शम्भूनाथ शुक्ला-
बंगाल चुनाव के शिकार हो गए साथी अरुण पांडेय। वे वहाँ चुनाव कवर करने गए थे। वहीं से संक्रमित हो गए। अस्पताल में भर्ती हुए, ठीक हो कर घर आ गए और फिर दिक़्क़त हुई तो पुनः अस्पताल में भर्ती कराना पड़ा। पड़ोस में रहते थे। एक ही अपार्टमेंट में मगर ख़बर सुबह मित्र Rajesh Joshi के फ़ेसबुक स्टेटस से मिली।
एक अत्यंत मेधावान और पढ़ा लिखा पत्रकार बंगाल चुनाव की बलि चढ़ गया।
राष्ट्रीय सहारा दैनिक में हस्तक्षेप नाम से चार पेज का जो पूल आउट निकलता था उसके शुरुआती संपादकों में से थे। बहुत से लोग सिर्फ़ इस पूल आउट के कारण ही यह अख़बार लेते थे।
एक ऐसे विवेकवान पत्रकार का निधन सम्पूर्ण पत्रकारिता जगत का नुक़सान है। अरुण जी को नम आँखों से विदाई। उनकी स्मृतियाँ जीवंत रहेंगी।
हेमंत शर्मा-
सोचा नहीं था कि अरूण के लिए लिखना होगा।भरोसा नहीं हो रहा है।अलविदा कहने का मन नहीं है। तब जब गए बीस रोज़ से मैं रोज़ अरूण और उनके इलाज में लगे डॉक्टरो से बात कर रहा था।उन्हे तिल तिल जाते देख रहा था। फिर भी उनकी ज़िन्दादिली, उनकी आत्मीयता, यह मानने को तैयार नहीं है। कि वो नहीं रहे।
टीवी के न्यूज रूम में अरूण जैसे ज्ञानी अब विरले होते है।खबरो पर ज़बर्दस्त पकड़ थी उनकी।कोई पचीस बरस पहले अरूण मुझे जब मिले थे जब इलाहाबाद विश्वविद्यालय में वे पीएसओ की राजनीति कर रहे थे। इसलिए मैं उन्हें कामरेड कहता था।
पॉंच रोज़ पहले तक आईसीयू से मेरा उनसे टेक्स्ट मैसेज से हाल चाल हो रहा था। मुझे लिखा की अब ठीक हूँ आक्सीजन सेचुरेशन ठीक है एक दो रोज़ में डिस्चार्ज करने को कह रहे हैं। मैंने लिखा जीत गए कॉमरेड। तब किसे पता था कि पॉंच रोज़ बाद अरूण ज़िन्दगी की जंग हार जायेगें। अपने बेजोड़ व्यक्तित्व के चलते अरूण हमारी स्मृतियों में हमेशा बने रहेंगे।
ओमकारेश्वर पांडेय-
अरूण पांडे चले गए। बंगाल चुनाव की भेंट चढ़ गए। वहीं से कोरोना लेकर आये। राष्ट्रीय सहारा में हमने करीब 17 साल तक साथ काम किया था। आप विभांशु दिव्याल जी के साथ हस्तक्षेप की पहली टीम के अगुआ थे। ग॓भीर और शोधपरक पत्रकारिता हिंदी में भी हो सकती है, यह हस्तक्षेप ने करके दिखाया। प्रिंट के बाद टेलीविजन पत्रकारिता की गुणवत्ता सुधारने में भी आपका अहम योगदान रहा। पहले सहारा टीवी और फिर न्यूज24, इंडिया टीवी समेत कई अन्य चैनलों में आपने महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। ईश्वर आपकी आत्मा को शान्ति दें और आपके परिजनों को यह असह्य दुख सहने की शक्ति। विनम्र श्रद्धांजलि अरुण जी।
Amresh mishra-
My friend and political colleague Arun Pandey is no more.
He fought Covid successfully, but fell victim to ‘post-Covid complications’– a euphemism for the total failure of the system to take care of hapless victims after they have recovered.
Having lost my father to ‘Covid complications’, a euphemism for the total failure of the system to take care of hapless victims while they are infected, I feel a sense of betrayal and anger.
My memories of Arun are of his pre-journalistic phase, when we both took a leading part in the Allahabad student movement, the PSO-AISA era, led by Akhilendra Pratap Singh and CPI-ML (Liberation).
He was my senior in the Allahabad University.
Rest in peace Arun…I will try my best to translate our political dreams into reality.
विजय सिंह
May 7, 2021 at 2:31 pm
बहुत दुःख़द। विनम्र श्रद्धांजलि। ईश्वर शोकसंतप्त परिवार को दुःख सहने की शक्ति दें।