आज के समय में एक नया चलन-सा शुरू हो गया है. अपने आप को सीनियर फोटोग्राफर बता कर नये-नये लोगो को अपना चेला बनाना. साथ ही उन्हें एक अच्छा फोटोग्राफर बनाने का ख्वाब दिखाकर एक बड़े संस्थान में नौकरी दिलवाने के हसीन सपने दिखाना. यह सब करते हुए उन्हें अपने साथ रक्खा जाता है, लेकिन क्या वो सपने वास्तव में सच भी होते हैं? नहीं, ऐसा नहीं होता। उदहारण के तौर पर मैं एक ऐसे शख्स की बात बता रहा हूँ जो कि खुद को फोटोग्राफरों का मठाधीश और एक फोटोग्राफर संगठन का अध्यक्ष बताता है.
अक्सर इस शख्स के साथ नये-नये लड़के देखे जाते हैं जिन्हें फोटोग्राफर बनाने का वादा करके फील्ड पर अपने साथ लेकर निकलता है लेकिन एक दिन भी सिखाने के नाम पर कैमरा पकड़ने तक नहीं देता. उस लड़के का काम सिर्फ इतना ही रहता है कि वो अपने तथाकथित गुरु का बैग कंधे पर टाँगे रहे और चुपचाप एक कोने में खड़ा रहे. यदि इस दौरान उसने किसी से बात करने या फिर अपना परिचय बढ़ाने की कोशिश की तो सबके सामने उसकी बेइज़्ज़ती होना निश्चित है. हालांकि यही वजह भी है कि इस तथाकथित फोटोग्राफरों का मठाधीश और एक फोटोग्राफर संगठन का अध्यक्ष कहलाने वाले गुरु के साथ ज़्यादा दिन कोई नहीं टिकता. इनकी कारगुजारी यही ख़त्म नहीं होती. ये फोटोग्राफी सीखने के नाम पर इन लड़को से अपने घर के काम भी करवाते हैं. मानो वो फोटोग्राफी सीखने नहीं बल्कि बंधुआ मजदूर बनने इनके पास आया हो. ये शख्स मामला सेट व मैनेज करने के लिए भी मशहूर हैं. कही कोई भी फोटोग्राफर से अभद्रता या लड़ाई का मामला हो तो ये महाशय बिन बुलाये ही अपनी दुकान सजाने वहां पहुंच जाते हैं लेकिन कई बार देखा गया है कि ऊपर से दबाव आने पर अधिकतर मामलो को ये मैनेज करवा देते हैं.