‘मेरे 23 साल के पत्रकारिता करियर में किसी ने मुझे जाति या सरनेम नहीं पूछा था। मुझे केवल मेरे नाम से जाना जाता था। लेकिन जब 2014 में जब मुझे AAP कार्यकर्ताओं से रूबरू कराया गया तो मेरे विरोध के बावजूद भी मेरा सरनेम बताया गया था। मुझे कहा गया कि सर आप जीतोगे कैसे, आपकी जाति के यहां काफी वोट हैं।’ – आशुतोष
Manoj Malayanil : आम आदमी पार्टी के पूर्व नेता आशुतोष ने आज दो बातें कही है। एक तो ये कहा कि 23 साल के पत्रकारिता के करियर में उन्हें कभी अपनी जाति का इस्तेमाल नहीं करना पड़ा, लेकिन 2014 में जब चुनाव लड़ा तो केजरीवाल (की पार्टी) की ओर से कहा गया कि अपने सरनेम गुप्ता का इस्तेमाल करो।
आशुतोष ने दूसरी बात या यूं कहें एक स्वीपिंग स्टेटमेंट दिया है। उन्होंने कहा है कि दक्षिणपंथ अनपढ़ और जाहिलों की जमात है जबकि लेफ्ट आंदोलन के साथ एक अच्छी बात ये है कि बहुत पढ़े-लिखे लोग इससे जुड़े हैं।
वामपंथ हो या दक्षिणपंथ, हर विचारधारा से बड़ी संख्या में लोग जुड़े हैं। जाहिर है उनमें ज्ञानी और जाहिल सब तरह के लोग होंगे। ऐसा नहीं होता है कि एक तरफ सिर्फ ज्ञानियों की जमात होती है और दूसरी तरफ जाहिलों की जमात। हैरानी होती है कि संपादक रह चुका कोई व्यक्ति कैसे अपनी बातों में जेनरेलाइजेशन करता है।
आशुतोष अगर पाखंडी नहीं महान ज्ञानी व्यक्ति हैं तो उन्होंने किसी वामपंथी पार्टी की बजाय केजरीवाल की पार्टी के टिकट से चुनाव क्यों लड़ा जहां उन्हें आशुतोष से आशुतोष गुप्ता होना पड़ा? और जब उनके नाम से केजरीवाल ने गुप्ता का ध्वजा टांग दिया तो क्यों नहीं उन्होंने बीच चांदनी चौक से जाति के उस ध्वजा को उखाड़ फेंकने का एलान कर दिया?
दुनिया में कई विचारधारायें हैं पर पता नहीं उनमें पाखंडी विचारधारा को क्यों नहीं शामिल किया गया है। अगर ऐसा हो जाय तो मौसमी गुप्ता और खेतानों की उनमें गिनती आसान हो जायेगी।
टीवी पत्रकार मनोज मलयानिल की एफबी वॉल से.
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