Ajit Anjum : विनोद कापड़ी की फिल्म पीहू के ट्रेलर को दस घंटे में 18 लाख से ज्यादा लोग यूट्यूब पर देख चुके हैं. फेसबुक और ट्विटर मिलाकर पैंतीस लाख बार देखा जा चुका है . ट्रेलर देखने वाले लोग शाक्ड हैं. हैरान हैं. उत्सुक हैं. सबकी दिलचस्पी इस बात में है कि दो साल की मासूम ने एक्टिंग कैसे की और आखिर में उस बच्ची का क्या हुआ? फिल्म तो अगले महीने की सोलह तारीख को रिलीज होगी.
Tushar Kaushik : किसी एक सोसाइटी में बड़ी सी बिल्डिंग के ऊपर का फ्लोर है जिसपर एक 2 साल की बच्ची है घर के बेडरूम में पीहू और और उसकी माँ हैं. पीहू सोकर उठती है अपने फ़ोन से खेलती है अपनी माँ को उठाती है लेकिन उसकी माँ नहीं उठती क्यूंकि उसकी मौत हो चुकी है लेकिन उस 2 साल की पीहू को मौत का क्या मतलब पता होगा भला. इसलिए वो रोते हुए कई बार कोशिश करती है चीखती है चिल्लाती है, माँ उठो ना, मुझे भूख लगी है, मुझे डर लग रहा है. बच्ची की हर कोशिश नाकामयाब हो जाती है. खेलते खेलते वो खुद को फ्रिज में बंद कर लेती है. पीहू भूख से तड़प रही है घर में इधर उधर जा रही है. खाने के लिए कभी गैस पर ब्रेड सेकने की कोशिश करती है तो कभी अपनी डॉल से खेलने लगती है. इस सबके बीच अचानक पीहू फ्लैट की बालकनी में जा पहुंची और रैलिंग पर चढ़कर नीचे झाँकने लगती है. इसके बाद जो हुआ शायद उसके लिए आपको इस ट्रेलर को खुद देखना चाहिए.
Yashwant Singh : “पिहू” का इंतज़ार रहेगा। दो साल की बच्ची पर केंद्रित पूरी एक फ़िल्म तैयार कर देना बड़ी बात होती है। फ़िल्म की जो झलक रिलीज की गई है, वो अदभुत है। खासकर महानगरों में रहने वाले पैरेंट्स के लिए तो ये फ़िल्म मस्ट वाच है। Vinod Kapri जी को अग्रिम बधाई, एक शानदार फ़िल्म देने के लिए। आजकल का वक़्त वाकई हिंदी सिनेमा के लिए स्वर्णयुग सरीखा है जहां नित नए अछूते टॉपिक्स पर फिल्में बन रही हैं और हिट हो रही हैं। ‘पिहू’ फ़िल्म के ट्रेलर को देख लेंगे तो पूरी फिल्म देखने की इच्छा करेगी। मैं तो ट्रेलर देख ये सोचने लगा कि 2 साल की बच्ची से इस किस्म का अभिनय कराने के लिए उसे कैसे मोटिवेट / ट्रेंड किया गया होगा। ये वाकई कमाल की फ़िल्म साबित होगी, कई मायनों में। 16 नवम्बर को ये फ़िल्म सिनेमाहाल में चलकर देखने के लिए तैयार रहें।
Vikas Mishra : फिल्म ‘पिहू’ का ट्रेलर सिहरा गया। दो साल की एक प्यारी सी बच्ची घर में अकेले बंद है। फिर उसके साथ क्या-क्या होता है, इसी पर है ये फिल्म। ट्रेलर में पता चल रहा है कि बच्ची बंद घर में क्या-क्या कर रही है। कभी हंस रही है, कभी गा रही है, कभी खीझ रही है, तो कभी खुद को फ्रिज में बंद कर ले रही है।
ट्रेलर से जहां तक अंदाजा लगा कि घर में कुछ अनहोनी हुई है, क्योंकि बेड पर उस बच्ची की मां की लाश पड़ी दिखाई दे रही है, बच्ची इससे अनजान है, इसी वजह से कभी वो अपनी मां के शव के ऊपर भी लेट जाती है, कभी उससे बातें करने की कोशिश करती है। आखिरी शॉट में उसकी गुड़िया नीचे गिर जाती है, फिर गुड़िया के लिए वो बालकनी की रेलिंग पर चढ़ जाती है। इसके बाद क्या होता है, यही तो सस्पेंस है, लेकिन ये सस्पेंस दिल धड़का देता है।
‘पिहू’ फिल्म वरिष्ठ पत्रकार और फिल्मकार विनोद कापड़ी Vinod Kapri ने लिखी है और उन्होंने ही इसका निर्देशन किया है। इस फिल्म में पिहू का किरदार निभाने वाली प्यारी सी बच्ची मायरा, आजतक में हमारे साथी रहे रोहित विश्वकर्मा Rohit Vishwakarma (अब मैनेजिंग डायरेक्टर- टीवी-9) की बेटी है। व्यक्तिगत रूप से विनोद जी और रोहित से जुड़ाव की वजह से इस फिल्म से मैं भी जुड़ाव महसूस करता रहा हूं।
विनोद कापड़ी की ये दूसरी फिल्म है। इससे पहले उन्होंने ‘मिस टनकपुर हाजिर हों’ नाम की ब्लैक कॉमेडी फिल्म बनाई थी। कम बजट की अपनी इस पहली ही फिल्म से विनोद कापड़ी ने साबित किया था कि फिल्म इंडस्ट्री में भी वो सुपरहिट पारी खेलेंगे। अब बारी ‘पिहू’ की है। जिसके ट्रेलर ने सोशल मीडिया पर धूम मचा रखी है। ये पोस्ट लिखे जाने तक 21 लाख से ज्यादा लोग इसे देख चुके हैं। मैंने ‘मिस टनकपुर हाजिर हों’ भी देखी थी, अब ‘पिहू’ का इंतजार है।
ट्रेलर देखकर ही लग रहा है कि ये फिल्म बिल्कुल अलग होगी। फिल्म के शानदार ट्रेलर के लिए विनोद जी और उनकी पूरी टीम को बहुत-बहुत बधाई। फिल्म 16 नवंबर को रिलीज हो रही है। उम्मीद और यकीन है कि ‘पिहू’ देश के करोड़ों सिनेमा प्रेमियों के दिल में घर कर लेगी। फिल्म कामयाबी का डंका पीटेगी।
ट्रेलर अगर अपने अब तक नहीं देखा हो तो देखिए यहां-
Hemant Rathi : अद्भुत। यह कुछ ऐसा है जो कल्पना से भी परे है। हम सभी के आसपास यह होता है। और मैं प्रणाम करता हूं Vinod Kapri सर को जिन्होंने पीहू को लिखा है निर्देशित किया है और हम सबके सामने प्रस्तुत किया है। यह एक बहुत ही खास फिल्म होने वाली है। ना केवल हिंदी फिल्म जगत के लिए बल्कि पूरे समाज के लिए। बहुत-बहुत आभार प्रकट करता हूं। सांसे रुक जाती है धड़कनें बढ़ जाती है ट्रेलर देखकर ही। रोंगटे ना खड़े हो जाए तो क्या बात है। जरूर देखना “पीहू”।
Junaid Hussain Khan : कल पिहू फ़िल्म का ट्रेलर देख़ा सबसे पहले तो Vinod Kapri सर को हार्दिक बधाई। सर से क़भी मिला तो नहीं पर फेसबुक पर उनसे जुड़ा हुआ हुँ 3 सालों से तो एक तरह से सर गुरु द्रोणाचार्य जैसे है मेरे लिए। अब आते हैं फिल्मों पर आजसे लगभग 3 सालों पहले जब विनोद सर ने पहली डॉक्यूमेंट्री बनाई मैं बेहद ख़ुश हुआ “काँट टेक शिट एनीमोर” एबीपी न्यूज़ पर देख़ा उसका गाना रोगवा से होत नहीं टट्टी… मज़ाक़ में हर जगह गाता पर व्यक्तिगत रूप से इस डॉक्यूमेंट्री का मुझपर गहरा प्रभाव पड़ा और आजतक गाँव में कई महिलाओं को हमनें कहा कि खुले में शौच न करें। Manav भईया सहायक निर्देशक थे तो और गर्व की बात ऊपर से विनोद सर क़भी क़भी मेरे पोस्ट को लाइक शेयर करते तो हम फूल के कुप्पा क्योंकि सर कितने वरिष्ठ पत्रकार हैं सबकों पता है।
सर इंडस्ट्री में इतने वरिष्ठ है इसलिए ये तो नहीं कहुँगा की कैमरे, स्क्रिप्ट या फिल्मों से ये उनका पहला प्रयोग था हाँ अल्बत्ता मेरा ज़रूर था मैं फिल्मों में कम ही रुचि रखता था लेक़िन सर की इस डॉक्यूमेंट्री ने मुझे बेहद प्रभावित किया औऱ तब से डॉक्यूमेंट्री से मेरा गहरा नाता हुआ जब सर शक्तिमान बना रहे थे तब उनकी हर सोशल मीडिया पर अपलोड किए गए वीडियो तस्वीरों को बड़े ग़ौर से देखता रहता था उसके बाद उनकी पहली फ़िल्म “मिस टनकपुर हाज़िर हो” देख के मज़ा आ गया आज भी जब भी ये स्टार गोल्ड पर प्रसारित होती हैं कुछ सीन को तो ज़रूर देखता हूँ क्योंकि अक्सर संयुक्त परिवार में टीवी पर आपका निजी कब्ज़ा नहीं होता।
ग्रेजुएशन जर्नलिज्म एंड मास कॉम में भले ही किया लेक़िन फिल्मों से ज़्यादा मुझें शुरू से पत्रकारिता पसंद थीं डॉक्यूमेंट्री या फिल्मों से पाला तो मेरा ग्रेजुएशन आखिरी साल में हुआ जब वीडियो प्रोडक्शन पढ़ना था तब कई डॉक्यूमेंट्री देखी कुछ अच्छी फिल्में भी पैरलल सिनेमा से उस वक़्त थोड़ा बहुत नाता हुआ जिसके लिए Abhishek Srivastava सर Shikha Sen मैम और Mohammad Ashraf Ali सर का हाथ था। तब फिल्मों की थोड़ी बहुत बारीकियों को समझने की कोशिशें की। जब 2015 में जामिया मिल्लिया इस्लामिया पहुँचा तो फिल्मों के समंदर में गोता लगाने लगा यहाँ तो भाई फ़िल्म डॉक्यूमेंट्री की बाते स्क्रीनराइटिंग स्क्रीनिंग आम बात थीं मित्रों के ज़ुबाँ पर फिल्मों की बातें आम थीं और मैं थोड़ा बहुत समझने का प्रयास करता।
जब फ़िल्म बनाने की बात आई तब हमनें 12-15 साल के एक बच्चे के साथ पहली शॉर्ट फिल्म बनाई वो भी 16mm SR3 कैमरे से तब जाना कि भई ये कितना कठीन भरा काम हैं और यक़ीन मानिए मित्रों जितने भी सहपाठियों ने बच्चों को अपना क़िरदार बनाया उन्हें नाकों चने चबाने पड़े। ऐसे में 2 साल की बच्ची के साथ विनोद सर ने जो फ़िल्म बनाया उसकी झलक देखने के बाद पूरे फ़िल्म को देखने के लिए 16 नवंबर की तारीख़ का इंतेज़ार हो ही नहीं रहा आप भी ज़रूर देखिएगा मित्रों। विनोद सर से क़भी मिला नहीं आजतक और किस्मत देखिये की जब हमनें शारदा छोड़ा तब सर की पहली फ़ीचर फ़िल्म ” मिस टनकपुर हाज़िर हो ” कि विशेष सक्रीनिंग हुई। ख़ैर सर आपको हार्दिक बधाई दुबारा देता हुँ और इंशाअल्लाह दुआ करता हूँ कि एक बार आपसे ज़रूर मुलाक़ात हो।
सौजन्य : फेसबुक
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