_Group

Advertisement

Latest 100 भड़ास

व्हाट्सअप पर भड़ास चैनल से जुड़ें : Bhadas_Channel

वाट्सअप के भड़ासी ग्रुप के सदस्य बनें- Bhadasi_Group

भड़ास की ताकत बनें, ऐसे करें भला- Donate

Advertisement