Nadim S. Akhter : बरखा ने जो कुछ कहा, वह अर्नब द्वारा कही गई बात का जवाब भर था और मैं व्यक्तिगत रूप से बरखा से सहमत हूं कि कोई शिखर पर बैठा पत्रकार यानी अर्नब ये कैसे कह सकता है कि कश्मीर पर उनसे अलग राय रखने वाले पत्रकारों का ट्रायल हो और उन्हें सजा मिले! यानी टाइम्स ग्रुप से जुड़ा एक बड़ा पत्रकार दूसरे पत्रकारों और मूलरूप से मीडिया की आजादी पर हमला करने की हिमायत और हिमाकत आखिर कर कैसे सकता है? सो चुप्पी तोड़नी जरूरी थी और बरखा ने चुप्पी तोड़कर सही किया. वरना अर्नब और बेलगाम हो जाते.
दूसरी बात. मामला यहां अर्नब या बरखा का नहीं है. ये तो एक क्रिया की प्रतिक्रिया भर थी. मामला इससे भी कहीं ज्यादा बड़ा और खतरनाक है. सवाल ये है कि अर्नब जो बोल-कह रहे हैं, क्या उससे टाइम्स ग्रुप और उसके मालिकान इत्तेफाक रखते हैं ??!! यहां ये बताना जरूरी है कि हर मीडिया संस्थान की एक एडिटोरियल पॉलिसी होती है, अघोषित एडिटोरियल गाइडलाइन होता है, जिसे अखबार-चैनल का मालिक और मैनेजमेंट तय करता है. सम्पादक को उसी गाइडलाइन के मुताबिक काम करना होता है. ये तो सुना था कि अर्नब को टाइम्स ग्रुप ने फ्री-हैंड दिया हुआ है लेकिन वो -फ्री हैंड- ऐसा भी नहीं हो सकता कि अर्नब अपने चर्चित शो न्यूज आवर में कुछ भी कह दें-बोल दें और ग्रुप का मालिक चुपचाप सब देखता-सुनता रहे.
इससे पहले भी अर्नब ने पीएम मोदी का इंटरव्यू जिस सॉफ्ट लहजे में किया था, जिसका सोशल मीडिया पर खूब मजाक उड़ा और उस इंटरव्यू की निष्पक्षता पर सवाल उठाए गए थे, तब मैंने कहा था कि टाइम्स ग्रुप अपने ब्रैंड यानी चैनल की निष्पक्षता या यूं कहें कि उसकी ब्रैंड इमेज से समझौता नहीं करता. सो हो सकता है कि इस मामले में कुछ हो, जिसका असर टाइम्स नाऊ की स्क्रीन पर भी दिखे. पर ऐसा नहीं हुआ. और ये दूसरी बार अर्नब ने ऑन एयर एक ऐसी बात कह दी, जिसने बखेड़ा खड़ा कर दिया और चैनल की साख पर सवाल उठा दिए. अर्नब और टाइम्स नाऊ को -सरकार का चमचा- तक कह दिया गया.
तो क्या अर्नब ने जो कहा, वह महज slip of tongue था या फिर भावावेश में आकर बोली गई ऐसी बात, जो पत्रकारों की एक बड़ी बिरादरी को चुभ गई!!! या यह सब एक सोची-समझी रणनीति का हिस्सा है??!! मेरे ख्याल में अर्नब जैसा मंजा हुआ एंकर ऐसी गलती नहीं कर सकता कि भावावेश में उनकी जुबान फिसल जाए और वो इतनी बड़ी विवादास्पद बात कह जाएं.
सो असल सवाल यहीं से शुरु होता है. क्या अर्नब टाइम्स नाऊ के सर्वेसर्वा बनकर जो कह रहे हैं, टीवी पर जो दिखा रहे हैं और जिस तरह से बहस (एकतरफा बहस !!) का संचालन कर रहे हैं, क्या उसे टाइम्स ग्रुप के मालिकों यानी विनीत जैन और समीर जैन की सहमति मिली हुई है??!! और अगर नहीं, तो अर्नब पर लगाम क्यों नहीं कसी जा रही. क्यों टाइम्स नाऊ की ब्रैंड इमेज से उन्हें इस कदर खिलवाड़ करने दिया जा रहा है??. ये बात हम सब जानते हैं कि आज के काल में कोई भी पत्रकार अपने मीडिया संस्थान से बड़ा नहीं होता और अगर उसे वहां नौकरी करनी है, तो उसे संस्थान के एडिटोरियल गाइडलाइन्स का पालन करना ही होगा, वरना नौकरी गई समझो. इसलिए अगर अर्नब धड़ाधड़ जिस तरह की लाइन लिए हुए हैं, क्या उसे ये माना जाए कि टाइम्स ग्रुप ने अपनी -निष्पक्ष- वाली एडिटोरियल गाइडलाइन में संशोधन करते हुए कम से कम टाइम्स नाऊ न्यूज चैनल के लिए इसे बदल दिया है?
एक बात और भी मार्के वाली है. वो ये कि अगर टाइम्स ग्रुप के अंग्रेजी अखबार Times of India के ही वरिष्ठ और प्रभावशाली पत्रकारों से पूछा जाए तो उनमें से ज्यादातर अर्नब की बात से इत्तेफाक नहीं रखेंगे और ऐसा मैं दावे के साथ कह रहा हूं. कौन पत्रकार होगा, जो जुदा राय रखने वाले पत्रकारों को प्रताड़ित और सजा देने की बात करेगा? यही कारण है कि टाइम्स ऑफ इंडिया अखबार की एडिटोरियल पॉलिसी में मुझे अभी तक कोई मेजर शिफ्ट नजर नहीं आया है. बैलेंस करने की वही पुरानी कोशिश आज भी बरकरार है.
तो फिर टाइम्स नाऊ में ऐसा क्यों हो रहा है? क्यों चैनल को उस तरफ जाने दिया जा रहा है जिससे ये छवि बन रही है कि चैनल और उसके एडिटर इन चीफ अर्नब गोस्वामी को लोग सरकार का चमचा कहने लगे हैं? टाइम्स ग्रुप के मालिक और मैनेजमेंट इस पर कुछ कर क्यों नहीं रहा? ऐसे कई सवाल हैं, जिनके जवाब मिलने बाकी हैं क्योंकि अर्नब की working style ने टाइम्स नाऊ और टाइम्स ग्रुप को असहज तो किया ही है.
पत्रकार और शिक्षक नदीम एस. अख्तर की एफबी वॉल से.
ashok jain
August 3, 2016 at 6:19 pm
प्रतिष्ठा को धूमिल कर रहे गोस्वामी । अर्श से फर्श पर आने में वक्त नही लगता प्रतियोगिता युग में।
ashok jain
August 3, 2016 at 6:22 pm
टाईम्स समूह की प्रतिष्ठा को धूमिल करते गोस्वामी ।प्रतियोगिता के युग में गल्ती सुधारी नही जाती तो अर्श से फर्श पर आने में वक्त नहीं लगता ।