संजय कुमार, वरिष्ठ पत्रकार
अर्नब गोस्वामी। बेचारे की जमानत अर्जी बॉम्बे हाई कोर्ट ने आज फिर ठुकरा दी। निर्दयता से कह दिया, देश भले ही तुम्हारे साथ हो हम तुम्हारे अपराधों के साथ नहीं हैं। निष्ठुर की तरह साफ बोल दिया कि बेल चाहिए तो सेशंस कोर्ट जाओ। संतोष की बात इतनी सी रही कि साथ में सेशंस कोर्ट को 4 दिनों के अंदर जमानत अर्जी पर फैसला सुनाने का निर्देश दे दिया। यहां गौर करने की बात ये है कि सेशंस कोर्ट भी चाहे तो 4 दिन बाद एक बार फिर से अर्नब गोस्वामी की जमानत अर्जी खारिज कर सकता है। हां, वो चाहे तो बेल भी दे सकता है। कोर्ट की मर्जी है या ये कह लीजिए, मेरी मर्जी!
अब पूछता है भारत, तो गला फाड़-फाड़कर पूछता रहे। अपने चारण-भाट रिपोर्टरों और संघियों की टोली जमा कर मजमाफरोशी करता रहे। आरएसएस के मुखपत्र ‘पांचजन्य’ और ‘ऑर्गेनाइजर’ में अपने समर्थन में लेख और संपादकीय छपवाता रहे। लेकिन देश की अदालतें तो कानून के मुताबिक ही चलेंगी ना। और किसी ऐरे-गैरे नत्थू खैरे के लिए नियम कानून में ढिलाई थोड़े ही दे देगी। कानून अपना काम तो कानूनी तरीके से ही करेगा ना। नहीं तो कल कोई भी मुंह उठाए कोर्ट चला आएगा और कहेगा जज साहब हमें भी जमानत दो। जैसे कि खुदकुशी के लिए उकसाने वाली गंभीर धाराओं के बावजूद अर्नब गोस्वामी को दिया था। तो भाई बात बस इतनी सी है। लिहाजा बेचारे अर्नब को आज भी जमानत नहीं मिली।
अर्नब को मुंबई में उसके घर से 4 नवंबर की सुबह गिरफ्तार किया गया। तब उसने क्या चिल्ल-पौं मचाई। चुपचाप पुलिस थाने जाने की जगह अपनी गिरफ्तारी और नालायकियत का लाइव प्रसारण अपने चैनलों पर करता रहा। देश-दुनिया की खबर देने की जगह खुद खबर बनने की कोशिश करता रहा। संघ परिवार में तो मानो इस खबर से भूचाल आ गया। देश के गृहमंत्री, कानून मंत्री से लेकर पता नहीं कितने मंत्री और संतरी अर्नब के पक्ष में बयानबाजी करने लगे। इसे लोकतंत्र की हत्या तक बता डाला। उन्हें इंदिरा गांधी की इमरजेंसी की याद सताने लगी। लेकिन ले-देकर हुआ ढाक के तीन पात। इस ड्रामेबाजी से अर्नब को कोई फायदा तो नहीं हुआ उल्टे नुकसान जरूर हो गया। मुंबई पुलिस की एक महिला कांस्टेबल के साथ बदतमीजी करने और उसे सरकारी ड्यूटी से रोकने के आरोप में एक और केस लद गया।
अर्नब फिलहाल 14 दिनों की न्यायिक हिरासत में है। गिरफ्तारी का एक हफ्ता पूरा होनेवाला है। अभी उसके जेल से बाहर आने की तारीख 18 नवंबर आने में तकरीबन 9 रातें बाकी हैं। इन नौ रातों में इस लौंडे का मुंबई पुलिस क्या गत बना डालेगी, कह पाना थोड़ा मुश्किल है। जेल में अर्नब की रातें किस तरह कट रहीं हैं, इसके बारे में अबतक रजत शर्मा ने भी नहीं बताया है जिन्होंने रिया चक्रवर्ती की जेल में कटती रातों के बारे में विस्तार से बताया था। इस हद तक कि रिया ने रात में कितनी बार करवट बदली। तब ये जानकारी तक दर्शकों को मुहैया कराई थी। काश वो अर्नब के बारे में भी ये सब बताते तो अच्छा रहता। लेकिन हाय अर्नब! आज तुम जेल में हो। बेल के लिए कोर्ट के दरवाजे-दरवाजे नाक रगड़ रहे हो, सुप्रीम कोर्ट से मदद की गुहार लगा रहे हो, भिखारियों की तरह सबके सामने झोली फैलाए खड़े हो, लेकिन कोई काम नहीं आ रहा। अब पांचजन्य में लेख छपने से तुम्हारा भला थोड़े ना हो जाएगा।
अर्नब, तुम किसी खबर को दिखाए जाने की वजह से जेल में नहीं हो। तुम्हें एक इंटीरियर डिजाइनर अन्वय नायक और उसकी मां को खुदकुशी के लिए उकसाने के मामले में गिरफ्तार किया गया है। इंटीरियर डिजाइनर अन्वय नाइक ने अपने सुसाइड नोट में तुम्हें और दो अन्य लोगों को अपनी और अपनी मां की खुदकुशी के लिए दोषी ठहराया है। यानी अर्नब ये मामला कहीं से पत्रकारिता से जुड़े किसी कृत्य, प्रेस की आजादी या अभिव्यक्ति की आजादी से जुड़ा नहीं है। यही वजह है कि छाती पीटने के बाद भी पत्रकार जगत इस मामले में तुम्हारे पक्ष में खड़ा नहीं दिखाई दे रहा है। क्योंकि तुम्हारा जुर्म संगीन है और तुम्हारे ऊपर आईपीसी की गैर जमानती धाराओं में केस दर्ज किए गए हैं। जिनमें 10 साल तक की सजा का प्रावधान है।
अर्नब आज तुम अपराधियों को ले जाने वाली पुलिस वैन के भीतर जालियों के पीछे से हाथ जोड़कर कहते हो, मेरी जान को खतरा है। मुझे घसीटा जा रहा है। मेरे साथ जेल में मारपीट की जा रही है। मेरे बाएं हाथ पर छह इंच का घाव हो गया है। मेरी रीढ़ की हड्डी में भी गंभीर चोट आई है। लेकिन अर्नब आज तुम जिस रीढ़ की हड्डी की बात कर रहे हो। वो तो तुमने कभी दिखाई ही नहीं। जब भी जनता की आवाज बनने का मौका आया तुमने पीठ दिखा दी। संघियों की दलाली में लगे रहे। अब तुम्हें दर्द हो रहा है तो मैं क्या करूं!
अर्नब सबसे आसान होता है किसी शख्स को तब सबक सिखाना जब वो जीवन के सबसे कमजोर दौर से गुजर रहा हो। तब जिसने कभी जोर से बोलने की हिमम्त भी ना दिखाई हो वो भी दो चपत लगाकर चल देता है। लेकिन अर्नब मैंने तुम्हारे बारे में तब लिखा जब तुम बेहद शक्तिशाली नजर आ रहे थे। रोज दहाड़ रहे थे। रोज उद्धव सरकार को खुलेआम गरियाते हुए चुनौती दे रहे थे। लुटियन मीडिया, लुटियन मीडिया कहकर पत्रकारों को भी निशाना बना रहे थे।
अर्नब काश तुमने हमारी सुनी होती। अपने बारे में ठहरकर कभी सोचा होता कि तुम रोजाना कौन सी पत्रकारिता करते हो। आज तुम अपने कर्मचारियों के साथ अकेले खड़े हो। मोदी सरकार की बात तो छोड़ दो, गोदी मीडिया भी तुम्हारी मदद के लिए आगे नहीं आ रहा है। लेकिन मैंने उम्मीद नहीं छोड़ी है। मुझे लगता है तुम अब भी सुधर सकते हो। क्योंकि मुझे एनडीटीवी वाला सभ्य, शालीन, सुसंस्कृत अर्नब याद है जो आज के किसी भी एंकर से ज्ञान में मुकाबला कर सकता है। बस मसला आत्मावलोकन का है, आत्मचिंतन का है। मुझे उम्मीद है कि तुम जब भी जेल से बाहर आओगे एक नए अवतार में नजर आओगे। अपने मित्रों से माफी मांगोगे। देश से माफी मांगोगे। अपने कर्मचारियों से माफी मांगोगे। और एक ऐसी पत्रकारिता करोगे जो एक मिसाल कायम करेगी। जब इस देश की विशाल ह्दय वाली जनता तुम्हें जरूर माफ कर देगी और फिर से सिर आंखों पर बिठाएगी। हमें उम्मीद है तुम हमें निराश नहीं करोगे, अर्नब।
लेखक संजय कुमार टीवीआई, आजतक, इंडिया टीवी, राज्यसभा टीवी से जुड़े रहे हैं। फिलहाल स्वराज एक्सप्रेस न्यूज चैनल में कार्यकारी संपादक हैं।
बिलाल सब्ज़वारी
November 9, 2020 at 8:35 pm
संजय कुमार, वरिष्ठ पत्रकार, के लेख और लेखनी, बहुत सच्ची और अच्छी है, व्यव्हारिक और मार्गदर्शन भी करती है, भड़ास डॉट कॉम से अनुरोध है कि वो समय समय पर इस प्रकार के उच्च श्रेणी के लेख पढ़वाते रहें।
धन्याद..
राहुल
November 9, 2020 at 9:28 pm
कितने नीच पत्रकार हो यार तुम दल्ले। मत भूलना ऐसे ही तुम भी जाओगे।
प्रकाश
November 10, 2020 at 8:36 am
बिल्कुल ठीक कह रहे हैं संजय कुमार इस में कोई शक नहीं जब कोई अपने आप को पत्रकार नहीं सरकार समझने लगे कानून समझने लगे अभी भी ये इंसान कानून को कानून नहीं मान रहा। जिस तरह से अपने चैनल आज भी जिस तरह की पत्रकारिता कर रहा है। इससे इसे ही ज्यादा नुकसान हो रहा है। कहते हैं जब विनाश हो जाता है पहले विवेक मर जाता है।
इस को सबक लेना चाहिए था कि जब भगवान् किसी को शक्ति देते हैं तो कहते हैं इसका गलत स्तमाल मत करना और जब वो गलत स्तमाल करता है तो फिर उसी उससे वो ऐसा काम कराते हैं ताकि वो खुद ही निपट ले वो ही इनके साथ हो रहा है।
अब रही शर्मा जी की बात तो शर्मा जी को भी हो सकता है उनको भी कानून का डर लग गया हो उनके ऊपर भी ऐसे केस हैं वो अभी दबे हुए हैं एक तो उनके एक ऐंकर का ही है जिसने कार्यालय के अंदर ही आत्महत्या करने की कोशिश की थी। कहीं सरकार बदलने के बाद वो खुल गये तो इनको भी ना जाना पडे और फिर इनकी खबर कौन बनायेगा।
Shivam Shukla
November 13, 2020 at 2:04 pm
ऐसा तुम्हारे साथ भी हो तुम भी किसी की दलाली खाते हो किसी को वकील से बात न करने देना किसी को भी बिना जूते चप्पल के लाना तुमको नही दिखा भड़वे