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सुख-दुख

रवीश कुमार के नाम एक युवा पत्रकार का पत्र

सर नमस्कार

मैं दिल्ली पत्रकार बनाने नहीं आया था। मैं भोजपुरी के एक इटरंटेनमेंट चैनल में एक स्क्रिप्ट राईटर की नौकरी करता था। आप को सुनाने के बाद मैंने पत्रकारिता के मुख्य धारा में आने का फैसला लिया। लेकिन मुझे बहुत दुख है कि कुछ बेहूदा किस्म के लोगों के चलते आप को सोशल मीडिया से दूर होना पड़ा है। मेरे जैसे लाखों युवा पत्रकारों के दिल में धड़कने वाले व्यक्तित्व का नाम रविश कुमार है।

सर नमस्कार

मैं दिल्ली पत्रकार बनाने नहीं आया था। मैं भोजपुरी के एक इटरंटेनमेंट चैनल में एक स्क्रिप्ट राईटर की नौकरी करता था। आप को सुनाने के बाद मैंने पत्रकारिता के मुख्य धारा में आने का फैसला लिया। लेकिन मुझे बहुत दुख है कि कुछ बेहूदा किस्म के लोगों के चलते आप को सोशल मीडिया से दूर होना पड़ा है। मेरे जैसे लाखों युवा पत्रकारों के दिल में धड़कने वाले व्यक्तित्व का नाम रविश कुमार है।

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मैं ऐसे 200 सौ ऐसे लड़कों को व्यक्तिगत तौर पर जनता हूँ जिन्होंने आप को देख और सुन कर पत्रकारिता में आने का फैसला लिया है। आप के ग्लैमर को देख कर नहीं आप के सहज और सरल व्यकित्व को देख कर। मेरी मां बिलकुल पढ़ी लिखी नहीं हैं। उसके बाद भी जब प्राइम टाइम आप का कार्यक्रम आता है तब किचेन से आकर टीवी के पास बैठ जाती  है। यह इस बात का परिचायक है कि हर आप आदमी यह सोचता है कि कोई तो टेलीविजन पत्रकारिता के चमकती हुई बदरंग दुनिया में जो हमारी भाषा में हमारा प्रतिनिधित्व करता है और हमारे मन के सवालों को हुक्मरनों के गलों पर चाटे के रूप में जड़ देता है।

मुझे नहीं लगता कुछ देशभक्त गुंडे टाइप लोग आप को बादाम कर सकते हैं। हाँ मैं समझ सकता हूँ थोडा मन व्यथित जरूर होता है। लेकिन फिर भी आप से हाथ जोड़ कर आग्रह है कि आप इन चंद गुंडों की वजह से आप सोशल मीडिया की सक्रियता को मत छोड़िये। आप के निष्क्रिय होने से एक ऐसी लगता है कि हमारी जुबान किसी ने छिन ली है। मुझे वासिम बरेलवी का एक शेर याद आता हैं..

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हदशों के जद में हैं तो क्या मुस्कुराना छोड़ दें
ज़लज़लों के खौफ से क्या घर बनाना छोड़ दें।
बारिशें दीवारें धो देने की आदि हैं तो क्या
बारिशों के डर से क्या तेरा चेहरा बनाना छोड़ दें।

आपका

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अनूप पाण्डेय
Anup Pandey
[email protected]

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0 Comments

  1. jaatak

    September 20, 2015 at 9:18 am

    लोग आप को बादाम कर सकते हैं….. 😆 😆 😆 😀

    भड़ास की एडिटिंग टीम क्या घास चरने गई है… 😆 अरे बादाम नहीं बदनाम…बदनाम….और हादशों नहीं हादसों …..

    अपनी कॉपी ठीक करो फिर दूसरों की डेस्क की ग़लतियां गिनाया करो….

  2. mamta yadav

    September 20, 2015 at 2:30 pm

    हदशों तो कोई शब्द नहीं होता। भड़ासी टीम अभी से नहीं लंबे समय से एक से बढ़कर एक गलतियां की जा रही हैं। भड़ास का कंटेंट भी इधर—उधर ज्यादा जाने लगा है। एक नहीं ऐसे कई मैटर हैं। कुछ दिन पहले एक खबर की हैडिंग में प्रधानमंत्री श्री मोदी लिखा हुआ था।

  3. sanjeev Singh thakur

    September 20, 2015 at 4:11 pm

    agar content sahi h to grammer ki thodi bahut galtiyan chal sakti gain. Lekinn haan puri bhasha sahi ho to zyada accha lagta h.

  4. abhimanyu

    September 26, 2015 at 6:53 pm

    50 गलतिया हैं वर्तनी की…घास चरने गया क्या कॉपी एडिटर

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