गज़ब हो गया। पहले यही बड़ी बिरादरी कस्बाई बिरादरी को दलाल के तौर पर पुकारती थी, आज वही लखनऊ-राजधानी वाली की बड़ी बिरादरी के लोगों ने छोटी बिरादरी के पहले कहे गए अदने से ‘दलाल’ पत्रकार शहीद जगेंद्र सिंह को गांधी प्रतिमा पर एक बड़े सम्मलेन में अपनी श्रद्धालियां अर्पित कर दिया। हज़रतगंज के जीपीओ चौराहे स्थित गांधी प्रतिमा पार्क पर खूब भीड़ जुटी। सभी के चेहरों पर आक्रोश था, व्यथा थी, गुस्सा था। यकीन मानिये कि आज मैं बेहद खुश हूँ। आज मुझे अहसास हो गया है कि हम बहुत जल्द ही जगेंद्र सिंह और उसके प्रियजन और मित्रों की जीत हासिल कर सकेंगे। बहुत दिनों बाद आज लग रहा है कि शायद मेरा ब्लड प्रेशर अब संभल जाए। जी भर कर रोने का भी मन कर रहा है।
हत्यारोपियों की गिरफ्तारी न होने से क्षुब्ध प्रदेश के विभिन्न जनपदों से आये एवं राजधानी के तमाम मीडियाकार्मियों ने गांधी प्रतिमा पर जोरदार प्रदर्शन कर आरोपियों की गिरफ्तारी की मांग की। पत्रकारों ने मांग करते हुए कहा स्व.जगेन्द्र सिंह हत्याकाण्ड की सीबीआई जांच के लिए प्रधानमंत्री एवं गृहमंत्री को राजभवन से सीधे पत्र लिखकर मृतक परिजनों को न्याय प्रदान किया जाय। प्रदेश सरकार, शासन और प्रशासन की मानसिकता पत्रकार विरोधी है। जगेन्द्र के परिजनों को प्रधानमंत्री व मुख्यमंत्री कोष से 10-10 लाख रूपये मुआवजा दिलाया जाय और मृतक पत्रकार की पत्नी एवं पुत्र को सरकारी नौकरी प्रदान की जाए। परिवार को सुरक्षा दी जाये।
मुख्य आरोपी राज्यमंत्री राममूर्ति वर्मा को बर्खास्त कर सभी को गिरफ्तार कर जेल भेजा जाय। शाहजहांपुर के डीएम और कप्तान को तुरन्त हटाया जाए एवं हरदोई जनपद में सपा के राज्यसभा सांसद नरेन्द्र अग्रवाल के कार्यकर्ता द्वारा मान्यता प्राप्त पत्रकार विजय पाण्डेय पर दर्ज किया गया फर्जी 307 का मुकदमा व मल्लावां कोतावाली में राकेश कुमार राठौर पत्रकार के विरूद्ध दर्ज फर्जी मुकदमा में भेजी गयी चार्जशीट जो सी.ओ.बिलग्राम के यहां अवलोकनार्थ है,
उसे पुनः मल्लावा कोतवाली भेजकर घटना की एसआईएस से विवेचना करायी जाये। हरदोई जनपद में बढ़ रही पत्रकारों की उत्पीड़न की घटनाओं को रोकने के लिए एसपी हरदोई का स्थानान्तरण किया जाए।
इसके अलावा उ.प्र.के 75 जिलों में पत्रकारों के ऊपर हो रहे चौरतरफा हमले उत्पीड़न व शोषण व हत्याओं को रोकने के लिए उप्र सरकार को निर्देश देकर जब तक उप्र सरकार राज्य प्रेस आयोग का गठन नहीं करती है, तब तक डीजीपी मुख्यालय पर अतिरिक्त पत्रकार सुरक्षा सेल का गठन कर अपर पुलिस महानिदेशक स्तर का अधिकारी तैनात कर पत्रकारों का उत्पीड़न व शोषण रोका जाए।
शाहजहांपुर के जांबाज और बेबाक पत्रकार जागेन्द्र सिंह को जिन्दा फूंक डालने के मामले में पत्रकारों में से कई गुट बन गये थे। सबके अलग-अलग तर्क थे। शुरूआत में तो लखनऊ के ज्यादातर पत्रकारों ने जागेन्द्र सिंह को पत्रकार कहलाने से ही मुंह बिचका दिया था, लेकिन सोशल साइट्स में जब हंगामा मचा, जब जागेन्द्र की मौत हुई, जब मैंने शाहजहांपुर जाकर इस मामले की सघन जांच की, जब प्रमाण दिये कि पत्रकार किस तरह सच्चा पत्रकार था, कैसे पूरी पुलिस, प्रशासन, नेता, पत्रकार और अपराधी मिल कर उसका तियां-पांचा कर देने पर आमादा था, जब पुलिस और सरकार ने इस मामले में कोई भी कार्रवाई न करने का ऐलान किया, जब भारतीय प्रेस काउंसिल ने अपने तीन सदस्यों की एक टीम को शाहजहांपुर जांच करने के लिये भेजा—तब कहीं जाकर लखनऊ में जमे हमारे पत्रकारों की नींद टूटी और उन्होंने जागेन्द्र सिंह को पत्रकार के तौर पर आनन-फानन उसके मुत्युपरान्त उसे पत्रकार की उपाधि अदा कर दिया।
लेकिन पत्रकार बिरादरी के तीन बड़े आकाओं की हरकतों को अगर आप देखेंगे तो घृणा और शर्म आ जाएगी।इन तीन पत्रकार-मठाधीश हैं के-विक्रम राव, हेमन्त तिवारी और सिद्धार्थ कलहंस। के-विक्रम ने तो अपनी दूकान वही पुरानी ही रखी है, मतलब एनयूजे। लेकिन हेमन्त तिवारी और सिद्धार्थ कलहंस फिलहाल उप्र मान्यताप्राप्त समिति की कुर्सियों पर आम पत्रकारों के हितों पर लगातार कुल्हाड़ा चला रहे हैं। इतना ही नहीं, चूंकि उप्र प्रेस क्लब पर भी इन लोगों का खासा दबदबा है, इसलिए वहां भी उनकी दूकान की दूसरी शाखा खुली ही रहती है। सरकारी फुटपाथ पर शराब और मांसाहार की दूकानों से होने वाली भारी-भरकम वसूली का एक बड़ा हिस्सा इन लोगों के जेब में भी आता है।
खैर, हमारी असल बात तो जागेन्द्र सिंह की मौत पर है। जागेन्द्र पत्रकार था, यह सब जानते थे, के विक्रम राव से लेकर हेमन्त तिवारी और सिद्धार्थ कलहंस भी खूब जानते थे कि शाहजहांपुर का एक मजबूत पत्रकार था जागेन्द्र। लेकिन उसकी जिन्दा फूंक डालने वाली जघन्य हौलनाक सूचना पाकर भी यह तीनों पत्रकारों की तिकड़ी पर कोई फर्क नहीं पड़ा।
हालांकि जब से मैंने इस मामले का खुलासा किया है कि इन पत्रकारों के हाथ जागेन्द्र के खून से सने हुए हैं, के-विक्रम राव और हेमन्त अपने बिल में छिप गये लगते हैं। लेकिन सिद्धार्थ कलहंस जरूर दो-चार बार अपने पक्ष रखने के लिए उपस्थित हो जाते हैं।
तो पहली बात तो के-विक्रम राव पर। 15 जून को के-विक्रम राव ने बयान दिया कि वे जागेन्द्र हत्याकाण्ड के लिए खुद को गुनेहगार मान रहे हैं। क्योंकि मै “जगेन्द्र सिंह” की समय पर सहायता नहीं कर पाया। यह बात अलग है कि मैं लखनऊ के बाहर था, पर वह कोई उचित तर्क नहीं हो सकता। सात दिनों तक लखनऊ के अस्पताल में शाहजहाँपुर का एक खोजी पत्रकार जगेन्द्र सिंह ज़िन्दगी से जूझता रहा, उसके घर में घुस कर जलाने वाले आज़ाद हैं। सिर्फ इसलिए की एक राज्यमंत्री की दबंगई थी। जगेन्द्र सिंह घोटोलो का भंडाफोड़ करता रहा। राव ने कहा है कि लखनऊ के पत्रकार भी कलंक निकले जो ऐसे हादसे पर खामोश ही रहे।
अरे किसको बेवकूफ बना रहे हैं आप राव साहब। आपने इतना तो कह दिया कि आप जिम्मेदार और गुनहगार हैं। लेकिन आप यह नहीं कुबूल रहे हैं कि यह सारा कुछ आपका ही किया धरा है। पत्रकारिता की जो शुचिता आज 30 साल पहले हुआ करती थी, आपने उसे शराबियों-कबाबियों के हाथों बेच दिया। आपके ही दिखाये रास्ते में जिम्मेदार पत्रकारों का कलंकित किया गया और हेमन्त तिवारी जैसे जन्मना बेईमान-दलालों को पत्रकार यूनियन, प्रेसक्लब और मान्यताप्राप्त समिति में घुसपैठ करायी। आपके ही चेलों ने आपके दिखाये रास्ते पर चल कर प्रेस क्लब को भडवा-घर और शराबखाने मे तब्दील कर दिया। और अब आप अपनी नाक कटवा कर लखनऊ के पत्रकारों को लांछित कर रहे हैं। शर्म तो आपको आनी ही चाहिए के-विक्रम राव। आपको शर्म आती होती तो आप घटना की खबर आते ही दिल्ली से लखनऊ आते, शाहजहां पुर जाते और पूरी सरकार और प्रशासन की नाक में दम करने का पलीता लगाते। लेकिन ऐसा इसलिए नहीं किया आपने, क्योंकि ऐसा करने से आपके छिपे एजेण्डे तितर-बितर हो जाते। है कि नहीं राव जी, अब जवाब दीजिए ना राव जी
अब दूसरा नाम है हेमन्त तिवारी का। मात्र तीन महीना तक जन संदेश टाइम्स में नौकरी के बाद जबरिया बाहर किये गये हेमंन्त पिछले पांच साल से बेरोजगार हैं। जन-सामान्य से कोसों से दूर, इनके रिश्ते केवल आला अफसरों और बड़े नेताओं तक ही फलते हैं। अपनी हनक में कभी वे आज डीजीपी बने अरविन्द जैन से कह कर किसी सीओ का तबादला करवा देते हैं, जिसका मूल्य वे जागेन्द्र की मौत पर अपनी जुबान बंद करने के तौर पर अदा करते हैं। सरकारी प्रेस कांफ्रेंस में भी उनकी भूमिका सजग पत्रकार की नहीं, बल्कि अफसरों-नेताओं की तेल-मक्खन लगाने की होती है।
इन्होंने एक न्यूज पोर्टल शुरू किया है, ताकि लोग उन्हें पत्रकार मानते रहें।
हेमंत तिवारी के फेसबुक वाल पर तो छोडि़ये, उनके वेब पोर्टल तहलका डॉट कॉम में भी जागेन्द्र की हत्या की एक भी रिपोर्ट नहीं है। और अगर जब छापी भी, तो तब ही जब पुलिस या डीजीपी ने बयान दिया। अरविंद जैन से हेमंत की खूब छनती है। एक बार शराब में धुत्त हेमंत तिवारी ने अपने घर जमकर हंगामा किया था, एक दारोगा का बिल्ला नोंचा था और एक सीओ का कालर पकड़ा था, इस पर अरविंद ने उल्टे उसे सस्पेेंड कर दिया।
खैर, हेमंत की वाल पर उसके स्तर, उसकी खबरें और जागेन्द्र की मौत की खबरों पर एक नजर डाल लीजिए। कई स्क्रीनशॉट्स भेज चेंप रहा हूं। जिसमें स्त्री सौंदर्य, हेमामालिनी, वेश्याओं की खबरें, आम और डियोडिरेंट को लेकर बेहद खोजी और नोबल प्राइज दिला सकने वाली देश-विदेश खबरों का लिंक दिया गया है।
सिद्धार्थ कलहंस भी अब अगले अध्यक्ष के दावेदार भले हों, लेकिन सामने तो वे खुद को हेमंत के पिछलग्गू ही साबित करते हैं। उनकी वाल को देखिये ना, इनमें केवल हेमंत की मूर्खतापूर्ण वेब पोर्टल का ही लिंक पोस्ट किया जाता है। बहुत हुआ तो नवनीत सहगल और मुख्यमंत्री को धन्यवाद वगैरह देना ही। जागेन्द्र सिंह की घटना पर एक भी खबर सिद्धार्थ कलहंस ने नहीं लिखी।
उसी तरह के-विक्रम राव ने इस बारे में केवल एक ही पोस्ट अपनी वाल पर की है, वह भी तब जब उन्हें फोटो खिंचवानी थी। वरना बाकी तो वे ढाका की राजनीति पर ही लिखते रहे।
तो यह है इन महानतम पत्रकारों की करतूतें। लानत है इन लोगों पर, जिन्होंने पत्रकारिता की आबरू को चिन्दी-चिन्दी बिखेरते हुए उसे बाकायदा सरेआम नीलाम कर दिया।
अब तो आप लाेगों को ही देखना है और करना है कि आखिरकार इन लोगों के लिए हम अब भविष्य में क्या रणनीति अपना सकते हैं।