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मीडिया की चादर ओढ़कर देशभर में फल -फूल रहे शारदा, सहारा और पर्ल्स जैसे महा घोटालेबाज

आगरा : कौन कब ठग लिया जाए, कहना मुश्किल है, क्योंकि देश में वित्तीय कारोबार जितनी तेजी से फल -फूल रहा है, वित्तीय हेराफेरी में उतनी ही तेजी आई है. चिटफंड के भुक्तभोगी यही बता रहे हैं। दरअसल, मीडिया की चादर ओढ़कर शारदा, सहारा और पर्ल्स जैसे वित्तीय घोटालों का कारोबार देश भर में फल फूल रहा है। रोजवैली और स्टार जैसी नामचीन कंपनियां भी इसमें पीछे नहीं हैं। पहले तो ये कंपनियां जनता को झूठे सपने दिखाती हैं। यह बताती हैं कि यदि वे कंपनी में पैसा लगाएंगे तो निवेशक को (जनता) दोगुना लाभ होगा। कंपनी के झांसे में आकर जनता अपनी गाढ़ी कमाई लगा देती है। इसके बाद लाभ की बात तो छोड़ें, वह अपना मूलधन भी प्राप्त नहीं कर पाती है।

आगरा : कौन कब ठग लिया जाए, कहना मुश्किल है, क्योंकि देश में वित्तीय कारोबार जितनी तेजी से फल -फूल रहा है, वित्तीय हेराफेरी में उतनी ही तेजी आई है. चिटफंड के भुक्तभोगी यही बता रहे हैं। दरअसल, मीडिया की चादर ओढ़कर शारदा, सहारा और पर्ल्स जैसे वित्तीय घोटालों का कारोबार देश भर में फल फूल रहा है। रोजवैली और स्टार जैसी नामचीन कंपनियां भी इसमें पीछे नहीं हैं। पहले तो ये कंपनियां जनता को झूठे सपने दिखाती हैं। यह बताती हैं कि यदि वे कंपनी में पैसा लगाएंगे तो निवेशक को (जनता) दोगुना लाभ होगा। कंपनी के झांसे में आकर जनता अपनी गाढ़ी कमाई लगा देती है। इसके बाद लाभ की बात तो छोड़ें, वह अपना मूलधन भी प्राप्त नहीं कर पाती है।

यह दावा हवा में नहीं है, बल्कि इसके पुख्ता प्रमाण हैं। संसद और न्यायालय के साथ-साथ भारतीय प्रतिभूति और विनियमन बोर्ड (सेबी) तक इस बात के सबूत पड़े हुए हैं। पहले बात संसद की करते हैं। बजट सत्र में कॉरपोरेट मंत्रालय से अवैध तरीके से सामूहिक निवेश योजना (सीआईएस) चलाने वाली कंपनियों की संख्या पूछी गई थी। यह सवाल राज्यसभा में पूछा गया था। लिखित जवाब में कॉरपोरेट राज्य मंत्री निर्मला सीतारमन ने जो कहा है, वह चौकाने वाला है। उन्होंने कहा कि 34,754 ऐसी कंपनियां हैं, जो रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया (आरबीआई) की अनुमति के बिना धन उगाही कर रही हैं। इसी तरह की सनसनीखेज जानकारी 2013 में भी सामने आई थी। मौका बजट सत्र का ही था। लोकसभा के दो सदस्यों ने कंपनियों के जरिए हो रही धोखाधड़ी के बारे में कॉरपोरेट मंत्रालय से जानकारी मांगी थी। तत्कालीन राज्यमंत्री सचिन पायलट ने कंपनियों की एक सूची सदन के पटल पर रखी थी। इसमें 356 कंपनियां थीं। सभी कंपनियां अवैध तरीके से काम कर रही थीं। इन कंपनियों ने किसी भी विनियामक संस्था से इस बाबत कोई अनुमति नहीं ली है।

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कानून के मुताबिक अगर कोई कंपनी जनता से धन उगाही करती है तो उसे कंपनी अधिनियम-1956, सेबी अधिनियम या आरबीआई अधिनियम या फिर प्राइज चिट्स एण्ड मनी सर्कुलेशन स्कीम अधिनियम के तहत पंजीकृत होना पड़ता है। दुर्भाग्य की बात है कि सरकार की लापरवाही और विनियामक संस्थाओं की कमजोरी की वजह से इस तरह की फर्जी कंपनियां आम जनता को खूब चूना लगा रही है। कम से कम आंकडे तो यही बता रहे हैं। सेबी के मुताबिक 669 कंपनियां बिना अनुमति लिए सामूहिक निवेश योजना चला रही है। इनके पास सेबी ने नोटिस भेजा है कि जब तक इनकी जांच पूरी नहीं हो जाती, तब तक सामूहिक निवेश योजना का संचालन नहीं करेगी। इनमें 33 कंपनियां ऐसी हैं, जिनके फर्जीवाड़े की जांच के लिए मध्य प्रदेश उच्च न्यायालय की ग्वालियर पीठ में एक जनहित याचिका डाली गई थी। याचिका की सुनवाई करते हुए न्यायालय ने सीबीआई को छानबीन करने का आदेश दिया था।

सीबीआई की जांच पड़ताल में जो कुछ सामने निकलकर आया, उसने हैरत में डाल दिया है। एजेंसी ने पाया कि सभी कंपनियां गैरकानूनी तरीके से धन उगाही कर रही हैं। इन कंपनियों ने निवेश करने के लिए जो समझौता पत्र तैयार किया है, वह झूठ का पुलिंदा है। जांच एजेंसी की पूरी कवायद में कई कंपनियों का सच उजागर हुआ, लेकिन कुछेक कंपनियां ऐसी हैं, जिनकी धोखाधड़ी का कारोबार हजारों करोड़ रुपए का है। इनकी वजह से करोड़ों लोगों के खून पसीने की कमाई दांव पर लगी है। मसलन पर्ल एग्रोटेक कॉरपोरेशन लिमिटेड (पीएसीएल), साई प्रसाद फूड्स लिमिटेड, साई प्रसाद प्रॉपर्टीज लिमिटेड।

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लगाम कसनी क्यों मुश्किल 

दरअसल ऐसी कम्पनियों पर लगाम कसना इतना आसान नहीं है, ये अलग बात है कि आज सहारा साम्राज्य के मालिक सुब्रत राय जेल में हैं, शारदा के सुदीप्तो सेन भी जेल में हैं और पर्ल्स के मालिक के खिलाफ दर्जनों मामले दर्ज हैं जिनमें देर सवेर उनकी गिरफ्तारी भी तय है.लेकिन ऐसे अधिकाँश मामलों में गिरफ्तारी के बाद भी निवेशकों को राहत मिलना मुश्किल होता है. वजह अधिकाँश मामलों में ऐसी कम्पनियां अपना धन या तो सुरक्षित योजनाओं में देश-विदेश में निवेश कर डालती है ताकि झंझावातों के निकल जाने के बाद कारोबार को नए सिरे से खडा कर सकें. उदाहरण के तौर पर बरसों पहले डिफाल्टर हुई जेवीजी के निदेशक को कुछ महीने पहले फिर से गिरफ्तार किया था जो जेवीजी के मामले में अपनी सजा पूरी करने के बाद नए सिरे से अपने कारोबार को नए नाम से खडा कर फिर से जनता से हजारों रु बटोर चुका था. 

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दूसरा कारण ऐसी कम्पनियों का अधिकाँश धन ऐसे अनुत्पादक कार्यो में व्यर्थ हो जाना होता है जिससे  इनके सामने देर-सवेर डिफाल्टर होने के अलावा कोई चारा नही होता. 

पत्रकार हरिमोहन विश्वकर्मा से संपर्क : [email protected]

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0 Comments

  1. dipsi24

    August 1, 2015 at 2:13 pm

    iske ek naam VIP yaani vishwamitra india parivaar ka naam bhi shamil ho raha hai . wahan se bhi kayi logon ke ruupye nahi diye jaane ki khabaren aur shikayaten samne aa rahi hai . in company ka bhi VIP naam se ek channel chalta hain .

  2. सुजीत

    August 1, 2015 at 2:36 pm

    चैनल चलता है तो जान लोगे क्या तुम्हारी ऐसी की तैसी…

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