रविवार को ग्रेटर नोएडा के चाई सेक्टर में चल रहे सेक्स रैकेट मामले में पुलिस और इलेक्ट्रॉनिक मीडिया के कुछ पत्रकारों की भूमिका पर भी सवाल उठने लगे हैं। जिन दो इलेकट्रॉनिक मीडिया के पत्रकारों का नाम लिया जा रहा है, दलालों द्वारा दी गयी पूरी बाइट में कहीं भी उन पत्रकारों के रैकेट में शामिल होने की पुष्टि नहीं की गई है। सुप्रीम कोर्ट द्वारा दी गई गाइड लाइंस के अनुसार पुलिस कभी भी किसी आरोपी की बाइट थाने में नहीं कराती, फिर भी पुलिस ने उनकी बाइट करायी, जिसमें पत्रकारों द्वारा बार-बार पूछे जाने पर भी दलालों ने पत्रकारों द्वारा संरक्षण की बात कहीं नहीं बोली। उसके बावजूद पुलिस ने दो इलेक्ट्रॉनिक मीडिया के पत्रकारों के नाम फर्द में डाल दिये। जबकि पुलिस को पहले जांच करनी चाहिए थी।
इस मामले को लेकर पत्रकारों के एक प्रतिनिधि मण्डल ने एसएसपी डॉ. प्रीतिंदर सिंह से मुलाकात की। एसएसपी ने सीओ से जांच कराने का आश्वासन दिया है। हो सकता है कि पिछले कुछ समय से इंडिया न्यूज चैनल के पत्रकार ललित मोहन से आपसी रंजिश के चलते भी बदनाम करने की नियत से पत्रकारों के खिलाफ यह खेल रचवाया गया हो। पत्रकार ललित मोहन के खिलाफ भी कासना थाने में एक्सटॉरशन के मामले में धारा 386, 499 में एफआईआर दर्ज है। वरिष्ठ अधिवक्ता जितेंद्र नागर का कहना है कि पुलिस किसी भी आरोपी के कुछ भी कहने पर किसी का भी नाम एफआईआर में नहीं डाल सकती। पहले मामले की जांच होनी चाहिए थी। उन्होंने थाने के अंदर दलालों द्वारा दी गई बाइट पर कहा है कि पुलिस इस तरह आरोपी को मीडिया के सामने पेश नहीं कर सकती।
ग्रेटर नोएडा के पत्रकार रमन ठाकुर द्वारा भड़ास को भेजा गया पत्र